नया लेबर कोड क्यों हैं घातक?: 1 अप्रैल से कैसे बंधुआ हो जाएगा मज़दूर- भाग:3
क्या फर्क पड़ेगा – कुछ बानगी देखें-
न्यूनतम वेतन निर्धारण पर धोखाधड़ी
वेतन श्रम संहिता में न्यूनतम वेतन तय करने के मानदंडों को ही समाप्त कर दिया गया है। पीस रेट को बढ़ावा देने के साथ आधे या घंटे के आधार पर भी काम कराने व मज़़दूरी देने का क़ानून बना है। काम के घंटे 12 करने और विशेष स्थितियों में 16 घंटे भी काम कराने तक की छूट दे दी गई है।
इंजीनियरिंग, होटल, चूड़ी, बीड़ी व सिगरेट, चीनी, सेल्स एवं मेडिकल रिप्रेंजेटेटिव, खनन कार्य आदि तमाम उद्योगों के श्रमिकों की विशिष्ट स्थितियों के अनुसार उनके लिए पृथक वेज बोर्ड बने हुए है, जिसे नया कोड समाप्त कर देता है।
यही नहीं न्यूनतम मज़़दूरी तय करने में श्रमिक संघों को मिलाकर बने समझौता बोर्डों की वर्तमान व्यवस्था को भी खत्म कर दिया गया है।
संहिता में आपातकाल की स्थिति में बदलाव करने के दायरे को बढाते हुए अब उसमें वैश्विक व राष्ट्रीय महामारी को भी शामिल कर लिया गया है। अब कोरोना जैसी महामारी की स्थिति में मज़दूरों को भविष्य निधि, बोनस व कर्मचारी राज्य बीमा (ईएसआई) पर सरकार रोक लगा सकती है।
यूनियन के अधिकार होंगे सीमित
नये संहिता के तहत श्रमिकों के लिये ट्रेड यूनियन बनाना या हड़ताल पर जाना मुश्किल बनाया गया है। कई बाधाओं के साथ संगठित क्षेत्र में सिर्फ कर्मचारियों को यूनियन बनाने की मंजूरी होगी और किसी बाहरी व्यक्ति को श्रम संगठन का अधिकारी नहीं बनाया जा सकता। केवल असंगठित क्षेत्र में दो बाहरी प्रतिनिधि ट्रेड यूनियन के सदस्य हो सकते हैं।
यूनियन के अधिकार और सीमित हुए हैं। यूनियनों की मान्यता मालिकों व सरकार पर निर्भर होगी। यहाँ तक कि यूनियन के सामूहिक माँगपत्र पर मालिक एक व्यक्ति से भी समझौता कर सकता है।
हड़ताल करना दण्डनीय अपराध
हड़ताल लगभग असंभव होगा, 15 दिन की जगह 60 दिन की नोटिस देने की बाध्यता होगी, समझौता वार्ता समाप्त होने के 7 दिन तक हड़ताल करना मान्य नहीं होगा। किसी उद्योग में पचास प्रतिशत या उससे अधिक श्रमिकों द्वारा एक निश्चित दिन पर अवकाश को हड़ताल माना जाएगा।
इतना ही नहीं हड़ताल के लिए मज़दूरों से अपील करना भी गुनाह होगा, जिसके लिए भारी जुर्माना और जेल दोनों होगा। हड़ताल गैरकानूनी होने पर 25 से 50 हजार रुपए तक का जुर्माना या जेल अथवा दोनों हो सकता है। हड़ताल का सहयोग करने वालों पर 50 हजार से दो लाख तक का जुर्माना अथवा जेल या दोनो हो सकता है।
मालिकों पर दण्ड नहीं
मालिकों द्वारा स्वतः प्रमाणित दस्तावेज को मान्यता होगी। वेतन व बोनस में घोटाले के बावजूद मालिकों पर किसी आपराधिक वाद (क्रिमिनल केस) का प्रावधान खत्म होगा। केवल सिविल वाद दायत हो सकता है और मालिकों पर मामुली जुर्माना लग सकता है।
मालिकों के लिए रजिस्टर रखने के नियम में ढील दी गई है। कंपनियां श्रम अधिकारी द्वारा निरीक्षण की जगह इंटरनेट पर स्वतः प्रमाणित करेंगी। कंपनी द्वारा दी गई रिपोर्ट मान्य होगी।
श्रम विभाग बनेगा फ़ैसिलेटर
श्रम विभाग की परिभाषा बदल गई है। लेबर कमिश्नर चीफ फैसीलेटर और सबसे नीचे लेबर इंस्पेक्टर फैसीलेटर होगा। अब श्रम अधिकारी का काम श्रम कानून के उल्लंघन पर सुगमकर्ता (फैसीलेटर) की होगी। यानी अब उन्हें वास्तव में मालिकों के लिए सलाहकार या बिचौलिया बनकर काम करना होगा।
श्रम न्यायालय होंगे पंगु
श्रम अदालत समेत विभिन्न तरह के मध्यस्थता मंच को पंगु होंगे। लेकिन औद्योगिक पंचाट बने रहेंगे। मज़दूर की बर्खास्तगी पर कोर्ट में केवल रिकार्ड वाले सबूत ही मान्य होंगे।
नौकरी के नये फण्डे- फोक़ट के मज़दूर
नौकरी के नए तरीके – नियत अवधि का रोजगार यानी फिक्स टर्म व फोक़़ट के मज़़दूर नीमट्रेनी को कानूनी मान्यता दी गयी है।
इसी लिए नये क़ानूनों के लागू होने से पूर्व तमाम कम्पनियाँ पुराने श्रमिकों की तेजी से छँटनी के लिए वीआरएस/वीएसएस जैसी स्कीमें लागू कर रहीं हैं, ताकि स्थाई स्थाई श्रमिकों से छुट्टी पाकर 3-4 साल के फिक्स टर्म में भर्ती कर सकें। यह संविदा आधारित नौकरी का फण्डा है।
इसी तरह ठेका मज़दूरों को हटाकर फोक़ट के मज़दूर- नीम ट्रेनी भर्ती हो रहे हैं।
( मेहनतकश की खब़र से साभार)
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