बिना पोस्टमार्टम ही गंगा में बहती लाशों को जला दिया गया
12 मई की सुबह बिहार के बक्सर जिले में गंगा नदी में बड़ी संख्या में लाशें बहती हुई नजर आईं। वहां के लोगों के लिए यह नजार नया नहीं है। वे अक्सर नदी में लाश देखते हैं लेकिन इतनी अधिक संख्या में बहती लाशें और इनके साथ आया कोरोना का खतरा स्थिति को भयावह बनाता है। देर नहीं लगनी थी और इस स्थिति ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान अपनी तरफ खींच लिया।
बिहार सरकार का ध्यान इलाके में कोरोना के खतरे को कम करने की जगह इन लाशों को पड़ोसी उत्तर प्रदेश का बताने पर है। उत्तर प्रदेश भी खुद को बचाने का सारा जतन कर रहा है। वहीं केन्द्र सरकार ने गंगा के किनारे के सभी राज्यों को सख्त निगरानी करने और लोगों को लाशें नदी में डालने से रोकने के लिए कहा है।
वहीं बिहार बॉर्डर से सटे उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में भी गंगा नदी में 12 सड़ी हुईं लाशें तैरती हुई मिली हैं। इन लाशों का जिला प्रशासन की तरफ से अंतिम संस्कार करा दिया गया। इस बारे में आधिकारिक बयान सामने आया कि, ”लाशों की कोई सटीक संख्या नहीं है। जैसे ही लाश मिली उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। इन लाशों की पहचान नहीं की जा सकी है।” इन लाशों का सैंपल कोरोना टेस्ट के लिए नहीं लिया गया और नाही इनका पोस्टमार्टम हुआ। इस बारे में बलिया के एसपी ने कहा, ”अगर ये कोविड मरीज होते तो वे अस्पतालों में भर्ती होते। लाशें काफी पुरानी और फूल चुकी थी इस वजह से उनका पोस्टमॉर्टम भी नहीं हो सकता था। इनमें से कुछ आधी जली हुई भी थी।” वहीं मंगलवार को गाजीपुर में गंगा नदी में 25 लाशें प्राप्त हुई हैं। उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार में गंगा किनारे के इलाकों का कुछ ऐसा ही हाल है।
नदियों में लाशों के बहाए जाने के कई कारण हो सकते हैं। जैसे, गरीब व्यक्ति अंतिम संस्कार में लकड़ियों का पूरा खर्चा वहन नहीं कर पाता है। इस सूरत में आधी जली लाशों को नदी में बहा देता है। पूरी चिता जलाने में वैसे तो करीब आठ हजार रुपये लगते हैं लेकिन इस महामारी के समय यह खर्चा बढ़ कर 15 हजार रुपये हो गया है। वहीं कुछ मामले जिसमें सांप के कांटने से मौत होती हैं उसमें लाश को जलाने की जगह नदी में बहाने का विकल्प चुना जाता है। कोरोना से हुई मौतों को कुछ लोग अपनी प्रतिष्ठा से भी जोड़ रहे हैं जिसके चलते भी कुछ लाशों को नदियों में बहाया जा रहा है। ये सभी बातें एक तथ्य की तरफ साफ तौर पर इशारा करते हैं कि यहां कोई इलेक्ट्रिक श्मशान नहीं है।
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