शहर लौटे मजदूरों को नहीं पूरी पगार, गांव में मनरेगा भी अब लाचार
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फैक्ट्रियों में ब्लैकमेलिंग और धोखा, गांव में फांके की नौबत। मजदूरों और बेरोजगार नौजवानों के सामने हालात और सख्त हो चुके हैं। अनलॉक-4 शुरू होने तक गांव पहुंचे मजदूरों का परिवार भूखे मरने की कगार पर पहुंचा तो वे फिर वापस शहरों को दौड़े, लेकिन उनके साथ कंपनियां और ठेकेदार धोखाधड़ी पर उतर आए हैं। ज्यादा काम और पगार कम की मजबूरी में उनका हाल पहले से भी खस्ता हैं। गांव की उम्मीद भी बाकी नहीं बची, क्योंकि मनरेगा का बजट दम तोड़ चुका है।
कुछ न्यूज एजेंसियों का दावा है कि 70 फीसद काम पटरी पर लौट आया है और उत्पादन इकाइयां चालू हो चुकी हैं। ‘मुक्ति मार्ग’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक औद्योगिक क्षेत्र लुधियाना में अब कुछ हद तक काम चालू होने के बाद मजदूरों का वापस लौटना जारी है। रेलों का प्रबंध नाममात्र का होने के कारण अधिकतर मजदूर 1500 से 3000 रुपए खर्च करके बसों के जरिए लौट रहे हैं।
ये भी सूचनाएं आ रही हैं कि मुंबई, गुजरात आदि शहरों में काम करने वाले उत्तर प्रदेश, बिहार के मजदूर भी काम की कमी के चलते लुधियाना आ रहे हैं। हालांकि बाजार में ग्राहकों का सन्नाटा होने से कारखानों में चुस्ती का माहौल नहीं है। चुस्ती सिर्फ मनमानियों की है।
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लुधियाना में हौजरी इंडस्ट्री मालिकों की मनमानी, मजदूरों की पिटाई
लुधियाना के हौजरी इंडस्ट्री मालिकों ने पहले पीस रेट/वेतन बढ़ाने के वायदे करके बसें भेजकर मज़दूरों को गांवों से बुलाया, अब पीस रेट/वेतन घटा रहे हैं और बस के किराए से भी अधिक पैसे वसूल रहे हैं। मुक्ति मार्ग के मुताबिक लगभग महीनाभर पहले बालाजी हौजरी, गुरु विहार, राहों रोड के मालिकों ने मज़दूरों का पीस रेट लगभग आधा घटा दिया और तय समय पर पैसे भी नहीं दिए। इस कारण दर्जियों ने काम बंद करके छुट्टी कर ली। पता लगने पर काम बंद करने के लिए कहने वाले मजदूरों को अपने दफ्तर बुलाकर बुरी तरह पीटा गया। बाहर कहीं शिकायत करने पर वहां काम करने वाली एक मज़दूर औरत के साथ छेड़छाड़ का झूठा केस दर्ज कराने की धमकी दी गई। इस मसले पर कुछ दलालों ने मध्यस्थ बनकर मामला रफा-दफा करा दिया गया पर घटाए गए पीस रेट बढ़ाए नहीं गए।
बिहार के दस मज़दूरों के साथ भी ऐसा ही हुआ, जो बाढ़ की मार झेलते हुए, बिहार सरकार की ओर से कोई मदद ना मिलने के कारण कुछ कमाने की उम्मीद में दो-दो हजार रुपया बस का किराया खर्च करके लुधियाना आए। जब पहले वाली जगह पर जाकर हौजरी मालिक से काम की बात की तो उसने 12 की बजाए 10 हजार वेतन देने की बात कही। इस पर आपत्ति जताई तो मालिकों ने कह दिया कि कौन-सा मैंने तुम्हें बुलाया है।
ऐसा ही एक और वाकया मनजीत टेक्सटाइल, टिब्बा रोड में काम करने वाले मजदूर ने बताया। उसके गांव के कई मजदूर, जो एक हौजरी कारखाने में काम करते थे, मालिक द्वारा बस भेजने पर लुधियाना आ गए। ठेकेदार ने 14000 वेतन देने की बात कही थी। उन्होंने कुछ दिन काम किया जब मालिक को पैसे देने के लिए कहा तो 12000 के हिसाब से पैसे दे दिए गए, वेतन घटाने का मजदूरों ने विरोध किया।
एक मज़दूर ने काम छोड़ दिया और मनजीत टेक्सटाइल में काम करने लगा। दूसरे दिन ठेकेदार उसके कमरे पर आकर बस के किराए के 4000 रुपए मांगने लगा, किए गए काम के पैसे देने से मालिक मुकर गया। हिसाब करने और बस किराए के अधिक पैसे मांगने की बात करने पर ठेकेदार उसका फोन छीनकर ले गया।
मुक्ति मार्ग के राजविंदर का कहना है कि केंद्र व पंजाब सरकारें पहले ही श्रम कानूनों को मालिकों के पक्ष में बदलकर श्रम की लूट तेज करने का रास्ता साफ कर रही हैं। श्रम विभाग मूक दर्शक बना बैठा है।
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मनरेगा का खजाना भी हो गया खाली
इधर, बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार खरीफ फसलों की बुआई पूरी होने के बाद भी कई लोग मनरेगा के तहत रोजगार पाने के लिए कतारों में खड़े हैं।
8 सितंबर तक पिछले पांच महीनों के दौरान इस योजना के लिए आवंटित कुल रकम 101,500 करोड़ रुपये का लगभग 63 प्रतिशत खर्च हो चुका है। चालू वित्त वर्ष में 6 महीने अभी और शेष हैं और ऐसे में विशेषज्ञों का कहना है कि पूरे 100 दिनों का रोजगार मुहैया कराने के लिए योजना के लिए आवंटित रकम दिसंबर या अधिक से अधिक जनवरी के अंत तक खत्म हो जाएगी। अगर सरकार ने चालू वित्त वर्ष में मनरेगा के लिए घोषित अतिरिक्त 40,000 करोड़ रुपये जल्द आवंटित नहीं किए तो मामला बिगड़ सकता है।
सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2020-21 के बजट में मनरेगा के लिए 61,500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था, जो वित्त वर्ष 2019-20 की अनुमानित रकम से 13.3 प्रतिशत कम है। लॉकडाउन में बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर अपने गांव चले गए, जिसके बाद मनरेगा के तहत दिए जाने वाले रोजगारों की काफी बढ़ गई।
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