होंडा का ग्रेनो प्लांट को बाउंसरों की मदद से दो महीने पहले ही खाली करा लिया गया था, वर्करों का आरोप
बुधवार को खबर आई कि होंडा कार लिमिटेड अपने ग्रेटर नोएडा प्लांट में मैन्युफैक्चरिंग बंद करेगी। फिलहाल कंपनी के बिजनेस से जुड़े दूसरे काम यहां से होते रहेंगे लेकिन मैन्युफैक्चरिंग का काम राजस्थान के टपूकड़ा प्लांट में ही होगा।
इस योजना को अंजाम देने से पहले होंडा ने अपने वर्करों के बारे में कुछ नहीं सोचा। कपंनी में काम चुके विजय रावत ने बताया कि कंपनी इस साल फरवरी से ही वर्करों के लिए वीआरएस स्कीम लाने की योजना बना रही थी।
लेकिन मार्च में कोरोना के प्रकोप के चलते इस योजना को अंजाम नहीं दिया जा सका। कोरोना के बाद हालात जब थोड़े ठीक होने लगे तो कंपनी के मैनेजमेंट ने होंडा की आंतरिक यूनियन, होंडा कार सर्विस संघ के जरिए वर्करों को अनफिट डिक्लेयर कर नौकरी से निकालने की योजना पर काम शुरू किया।
सितंबर अंत तक आते-आते कंपनी ने एक-एक वर्कर को अलग से बुलाकर एचआर से अपना हिसाब कराने को कहा। इस पर ज्यादातर वर्करों का कहना था कि वे नौकरी करना चाहते हैं, लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई।
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जिसने नानुकुर करने की कोशिश की, उसके लिए बाउंसरों का सहारा भी लिया गया। इस तरह से 12 अक्टूबर तक प्लांट को वर्करों से पूरी तरह खाली करा लिया गया।
एक-एक कर जब 900 वर्करों की नौकरी गई तो वे ज़िले के श्रम विभाग पहुंचे, वहां उन्हें जिला प्रशासन के मार्फत पता चला कि कंपनी ने सितंबर में अपने प्लांट में इस तरह के किसी वीआरएस स्कीम लाने की योजना की जानकारी श्रम विभाग को नहीं दी थी।
वर्करों का यह भी कहना है कि नौकरी छीनकर सेटलमेंट के बाद उन्हं जो राशि दी गई, वह उससे कम थी, जो उन्हें कंपनी के जापान हेडक्वार्टर से जारी की गई थी।
वर्करों का आरोप है कि कंपनी ने अपने खास अधिकारियों को प्लांट बंद होने से पहले ही बचाने की तरकीब ढूंढ ली थी।
प्राइवेट सेक्टर में वीआरएस जैसी कोई स्कीम होती नहीं लेकिन कंपनी ने अपने खास अधिकारियों को या तो मोटा पैसा दिया या फिर उनकी नौकरी बरकरार रख उन्हें टपूकड़ा प्लांट भेज दिया था। दूसरी ओर वर्कर खाली बैठे हैं या दूसरी नौकरी की तलाश कर रहे हैं।
वर्करों में यूनियन को लेकर भी असंतोष है जिन पर वे मैनेजमेंट के हाथों बिक जाने का आरोप लगा रहे हैं।
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