“खुद का भी पेट नहीं भर पा रहे ,घर वालों को क्या भेजें” : लॉकडाउन के एक साल बाद

“खुद का भी पेट नहीं भर पा रहे ,घर वालों को क्या भेजें” : लॉकडाउन के एक साल बाद

कोविड-19 महामारी के बाद लगे लॉकडाउन के दौरान घर वापस गए अधिकांश मजदूर आजीविका की तलाश में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) लौट तो आये हैं लेकिन उनके लिये रोजगार ढूंढ पाना अब बेहद मुश्किल हो गया है।

खासकर निर्माण स्थलों पर काम करने वाले मज़दूरों की स्थिती सबसे ज्यादा खराब है। घर से वापस काम की तलाश में लौटे मज़दूरों के लिये रोज कुछ कमा पाना असंभव हो चुका है।

लेबर चौकों पर काम की तलाश में खड़े मज़दूरों का कहना है कि “दिन- दिन भर धूप में काम की तलाश खड़े रहने बाद भी हम खाली हाथ घर लौट रहें है। अपने कमरों का किराया भी चुकाने लायक काम नहीं मिल पा रहा है।”

नोएडा-गाजियाबाद सीमा स्थित लेबर चौक पर काम की तलाश में खड़े बिहार के सितामढ़ी जिले के रहने वाले हरिहर यादव ने बताया कि “´वापस तो लौट आये हैं, लेकिन हालात अब पहले जैसे नहीं रहें। लॉकडाउन में ढील होने के बाद दिल्ली काम के तलाश में आ तो गये पर अब काम ढूंढ पाना मुश्किल होता जा रहा है। कमरे का किराया देने भर भी पैसे नहीं कमा पा रहा।”

इंडिया टूडे की रिपोर्ट के मुताबिक हरिहर की तरह ही पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से आए हजारों मज़दूर इन जगहों पर काम मिलने के इंतजार में खड़े दिख जायेंगे।

बहुत से मज़दूरों ने बताया कि काम की स्थिती को देखते हुए कई लोगों को अपने परिवार को वापस गांव पहुंचाना पड़ा। क्योंकि सारे लोगों का खर्च निकाल पाना संभव नहीं हो पा रहा है।

बिहार के कटिहार के रहने वाले एक मजदूर मोहम्मद इमरान ने कहा ” हमारे पास कोई और विकल्प नहीं है, इसलिए हमें यहां दूबारा आना पड़ा। पर अब यहां भी स्थिती वैसी ही होती जा रही है। अपना खर्च निकाल पाना मुश्किल हो गया है परिवार को क्या ही भेजे।”

ग्रेटर नोएडा में निर्माणाधीन ऊंचे अपार्टमेंट्स के पास मजदूर शिविरों में लॉकडाउन के दौरान अपने गृहनगर के लिए रवाना हुए ज्यादातर मजदूर लौट आए हैं ।

इस इलाके के मज़दूरों के लिये ग्रेटर नोएडा में निर्माणाधीन ऊंचे अपार्टमेंट्स ही रोजगार का मुख्य जरिया रहे हैं, लेकिन अपार्टमेंटस के काम फिलहाल लगभग ठप होने से रोजगार मिलना मुश्किल हो गया है।

मज़दूरों ने बताया कि “लॉकडाउन से पहले एक दिहाड़ी मजदूर रोज 550 रुपये कमा लेता था। लेकिन अब कम नौकरी और बेरोजगार मजदूरों के बड़ी संख्या के कारण उन्हें महज 450 रुपये प्रतिदिन मिल रहे हैं।”

एक मज़दूर ने बात करते हुए कहा कि  “ठेकेदार का कहना है कि उसके पास पर्याप्त नौकरियां नहीं हैं। जो भी उपलब्ध है वह कम दरों पर है और पूरे महीने के लिए भी नहीं हैं।”

पश्चिम बंगाल से आए ग्रेटर नोएडा वेस्ट के एक मजदूर बस्ती में रह कर दिहाड़ी करने वाले मोहम्मद बाबुल ने बताया कि “मुश्किल से खुद के खाने भर कमाई हो पा रही है, घर वालों को क्या भेंजु कुछ समझ नहीं आ रहा है।”

घरों में पेटिंग काम करने वाले चिल्ला मोहम्मद का कहना है कि  “लॉकडाउन से पहले एक समय था जब मैं 15,000 रुपये-20,000 रुपये महीने कमाता था। लेकिन अब, 10,000 रुपये भी कमाना मुश्किल है क्योंकि निर्माण कार्य ठीक से फिर से शुरू नहीं हुआ है।

रियाल्टारों का दावा है कि ज्यादातर मजदूर वापस लौट चुके हैं ,लेकिन रियल स्टेट सेक्टर नकदी की भारी कमी का सामना कर रहा है।

नारेदको, यूपी और सुपरटेक ग्रुप के अध्यक्ष आरके अरोड़ा ने कहा कि “मज़दूर तो वापस लौट चुके हैं लेकिन ये पूरा सेक्टर नकदी संकट के गिरफ्त में है और इसे दुबारा खड़ा होने के लिये बड़ी फंडिग की जरुरत है।”

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Abhinav Kumar

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