नया लेबर कोड क्यों हैं घातक?: 1 अप्रैल से कैसे बंधुआ हो जाएगा मज़दूर- भाग:2

नया लेबर कोड क्यों हैं घातक?: 1 अप्रैल से कैसे बंधुआ हो जाएगा मज़दूर- भाग:2

 

क्या फर्क पड़ेगा कुछ बानगी देखें-

छँटनी-बन्दी होगा आसान

औद्योगिक सम्बंध संहिता की धारा 77 के अनुसार 300 से कम मज़़दूरों वाले उद्योगों को कामबंदी (लेऑफ), छँटनी या बंदी के लिए सरकार की अनुमति लेना जरूरी नहीं है।

कामबंदी के लिए महज 15 दिन की नोटिस, छँटनी के लिए 60 दिन पहले नोटिस और कंपनी बंद करने पर 90 दिन पहले नोटिस देना होगा।

छँटनी या कामबंदी के समय नियोक्ताओं से सूचना माँगने पर वे जो भी सूचना श्रम विभाग को देंगे, वे ही मान्य होंगे।

छँटनी का शिकार हुए कर्मचारी के री-स्किल डेलवपमेंट का झुनझुना दिया है। धोखा यह कि छँटनी किए गए कर्मचारी के 15 दिन के वेतन के बराबर की राशि केंद्र सरकार के पास जमा होगी, जो बाद में सरकार की ओर से सम्बंधित मज़़दूर को पुनर्कौशल के लिए मिलेगा।

काम के घण्टे बढ़ेंगे

व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशाएं लेबर कोड के लिए बनी नियमावली के नियम 25 के उपनियम 2 के अनुसार, किसी भी श्रमिक के कार्य की अवधि में आराम के समय को शामिल करते हुए काम के घंटे किसी एक दिन में 12 घंटे से अधिक न हो। मज़़दूरी संहिता की नियमावली के नियम 6 में भी यही बात कही गई है। व्यवसायिक सुरक्षा कोड की नियमावली के नियम 35 के अनुसार दो पालियों के बीच 12 घंटे का अंतर होना चाहिए।

नियम 56 के अनुसार तो कुछ परिस्थितियों, जिसमें तकनीकी कारणों से सतत रूप से चलने वाले कार्य भी शामिल हैं मज़दूर 12 घंटे से भी ज्यादा कार्य कर सकता है और उसे 12 घंटे के कार्य के बाद ही ओवरटाइम का भुगतान होगा।

धोखा यह कि सप्ताह में काम के घण्टे 48 होंगे लेकिन दैनिक कार्य के घण्टे 12 होंगे, जिसे साप्ताहिक चार दिन काम का बताया जा रहा है। साफ है कि व्यापक मज़दूर आबादी के लिए ऐसा नहीं होने वाला है।

3 महीने में 125 घंटे से ज्यादा ओवरटाइम पर भी काम नहीं कर सकते। यानी ओवरटाइम के लिए भी घंटे बढ़ जाएंगे।

कुछ मामलों में 16 घंटे तक भी काम कराने की छूट दी गई है, उसके लिए कथित रूप से अनुमति लेने का प्रावधान जोड़ा गया है। यानी 16 घंटे काम कराने की भी खुली छूट होगी।

साफ है कि तमाम शहादतों से मज़दूरों ने आठ घण्टे काम का जो अधिकार हासिल किया था उसे भी एक झटके में मोदी सरकार ने छीन लिया।

नौकरी दिन या घंटे के हिसाब से भी

मज़दूरी लेबर कोड की धारा 6 (4), धारा 16 व धारा 17 – के मुताबिक़, अब पारिश्रमिक – घंटे के हिसाब से, या दिन, साप्ताहिक, पखवारा, या महीने के हिसाब से तय किया जा सकता हैं। जो, काम के लिए मज़दूरी की न्यूनतम दर; या टुकड़े के काम के लिए मज़दूरी की एक न्यूनतम दर; के हिसाब से दिया जाएगा।

धारा 13 – सप्ताह 6 दिन का होगा। सरकार की अनुमति से तकनीकी या आपातकालीन स्थिति में काम के घंटे बढ़ाये जा सकते हैं।

संहिता के अनुसार प्रत्येक दिन में काम की अवधि इतनी तय की जाएगी कि वह तय घंटों से आगे न बढ़े, इस तरह की अवधि के भीतर, ऐसी अवधि में ऐसे अंतराल के साथ, उचित सरकार द्वारा अधिसूचित किया जा सकता है।

इस गड़बड़झाला को देखें- आठ घंटे कार्य दिवस की मौजूदा सीमा को गोलमाल रखकर काम के घंटे तय करने के लिए इसे सरकार पर छोड़ दिया। इस प्रकार सामान्य कार्य दिवस में बिना डबल ओवरटाइम दर का भुगतान किए अधिक घंटे काम करने का रास्ता बना दिया।

यही नहीं, अब नौकरी घंटों या दिन के हिसाब से भी दी जा सकेगी, महीने के हिसाब से पगार की कोई बाध्यता नहीं रह जाएगी।

असल में वेतन घटेगा

वेतन संहिता की नियमावली के तहत तमाम भत्ते कुल सैलरी के 50 फीसदी से अधिक नहीं हो सकते हैं। इसकी वजह से मज़दूरों के हाथ में आने वाला वेतन यानी टेक होम सैलरी कम हो जाएगी।

भविष्य निधि के लिए केवल उन प्रतिष्ठानों को ही मान्य किया गया है, जहां 20 या अधिक कर्मचारी हों, जबकि लाखों सूक्ष्म और लघु उद्यमों को इसके दायरे से बाहर कर दिया गया है।

में बदलाव करने के दायरे को बढाते हुए अब उसमें वैश्विक व राष्ट्रीय महामारी को भी शामिल कर लिया गया है। अब कोरोना जैसी महामारी की स्थिति में मज़दूरों को भविष्य निधि, बोनस व कर्मचारी राज्य बीमा (ईएसआई) पर सरकार रोक लगा सकती है।

( मेहनतकश की खब़र से साभार)

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Abhinav Kumar

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