रैपिड रेल प्रोजेक्ट में काम कर रहे मज़दूरों को नहीं मिली दो महीने से सैलरी, घर लौटने को मज़बूर
By खुशबू सिंह
चिराग तले अंधेरा होने की कहावत भारत सरकार की परियोजनाओं में भी साफ़ दिखाई दे रही है। निजी कंपनियों को नसीहत देने के बावजूद दिल्ली से मेरठ के बीच देश के पहले रैपिड रेल प्रोजेक्ट में काम कर रहे मज़दूरों को दो माह से वेतन नहीं दिया गया है।
भुखमरी के कगार पर पहुंचे मज़दूर अब अपने बकाए को भी छोड़कर घर वापसी के लिए मज़बूर होने लगे हैं।
इस प्रोजेक्ट में काम कर रहे एक वर्कर नारायण ने वर्कर्स यूनिटी को बताया कि ‘उन्हें पिछले दो महीने से वेतन नहीं दिया गया है। ठेकेदार से जब वेतन की बात करो तो लॉकडाउन का हवाला देकर बात को टाल देता है। परिवार में पांच लोग हैं अगर इसी तरह वेतन में देरी होती रही तो परिवार भुखमरी के कगार पर आ जाएगा।’
उन्होंने बताया कि ‘उनके दो साथी गफूर और नईम भी उन्हीं के साथ 8 फ़रवरी से यहां मज़दूरी कर रहे हैं। उन्हें भी दो माह से वेतन नहीं दिया गया है। इसीलिए वे लोग अब अपने राज्य बिहार के पूर्णिया जिला जा रहे हैं।’
नारायण अपने इन्हीं साथियों को बस पर बिठाने के लिए गाजियाबाद में मेरठ रोड पर स्थित राधास्वामी सत्संघ ब्यास आए थे। यहीं से यूपी सरकार प्रवासी मज़दूरों को उनके घर पहुंचा रही है।
देशव्यापी लॉकडाउन के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपील की थी कि किसी भी कर्मचारी का वेतन कोई भी नियोक्ता न काटे।
प्रधानमंत्री की अपील के बाद 29 मार्च को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक आदेश भी जारी किया था कि किसी भी कर्मचारी के वेतन में किसी भी तरह की कोई कटौती नहीं होगी।
इसके बावजूद इस प्रोजेक्ट में काम कर रहे मज़दूरों को वेतन नहीं मिला है।
लॉकडाउन 4.0 की घोषणा करते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ पर खासा जोर दिया था। जबकि इस प्रोजेक्ट का टेंडर भारत सरकार ने ही विदेशी कंपनी एपको को दिया है।
चौथे लॉकडाउन तक आते आते सोशल डिस्टेंसिंग से आत्मनिर्भरता का राग अलापने वाली मोदी सरकार ने अपने ही प्रोजेक्ट में मज़दूरों के शोषण से आंखें मूंद लिया है।
मज़दूरों की सैलरी दो महीने से अटकी है लेकिन सरकार ने अपने ही विभाग की निगरानी में चल रहे प्रोजेक्ट को नज़रअंदाज़ कर दिया है।
एपको का हेडक्वार्टर अमरीका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में है। इस कंपनी की शुरुआत मर्जरी क्रॉस नाम की महिला ने 1984 में की थी।
दिल्ली में सराय काले खां से मेरठ के मोदीपुरम तक के 82 किलोमीटर लंबे इस प्रोजेक्ट की लागत क़रीब 30 हज़ार करोड़ रुपये (3947.7 मिलियन डॉलर) है। इसकी डेडलाइन 2024 तक बताई गई है।
(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)