वर्कर्स यूनिटी हेल्पलाइन के मार्फ़त प्रवासी मज़दूरों को 8.5 लाख रु. की मदद पहुंचाई गई
By वर्कर्स यूनिटी टीम
लॉकडाउऩ के दौरान शुरू की गई वर्कर्स यूनिटी हेल्पलाइन के ज़रिए क़रीब 3,000 मज़दूर परिवारों को राशन पहुंचाया गया।
बीते मार्च में अचानक घोषित लॉकडाउन के समय वर्कर्स यूनिटी की पहल पर हेल्पलाइन की स्थापना की गई थी और क्राउड फंडिंग और जागरूक लोगों की मदद से इकट्ठा हुए 8,50,298/- रुपये की मदद पहुंचाई गई।
हालांकि ये आंकड़ा वो है जो हेल्पलाइन के फंड से सीधे मदद दी गई, लेकिन अगर कोआर्डिनेशन और अन्य संगठनों से मिलकर जो मदद पहुंचाई गई है उसे शामिल करें तो लाभान्वितों की संख्या दोगुनी बैठेगी जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हेल्पलाइन के ज़रिए लाभान्वित हुए।
मुंबई, नागपुर, लुधियाना, जम्मू-कश्मीर तक में या यूपी के दूर दराज़ के गांव तक तो सीधे तौर पर या स्थानीय लोगों से बात कर मदद पहुंचाई गई। अप्रैल के महीने में गुड़गांव और मानेसर की क़रीब आधा दर्जन कंपनियों में बकाया सैलरी का भुगतान करवाने में भी मदद की गई।
पहले लॉकडाउन में 15 दिन और 10 दिन का राशन वितरित किया गया, जबकि बाद में हफ़्ते और कुछ दिनों तक का भी राशन दिया गया।
हेल्पलाइन के सदस्यों ने मार्च के अंतिम सप्ताह से ही सड़कों पर निकले मज़दूरों को मदद पहुंचाने में जुट गए थे।
इसके लिए दिल्ली पुलिस से टीम के सदस्यों के लिए कर्फ्यू पास हासिल कर लिया गया था।
वर्कर्स यूनिटी के शुभचिंतकों ने हेल्पलाइन के सदस्यों को अपनी कारें दीं जिसकी वजह से टीम की पहुंच, हरियाणा में गुड़गांव, मानेसर और कापसहेड़ा से लेकर उत्तर प्रदेश में ग़ाज़ियाबाद, नोएडा, हापुड़, ग्रेटर नोएडा और दिल्ली के दूर दराज़ के इलाक़ों तक भी हो गई थी।
हेल्पलाइन को सर्वाधिक फ़ोन कॉल हरियाणा के मानेसर, यूपी में ग़ाज़ियाबाद के खोड़ा कॉलोनी और दिल्ली के सीलमपुर और गांधीनगर से आए और वहां थोड़ी बहुत मदद पहुंचाई गई लेकिन वहां लोगों की संख्या इतनी थी कि मदद करना संभव नहीं हो पाया।
कम्युनिटी किचन या मज़दूर रसोई
यही वजह है कि चाहे झज्झर में फारुक नगर में रोहतक से पैदल लौटते मज़दूरों की मदद हो पाई बल्कि मानेसर में तीन कम्युनिटी किचन और बाद के समय में इंकलाबी मज़दूर केंद्र के नेतृत्व में गुड़गांव के सूरतनगर में एक कम्युनिटी किचन की शुरुआत की हुई।
मानेसर के कासन की ढाढ़ी गांव में तीन लॉज में कम्युनिटी किचन बना जिनकी क्षमता क़रीब 200 लोगों के खाने की थी। सूरतनगर में आईएमके ने पहले 1000 लोगों के भोजन की व्यवस्था की जो बाद में ये बढ़कर 1500 पहुंच गई।
ग्रेटर नोएडा के छोर पर बसे कासना औद्योगिक क्षेत्र में सासाराम के मज़दूरों को बड़ी संख्या में राशन पहुंचाने का काम किया गया।
ग़ाज़ियाबाद, नोएडा और दिल्ली के बीचो बीच बसे खोड़ा कॉलोनी में ही क़रीब 300 मज़दूर परिवारों को राशन पहुंचाया गया। नोएडा सेक्टर 15 में नया बांस गांव में पश्चिम बंगाल और बिहार के मज़दूरों को राशन की मदद की गई।
ग़ाज़ियाबाद में रेलवे स्टेशन के पास रहने वाले मध्य प्रदेश के कंस्ट्रक्शन वर्करों के डिस्ट्रेस कॉल पर टीम के सदस्यों ने वहां पहुंच कर 30 परिवारों को राशन वितरित किया।
दिलचस्प शुरुआत
इसी तरह बड़ी संख्या में दिल्ली के लक्ष्मी नगर में यमुना खादर में बसी झुग्गियों में, बसंत विहार के जेजे कैंप में और ओखला में बड़े पैमाने पर राशन वितरण किया गया।
जैसे जैसे ये काम आगे बढ़ा हेल्पलाइन में जुड़कर काम करने वालों की संख्या बढ़ती गई और साथ ही फंड देने वाले भी।
बताते चलें कि लॉकडाउन की घोषणा के बाद मज़दूरों की मदद के लिए वर्कर्स यूनिटी के साथियों ने 24 मार्च को वर्कर्स यूनिटी हेल्पलाइन की शुरुआत की थी।
शुराआती क़रीब पांच दिनों तक बिना किसी फंड के हेल्पलाइन के मार्फ़त मज़दूरों की सूचनाओं का आदान प्रदान किया जाना और स्थानीय सक्रिय टीमों से तालमेल कर मज़दूरों की मदद का प्रयास किया जा रहा था।
इस दौरान क्राउड फंडिंग साइट ‘मिलाप’ के ज़रिए 2.60 लाख रुपये इकट्ठे हुए और दोस्तों मित्रों से सहयोग मिलना शुरू हुआ जिसके बाद मदद में तेज़ी आई।
पैदल जाते मज़दूरों को मदद
24 मार्च के बाद मज़दूरों का जो रेला दिल्ली में उमड़ा तो हेल्पलाइन की टीम ने यूपी बॉर्डर पर आनंद विहार से लेकर लाल कुआं तक पैदल जाते मज़दूरों को पानी और अन्य खाने पीने की चीजें और दवाएं वितरित कीं।
हालांकि इस दौरान नागरिक समाज ने मज़दूरों की काफी मदद की। हर एक किलोमीटर पर खाना खिलाने वाले लोग थे, पानी का इंतज़ाम था। और ये नज़ारा दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश में ग़ाज़ियाबाद के लालकुआं तक था।
लेकिन जैसे ही दो चार दिन बीते और लॉकडाउन को और कड़ा कर दिया गया, लाखों मज़दूर जहां तहां फंस गए।
इसके बाद वर्कर्स यूनिटी का काम थोड़ा और चुनौतीपूर्ण हो गया क्योंकि न केवल एनसीआर से बल्कि देश अन्य औद्योगिक हिस्सों से भी संदेश आने लगे कि मज़दूर फंसे हुए हैं और उनके पास बस एक दो दिन तक का ही राशन बचा हुआ है।
मुख्यतः तीन तरह से हुई मदद
पहले चरण में अप्रैल के पहले सप्ताह की शुरुआत तक सड़क पर पैदल चल रहे मज़दूरों के लिए सत्तू, चना, गुड़, पानी, दवा आदि का इंतज़ाम किया गया। क़रीब क़रीब 15 क्विंटल चना, सत्तू और गुड़ का वितरण किया गया।
दूसरे चरण में जहां तहां फंसे मज़दूरों को राशन उपलब्ध कराया गया। अधिकांश राशन मौके पर पहुंच कर दिया गया।
लेकिन छिटपुट जगहों पर फ़ोन से ही राशन दिया गया जहां बहुत ज़रूरी था और टीम के सदस्य समय कम होने के चलते पहुंच नहीं पाए।
और तीसरे चरण में यानी 20 मई के बाद घर जाने वाले मज़दूरों को सरकार की ओर से चलाए जा रहे ट्रेनों और बसों में बैठाने को लेकर प्रयास किए गए।
बसों और ट्रेनों के लिए मदद
ग़ाज़ियाबाद प्रशासन ने रोज़ाना तीन श्रमिक ट्रेनें 26 मई तक चलाईं।
मेरठ रोड पर राधास्वामी सत्संग ब्यास आश्रम में ट्रांज़िट कैंप बनाया गया था जहां से बसें उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों के लिए जा रही थीं।
वर्कर्स यूनिटी हेल्पलाइन ने आवागमन के लिए एक अन्य हेल्पलाइन जारी की और उसके मार्फ़्त सैकड़ों मज़दूरों को सूचनाएं उपलब्ध कराई गईं कि कहां से कौन सा साधन जा रहा है और दिल्ली बॉर्डर पर फंसे मज़दूरों को आश्रम तक पहुंचाने का काम किया गया।
और इसके लिए हेल्पलाइन के वाहनों और ओला टैक्सी का उपयोग किया गया, क्योंकि रेल हादसे के बाद दिल्ली पुलिस पैदल मज़दूरों को जाने से रोक रही थी।
एक जून से सार्वजनिक परिवहन शुरू कर दिया गया इसलिए इस हेल्पलाइन को भी बंद कर दिया गया।
फंड इकट्ठा करने/करवाने में मदद करने वालों के लिए
क्राउड फंडिंग से क़रीब 2.60 लाख रुपये इकट्ठा हुए। इसके अलावा कई संगठनों, व्यक्तियों ने भी सीधे खाते में पैसे भेजे। छात्र संगठनों ने भी इस काम में आर्थिक सहयोग किया। कई लोगों ने व्यक्तिगत रूप से बड़ी रकम देने की पेशकश की और दिया भी। यहां तक कि चेन्नई और कोलगाता से लोगों ने फंड में पैसे भेजे।
इसी तरह कई व्यक्तियों ने इस काम में मदद की जिनकी लिस्ट बहुत लंबी है और बहुत दूर दराज़ के लोगों ने मदद की।
पूरी टीम के परिचालन में इन दो महीनों में क़रीब 60 हज़ार रुपये से अधिक का खर्च हुआ है, जिनमें कारों के ईंधन से लेकर कार्यालय संचालन तक का खर्च भी शामिल है।
मदद और रिपोर्टिंग साथ साथ
चूंकि हेल्पलाइन का काम इतना व्यस्तता भरा रहा कि अलग से वर्कर्स यूनिटी की रिपोर्टिंग का कोई मौका निकालना नामुमकिन जैसा था।
इसलिए वर्कर्स यूनिटी के साथियों ने मदद और रिपोर्टिंग दोनों कामों में तालमेल बिठाया। टीम की कोशिश रही कि जहां मदद पहुंचाई जाए वहां फ़ेसबुक लाईव किया जाए, वीडियो स्टोरी की जाए और वहां की कहानियां लिखी जाएं।
लेकिन विशेष परिस्थितियों में इस नियम को तोड़ा भी गया। जैसे मारुति के मज़दूरों को लॉज में घुसकर मानेसर के दबंगों ने पिटाई की जिसमें एक मज़दूर का सिर फट गया।
इसकी सूचना मिलते ही, इसकी रिपोर्टिंग के लिए एक टीम दूसरे दिन मानेसर पहुंची। वहां फ़ेसबुक लाईव हुआ और उसे 14 लाख लोगों ने देखा।
इसका असर भी हुआ और अलीहर गांव के सरपंच ने इस मामले पर सफ़ाई भी पेश की।
हेल्पलाइन के सबक
वर्कर्स यूनिटी के अपने छोटे से दो साल के कार्यकाल में सार्वजनिक स्तर पर ऐसा प्रयास पहली बार हुआ है। लेकिन आपातकाल भांपते हुए टीम ने बहुत त्वरित निर्णय लेते हुए बिना संसाधन के भी काम शुरू किया और फिर धीरे धीरे कारवां बनता गया।
हेल्पलाइन की तभी शुरुआत हो गई थी जब आंदोलन और जन संगठनों में काफ़ी उहापोह था कि क्या किया जाए।
शायद इसी का नतीजा था कि कर्फ्यू पास से लेकर फंड की तैयारी का खाका बहुत तेज़ी से सफलता पूर्वक बन गया।
हेल्पलाइन के कोआर्डिनेशन का असर ये रहा कि अनिर्णय की स्थिति में रहने वाले लोग भी प्रेरित हुए और या तो उन्होंने हेल्पलाइन के साथ जुड़कर मदद करनी शुरू कर दी या स्वतंत्र रूप से अपने कार्यक्षेत्र में काम करना शुरू कर दिया।
चूंकि हालात इतने ख़राब थे कि जहां सौ लोगों का राशन लेकर पहुंचते थे वहां हज़ारों की तादाद निकल आती थी, ऐसे में कभी कभी ये कार्य ऊंट के मुंह में जीरे जैसा लगने लगा था।
फिर भी टीम में एक बात पर सहमति थी कि चाहे जो हो, मज़दूर वर्ग के बीच हर हाल में जाना ही होगा और जितना भी संभव हो मदद पहुंचानी ही होगी।
चैरिटी बनाम मज़दूर वर्ग से जुड़ाव का सवाल
हालांकि बाद में ये भी सवाल उठा कि ये सिर्फ चैरिटी है और इससे सरकार को अपनी ज़िम्मेदारियों से बच कर निकल जाने का मौका मिलता है।
लेकिन हेल्पलाइन का सबक यही है कि जनता से संवाद स्थापित करने और ज़मीनी हालात से तालमेल बिठाने केलिए मदद के काम न केवल किए जाएं बल्कि बड़े पैमाने पर किए जाएं।
बाद के दिनों में कई ग्रुपों ने वर्करों को उनके घर भेजने के लिए बसें करने और श्रमिक ट्रेनों में बैठाने का भी काम किया।
कुल मिलाकर सबक ये है कि अगर जनता के बीच नहीं रहा जाए तो इस बात का इल्म भी नहीं होगा कि जनता क्या चाहती है। यानी समस्या का समाधान भी नहीं दिया जा सकता है। दूर से तो ऐसा करना तो बिल्कुल हवा हवाई बात होगी।
जिन संगठनों और व्यक्तियों ने मदद की
वर्कर्स यूनिटी हेल्पलाइन में जिन संगठनों के साथ तालमेल स्थापित किया गया और उन्होंने सीधे या परोक्ष रूप से इस काम में मदद की उनकी लिस्ट लंबी है।
ट्रेड यूनियनों में इंकलाबी मज़दूर केंद्र, मज़दूर सहयोग केंद्र, एनटीयूआई, टीयूसीआई, सीपीआई और बेलसोनिका इम्प्लाईज़ यूनियन का आभार।
चेन्नई से https://tnlabour.in/ वेबसाइट से जुड़े आलोक लाढा और वेंकटेश ने आर्थिक मदद के अलावा कोआर्डिनेशन में मदद की।
दिल्ली के सर्वोदय इनक्लेव रेज़िडेंट्स वेलफ़ेयर एसोसिएशन से शेफ़ाली मित्तल, माइग्रैंट वर्कर्स सॉलिडेरिटी नेटवर्क से बिदिशा बर्मन, बस्ती सुरक्षा मंच से जाह्नवी, पदातीक नारी समाज से पूजा (गुवाहाटी), डॉ देवलीना कोहली (डीयू), सुमति, अथास्तु भव से शिखा और पुणे से चंदन कुमार ने देश भर में मज़दूरों की सूचनाओं का आदान प्रदान करने में महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी निभाई।
कुछ छात्र संगठनों जैसे पिंजरा तोड़ ने आर्थिक मदद भी की।
जिन व्यक्तियों की अहम भूमिका रही उनमें डॉ. एके अरुण, प्रो. रवींद्र गोयल, वासवी अग्रवाल, सुरेंद्र विश्वकर्मा, लखमीचंद प्रियदर्शी, जाह्नवी, डॉ. रज़ा आदि शामिल हैं।
विशेष आभार श्यामवीर (गुड़गांव), ख़ालिद ख़ान, संतोष कुमार, विशाल, इमरान, नन्हें लाल, जनार्दन चौधरी, हिमांशु गैरा, रितिक जावला, खुशबू सिंह, शमीन अलाउद्दीन, संगीता, कमलेश कमल, ध्रुपदी नूर (कोलकाता), चंचल वत्स (गुड़गांव) और कार्तिकेय (दिल्ली), डॉ नीरा जलक्षत्रि को है, जिन्होंने ग्राउंड पर या बैक स्टेज पूरी हिम्मत और लगन से काम किया।
तुषार परमार, अभिषेक परमार, नित्यानंद गायेन, सुशील मानव, आकृति भाटिया, सुनील कश्यप, अभिनव कुमार, गौरव, जसवंत ऐसे नाम हैं जिन्होंने उस समय मदद की जब वाक़ई ज़रूरत आन पड़ी।
इस लिस्ट को अगर बढ़ाएं तो कई परिचित और अपरिचित नामों की एक लंबी फ़ेहरिश्त बन सकती है, जिन्होंने किसी न किसी प्रकार कि हेल्पलाइन में मदद की। उन सभी को शुक्रिया और आभार।
और अंत में..
मज़दूर वर्ग के साथ और एकात्म होने की इस शुरुआत को आगे भी जारी रखा जाएगा, भले ही राशन के मद में आया फंड समाप्त हो गया हो।
इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए वर्कर्स यूनिटी की पहल पर उन मज़दूरों को क़ानूनी मदद करने का फैसला लिया गया है जिन्हें लॉकडाउन के दौरान की सैलरी नहीं मिली और कंपनी खुल जाने के बाद उन्हें निकाल दिया गया।
इसके लिए बकायदा लीगल हेल्पलाइन की शुरुआत की गई है।
वर्कर्स यूनिटी मीडिया प्लेटफ़ार्म की बढ़ती पहुंच की वजह से हेल्पलाइन की आवाज़ दूर दूर तक जाती है और मज़दूर वर्ग दिल खोलकर अपनी बात कहता है।
हेल्पलाइन की अपील के दौरान हमें रोज़ाना सैकड़ों कॉल आना इस बात का प्रमाण है। हम इस काम को आगे भी जारी रखें।
(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं।)