संघ की बनाई रेल यूनियन ने फूंका बिगुल- ‘जो सरकार रेल की नहीं वो देश की नहीं’
By आशीष सक्सेना
बीजेपी जहां हर सूरत में 2019 की चुनावी वैतरणी पार करने की जुगत लगा रही है। वहीं आरएसएस से जुड़े नेताओं की बनाई पूर्वोत्तर रेलवे कार्मिक यूनियन (पुरकू) ने बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं।
भारतीय मजदूर संघ की राजनीति से अलग यह यूनियन हर वह काम करने में जुटी है, जो बीजेपी को नागवार गुजरेगा।
पुरकू ऐसे मुद्दे कर्मचारियों को परोस रही है जिससे कर्मचारी सरकार पर सवाल खड़े करें या विरोध में चले जाएं।
लोकसभा चुनाव प्रचार के बीच पूर्वोत्तर रेलवे कार्मिक यूनियन ने रेलवे कर्मचारियों को संबोधित पर्चा जारी करने के साथ ही सरकार पर सवाल खड़े करने की मुहिम छेड़ दी है।
इस पर्चे में कहा गया है कि ‘जो सरकार रेल की नहीं वह देश की नहीं’। रेल को देश की एकता का सूत्र बताकर इसके निजीकरण को देश बेचने सरीखा बताया है।
साथ ही मोदी सरकार में लाए गए ट्रेड यूनियन अमेंडमेंड बिल को भी रद्द करने की मांग की गई है।
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दो दर्जन सीटें हो सकती हैं प्रभावित
पुरकू ने आरएसएस की मजदूर विंग भारतीय मजदूर संघ से जुड़े भारतीय रेल मजदूर संघ पर कर्मचारियों के बीच सांप्रदायिक और जातिवादी राजनीति का आरोप लगाकर सरकार के सहयोग का आरोप भी लगाया है।
पर्चे के जरिए लोकसभा चुनाव के बाद होने जा रहे रेल यूनियन मान्यता चुनाव को लेकर प्रमुखता से आगाह किया है, जिसमें कांग्रेसी मिजाज के फेडरेशन एनएफआईआर (नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवेमेन )
और वामपंथी चाल में चलने वाली एआईआरएफ (ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन) को भी निशाना बनाया गया है। पीआरकेयू का कहना है कि ‘अच्छे दिन’ वाले हों या ‘साठ साल राज करने वाले’, श्रमिकों पर अत्याचार करने में कोई कम
नहीं है। पूर्वोत्तर रेलवे जोन में उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड और बिहार का बड़ा हिस्सा आता है. इस जोन में मौजूद बरेली, पीलीभीत, शाहजहांपुर, बदायूं, नैनीताल, रामपुर, मथुरा, कासगंज, बनारस, गोरखपुर, सीतापुर, गोंडा, कानपुर, सीवान,
छपरा समेत लगभग दो दर्जन लोकसभा सीटों पर इस प्रचार का असर दिखने की संभावना है।
जिस तरह प्रचार की योजना बनाई गई है, उससे भारतीय रेल के 13 लाख कर्मचारियों और उनके परिवारों के रुख का प्रभावित होना लाजिमी है।
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महज दो साल में बनाई पहचान
पीआरकेयू ने पिछले दो साल में जिस तरह ढांचा तैयार करके विस्तार को अंजाम दिया है, इसकी रेल कर्मचारियों के बीच चर्चा है. नए नेतृत्व ने यूनियन में वैचारिक बदलाव करना शुरू कर दिया है।
जिससे पुरकू को लेकर भाजपाई लॉबी परेशान है. बड़ी वजह ये है कि इस यूनियन की बुनियाद आरएसएस के ट्रेड यूनियन सेंटर भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) के रेलवे फेडरेशन
भारतीय रेल मजदूर संघ (बीआरएमएस) के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष रहे रमाकांत सिंह ने रखी। बाद में श्रमिक संघ नेता एनडी शुक्ला और यूएन तिवारी भी उनसे जुड़ गए.
साल 2012 में स्थापना के बाद चार साल तक पीआरकेयू सामान्य गति से काम करती रही और 2017 से अचानक विकास और विस्तार की छलांग लगा दी।
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बीजेपी को बताया मजदूर विरोधी दल
पुरकू अध्यक्ष रमाकांत सिंह साफ कहते हैं कि बीजेपी मजदूर विरोधी है, इसका अंदाजा तब ही लग गया था।
जब अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने 1926 के ट्रेड यूनियन एक्ट में बदलाव कर दस फीसद कर्मचारियों के साथ होने पर ही यूनियन पंजीकरण का नियम बनाने की कोशिश की, जिसे काफी दबाव के बाद सौ कर्मचारी किया गया।
उदाहरण देकर ये फर्क भी बताते हैं कि अगर किसी स्लाटर हाउस बंद करने का फैसला हो तो बीएमएस और उसकी यूनियनें‘देशभक्ति’ के नाम पर खामोश रहेंगी,
लेकिन हम इसके लिए लड़ेंगे और मांग करेंगे कि पहले वहां काम करने वाले मजदूरों का बंदोबस्त किया जाए।
रमाकांत सिंह का कहना है कि ट्रेड यूनियन किसी विचारधारा से नहीं बल्कि मजदूरों के लिए सतत संघर्ष से जीतती है। ट्रेड यूनियन अपने अधिकारों का ईमानदारी से उपयोग करे तो कोई उसके नेताओं को नीचा नहीं दिखा सकता।
जो लोग भी हमारे साथ आरएसएस मानसिकता, जातिवाद या सांप्रदायिकता के विचार लेकर हैं, वे लक्ष्मण रेखा लाघेंगे तो किनारे लग जाएंगे।
रेल कर्मचारी दुनिया के सबसे बुद्धिमान लोग हैं, जो कर्मचारी हित में काम कर रहा है, वे उनको ही तवज्जो देंगे. जिस पटरी पर बीआरएमएस है, उससे वह अगले सौ साल में भी सत्ता में नहीं आने वाली।
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नई टीम ने बदला ट्रेड यूनियन का ट्रेंड
पश्चिम बंगाल रेलवे से तबादला होकर बरेली स्थित इज्जतनगर रेलवे कारखाना मंडल में पहुंचे गोरखपुर निवासी राकेश मिश्रा ने बताया कि लगभग चार साल पहले एक टीम बनानी शुरू की, जिसमें नॉन सुपरवाइजर शिक्षित युवा थे।
शुरुआत में पूर्वोत्तर रेलवे श्रमिक संघ (पीआरएसएस) के साथ जुड़े लेकिन तीन चार महीने में ही मोहभंग हो गया. बाद में टीम पूर्वोत्तर रेलवे मेंस कांग्रेस से जुड़ी और सक्रिय भागीदारी शुरू की।
जल्द ही ये एहसास हुआ कि मेंस कांग्रेस में एक नेता का एकछत्र राज है, कर्मचारियों को सम्मान नहीं दिया जाता, दबंगई के दम पर नेतृत्व देना चाहते हैं. ऐसे ही कुछ मामलों से खफा होकर मेंस कांग्रेस से किनारा कर लिया।
संयोग से निष्क्रियता के दौर से गुजर रही यूनियन ‘पुरकू’ के नेता यूएन तिवारी से मुलाकात हुई। युवा कर्मचारियों के उत्साह और समझदारी से कायल होकर यूएन तिवारी ने पुरकू में आने का प्रस्ताव दे दिया।
रमाकांत सिंह ने नई टीम को पूरी छूट दी कि वे अपने हिसाब से यूनियन को ढालें और नेतृत्व संभालें।
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इज्जतनगर कारखाना मंडल
इज्जतनगर कारखाना मंडल के कर्मचारी राकेश मिश्रा की अगुवाई में इस टीम ने दो साल पहले यूनियन का काम शुरू किया।
उन्होंने यूनियन में अफसर रैंक के कर्मचारियों की जगह खांटी मजदूरों को भर्ती करना शुरू कर दिया, जिनमें गैंगमैन, ट्रैकमैन की तादाद ही ज्यादा है।
इन्हीं मजदूरों में से उन लोगों को छांटा, जो अच्छी शिक्षा और छवि वाले थे, उन्हें नेतृत्व की कमान अलग-अलग जगह सौंप दी।
इज्जतनगर मंडल में तो घोषित ही कर दिया कि यहां का मंडल मंत्री कोई गैंगमैन या ट्रैकमैन ही हो सकता है। दो साल बीतने भी नहीं पाए कि पुरकू ने पूर्वोत्तर रेलवे की लगभग सभी प्रमुख शाखाओं में अपनी टीम खड़ी कर दी।
पहली बार पीआरकेयू ने बरेली शहर के संयुक्त मंच बरेली ट्रेड यूनियंस फेडरेशन के साथ मई दिवस पर भागीदारी की, जिसमें सबसे ज्यादा संख्या इस यूनियन के कार्यकर्ताओं की रही।
इस कार्यक्रम में केंद्रीय अध्यक्ष रमाकांत सिंह भी शामिल हुए। इससे पहले यूनियन ने अपने लोगों के रंग भगवा को बदलकर लाल और बैनर का रंग भी नीला करने का फैसला लिया,
हालांकि इस यूनियन के नेता कभी भी किसी वामपंथी संगठन में नहीं रहे हैं और न ही फिलहाल तक जुड़े हैं।
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नई टीम के लिए पुरानों ने छोड़ी कुर्सी
कुछ ही दिन बाद पुराने नेतृत्व ने नई टीम के लिए जगह भी खाली कर दी। राकेश मिश्रा को पिछले दिनों गोंडा अधिवेशन में जोन का महामंत्री चुन लिया गया।
केंद्रीय सहायक महामंत्री मंत्री, केंद्रीय उपाध्यक्ष आदि पद भी नई टीम को इसी अधिवेशन में सौंप दिए गए. अधिकांश पदाधिकारियों में शिक्षित युवाओं को जिम्मेदारी दी गई है।
महामंत्री राकेश मिश्रा बीई इलेक्ट्रॉनिक्स व एमएससी इलेक्ट्रॉनिक्स हैं और मौजूदा समय में एलएलबी भी कर रहे हैं।
इसके अलावा सहायक महामंत्री रणविजय सिंह पटेल ने मध्यकालीन इतिहास व अंग्रेजी से पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। केंद्रीय उपाध्यक्ष सुशांत सक्सेना बीपीएड, एमपीएड के साथ ही तैराकी के कोच हैं।
हाल ही में संयुक्त मंडल मंत्री बने गेटमैन पुष्पेंद्र गंगवार एमएससी मैथ्स हैं।
पुरकू यूनाइटेड ट्रेड यूनियन कोऑर्डिनेशन सेंटर (टीयूसीसी) का हिस्सा है, जिसका पश्चिम बंगाल में अच्छा प्रभाव बताया जाता है।
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इस तरह खड़ी हो रही बीजेपी के लिए समस्या
पीआरएसएस नेता प्रचार से सियासत के नए दौर को समझा रहे हैं. सोशल मीडिया पर प्रचार कर रहे हैं कि श्रमिकों के पास कोई विकल्प है ही नहीं, मोदी सरकार ने बाकी ट्रेड यूनियनों पर शिकंजा कस दिया है।
पीआरएसएस जहां, कर्मचारियों को ‘राष्ट्रवादी ज्ञान’ देकर बीजेपी के पक्ष में माहौल बना रही है। वहीं, ‘पुरकू’ अपनी मांगों को छोटी बैठकों से लेकर सोशल मीडिया के जरिए रेल मजदूरों में सरकार के फैसलों को मजदूर विरोधी बता रही है।
पुरकू पदाधिकारी इस सिलसिले में बरेली लोकसभा से बीजेपी प्रत्याशी केंद्रीय श्रम व रोजगार राज्यमंत्री संतोष गंगवार के माध्यम से भारत सरकार को ज्ञापन भी भेज चुके हैं।
पीआरकेयू क्या वाकई चुनौती पैदा करेगी
‘पुरकू’ को लेकर आम रेल कर्मचारियों और अन्य यूनियन नेताओं के साथ ही दूसरे जोन की यूनियनों से भी बात की गई तो राय अलग रहीं लेकिन चुनाव में असर पड़ने के संकेत मिले।
छपरा (बिहार) से चंद्रशेखर सिंह ने कहा कि कर्मचारियों की छोटी बड़ी समस्याओं का समाधान तेजी और सेवा भावना से करने के चलते इस युवा टीम की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है।
पीलीभीत से सोनम गंगवार ने कहा कि पुरकू के प्रति लोगों का रुझान काफी सकारात्मक है।
धीरेंद्र कुमार ने कहा कि दो साल पहले पुरकू के बारे में लोगों को जानकारी कम थी, लेकिन पिछले एक साल से काफी अच्छी साख बना ली है।
बनारस के घनश्याम पटेल ने कहा कि मेरी तो छोडि़ए, आप किसी भी कर्मचारी से पूछें, ऐसी यूनियन आज तक थी ही नहीं, इस यूनियन से सभी खुश हैं।
कमोबेश इसी तरह के बयान काठगोदाम (उत्तराखंड) के राजकुमार और अजय कुमार, डीएलडब्ल्यू वाराणसी के अमर सिंह, अमित सक्सेना आदि के भी रहे।
चुनौती के सवाल को पूर्वोत्तर रेलवे श्रमिक संघ के सहायक मंत्री जेएस भदौरिया ने खारिज कर दिया।
पूर्वोत्तर रेलवे मेंस कांग्रेस के इज्जतनगर मंडल मंत्री चीफ कंट्रोलर विवेक मिश्र ने कहा कि किसी भी नई पहल की आलोचना करने की जगह उसका उत्साहवर्धन किया जाना चाहिए, उनके प्रयासों को मेरी शुभकामनाएं।
पीआरकेएस के महामंत्री विनोद राय ने कहा कि पुरकू सिर्फ पीआरएसएस के लिए नुकसान पहुंचा सकती है, जो बीजेपी का भी वोट है। अभी उन्हें हर जगह टीम खड़ी करने के लिए ही चुनौती झेलना होगी।
एनई रेलवे मेंस यूनियन (नरमू) के इज्जतनगर मंडल अध्यक्ष मुकेश सक्सेना ने कहा कि इतनी छोटी और नई यूनियन चुनाव कोई चुनौती नहीं दे सकती, लोकसभा चुनाव में कुछ असर डाले, ये अलग बात है।
बीआरएमएस में शामिल हो चुकी वेस्ट सेंट्रल रेलवे कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष जलज गुप्ता ने कहा कि पुरकू का प्रयास सराहनीय है, लोकसभा चुनाव पर असर के बारे में कोई राय नहीं है।
एनडब्ल्यूआर के शीर्ष पदाधिकारी उमेंद्र सिंह ने कहा कि निश्चित रूप से पीआरकेयू की कार्यप्रणाली अच्छी है, लिहाजा उनके किसी भी प्रयास का प्रभाव भी पड़ेगा।
(newsplatform.in से साभार)
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