बिना नए घर के झुग्गी नहीं छोड़ेंगे- दिल्ली के झुग्गीवासियों ने आंदोलन के लिए कमर कसी
दिल्ली में रेलवे पटरियों के आस पास बसीं 48000 झुग्गियों को हटाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का विरोध बढ़ता जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की पीठ ने ये आदेश 31 अगस्त को दिया था। पीठ की अगुवाई जस्टिस अरूण मिश्रा कर रहे थे, जिनके कई फैसलों पर विवाद बना हुआ है। इस आदेश के दो दिन बाद ही जस्टिस मिश्रा रिटायर हो गए।
ताज़ा फैसले में उस प्रतिबंध की सबसे अधिक आलोचना हो रही है जिसमें कहा गया है कि कोई राजनीति दल हमें उजाड़ने से बचाने आएगा तो ये बात कोर्ट बर्दाश्त नहीं करेगी और न ही कोई दूसरी अदालत उजाड़ने के खिलाफ स्टे आर्डर दे सकती है।
शकूर बस्ती में रेलवे गोडाउन के किनारे बसी झुग्गियों के बस्ती सुरक्षा मंच की सचिव ज्योति पासवान का कहना है कि अपने ही पुराने आदेशों, संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित जीवन के मौलिक अधिकार और जिंदा रहने के प्राकृतिक अधिकार को रौंदते हुए सुप्रीमकोर्ट ने यह आदेश दिया है।
मंच ने एक पर्चा जारी कर कहा है कि उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि यदि हमें उजाड़ दिया जाएगा, तो हम अपने बाल-बच्चों, भाई-बहनों और बूढ़े-बाप के साथ कहां जाएंगे। अदालत ने रहने की नई जगह का इंतजाम किए बिना ( पुर्नवास किए बिना) हमें 3 महीने के अंदर पूरी तरह उजाड़ देने का आदेश दे दिया। ऐसे करके अदालत ने खुद ही अपने पुराने आदेशों का भी उल्लंघन किया है।
- दिल्ली के 48000 झुग्गी वासी क्या पराए हैं? क्या हमें इनके साथ खड़ा नहीं होना चाहिए?
- सुप्रीम कोर्ट का एक और जनविरोधी फैसला, दिल्ली की 48000 झुग्गियों को 3 महीने में उजाड़ने का आदेश
ज्योति कहती हैं, “हमें यह भी समझ में नहीं आर रहा है कि कोरोना के इस महामारी के काल में हमें हटाने की इतनी जल्दी न्यायाधीशों को क्यों पड़ी थी?”
बस्ती सुरक्षा मंच का कहना है कि यह सबकुछ स्वच्छता, पर्यावरण , अतिक्रमण हटाने और विकास के नाम पर किया गया। उनकी नजर में हम लोग अस्वच्छता और प्रदूषण फैलाने वाले अतिक्रणकारी लोग हैं।
ज्योति के अनुसार, “हम सभी को इस बात का अहसास है कि यदि हमें बिना नया आवास उपलब्ध कराए हटा दिया गया, तो हम दर-बदर की ठोकर खाने को विवश हो जाएंगे, हम छत विहीन जाएंगें, हमारे पास दिन भर खट कर आने के बाद सिर टिकाने के लिए कोई जगह नहीं होगी। हमारे बच्चों के पास बरसात-धूप और ठंड से बचने के लिए कोई ठिकाना नहीं होगा। हम यहां-वहां मारे-मारे फिरेंगे। फुटपाथों और पुलों के नीचे या खुले आसमान तले जीने को विवश होंगे।”
दूसरी ओर सोशल मीडिया पर प्रत्यक्ष रूप से सुप्रीम कोर्ट के और परोक्ष रूप से केंद्र सरकार के इस फैसले के पक्ष में अभियान चलाया जा रहा है और आदेश को सही ठहराते हुए झुग्गीवासियों के ख़िलाफ़ दूषित माहौल पैदा किया जा रहा है।
इस संबंध में मंच का कहना है कि “हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है कि हममें से कुछ लोग यह मानते हैं कि जहां हम रहते हैं, जहां हमारी झुग्गियां हैं, घर हैं, उस पर हमारा हक नहीं है, वह सरकार की जमीन है, वह रेलवे की जमीन है। हमें सोचने का यह तरीका बदलना होगा, हमें यह समझना होगा कि यह देश उतना ही हमारा है, जितना किसी और का।”
“सरकार की कोई जमीन नहीं होती है, सारी जमीन इस देश की जनता की है। संविधान के अनुसार जनता ही असली सरकार है। हमारे वोटों से और हमारे नाम पर बनी ये सरकारें जब चाहती हैं ये जमीने बड़े पूंजीपतियों-कारोबारियों को को सौंप देती हैं, और आज भी सौंप रही हैं, तो यह जमीन हमें क्यों नहीं मिल सकती? इस पर रहने का हक हमें क्यों नहीं प्राप्त हो सकता?”
- खट्टर सरकार ने गुड़गांव की 600 झुग्गियों पर बुलडोज़र चलवाया, 2000 झुग्गियां तोड़ने की योजना
- जेल की बैरकों जैसे वर्कर हॉस्टल, महिला हॉस्टल में 8 बजे के बाद जड़ दिया जाता है ताला
उल्लेखनीय है कि साल 2017 में शकूर बस्ती की कुछ झुग्गियों को भारतीय रेलवे के कर्मचारियों ने अचानक तोड़ दिया था और उसे लेकर भारी विरोध के बीच दिल्ली हाईकोर्ट ने स्टे ऑर्डर दे दिया था। तबसे यथा स्थिति क़ायम है।
वरिष्ठ वकील कमलेश कुमार का कहना है कि उस समय रेलवे ने इन झुग्गियों को दूसरी जगह ले जाने और पुनर्वास करने में आने वाले खर्च को वहन करने का वादा किया था, लेकिन ताज़ा आदेश के बाद उस स्टे आर्डर का अब कोई मतलब नहीं रह गया है।
बस्ती सुरक्षा मंच ने कहा है कि ‘यदि हम एकजुट नहीं होंगे, यदि हम नहीं लड़ेंगे, तो कोई दूसरा नहीं हमारे लिए लड़ने आएगा, लेकिन यदि हम अपनी झुग्गियों को बचाने के लिए एकजुट होकर लड़ने के लिए तैयार हो गए, तो वोट की लालच में ही सही कुछ पार्टियां भी हमारे साथ आएंगी।’
मंच के अनुसार, “हमें एकजुट होकर अच्छे दिनों का वादा करने वाले, सबका साथ सबका विकास की बात करने वाले और सबके लिए आवास का नारा देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूछना होगा कि हमारे सबसे बुरे दिन में आप हमारे साथ हैं या नहीं, क्या हुआ आपके वादों का?”
मंच की ओर जारी पर्चे में ये भी लिखा है कि “जहां झुग्गी वहीं मकान का वादा करने वाली आम आदमी पार्टी और केजरीवाल साहब से हमें पूछना होगा कि आप हमें उजाड़ने से बचाएंगे या नहीं, आप अपने वादे पर कायम हैं या नहीं, आप हमारे संघर्ष में हमारा साथ देंगे या नहीं? आप हमें नया आवास उपलब्ध कराएंगे या नहीं?”
- एक रिक्शे वाले पर योगी सरकार ने लगाया 21 लाख रु. का ज़ुर्माना, न भरने पर दोबारा गिरफ़्तार
- ‘मोबाइल बेचकर राशन ले आए और फांसी लगाकर कर ली आत्महत्या’
मंच की सचिव ज्योति पासवान ने कहा कि राजीव आवास योजना के नाम पर बने और खाली पड़े 50 हजार आवासों को केजरीवाल सरकार को तुरंत झुग्गीवासियों को आवंटित कर देना चाहिए।
मंच ने सामाजिक न्याय के नाम पर बनी पार्टियों के नेताओं मायावाती, अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव और कांग्रेस से भी पूछा है कि इस पर अभी तक उनका रुख़ क्यों नहीं सामने आया।
मंच ने राजनीतिक दलों के दफ्तरों के बाहर धरना-प्रदर्शन और दिल्ली विधान सभा का घेराव करने की भी चेतावनी दी है।
संसद का आगामी सत्र 14 सितंबर से शुरू होने जा रहा है और मंच ने सांसदों से अपील की है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के ख़िलाफ़ क़ानून पास कर झुग्गीवासियों को बेघर होने से बचाने की कार्यवाही की जाए।
मंच का कहना है कि जबतक उन्हें नया आवास मिल नहीं जाता यानी पुनर्वास की योजना नहीं बन जाती, वे अपनी झुग्गी नहीं छोड़ेंगे।
- वर्कर्स यूनिटी को आर्थिक मदद देने के लिए यहां क्लिक करें
- वर्कर्स यूनिटी के समर्थकों से एक अर्जेंट अपील, मज़दूरों की अपनी मीडिया खड़ी करने में सहयोग करें
(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)