‘लॉकडाउन का लुत्फ’ ले रहे फेसबुकिया मध्यवर्ग की रूह कांप उठेगी ये पढ़कर – भाग एक

‘लॉकडाउन का लुत्फ’ ले रहे फेसबुकिया मध्यवर्ग की रूह कांप उठेगी ये पढ़कर – भाग एक

By आशीष सक्सेना

‘हमारे पास अनाज इतना ही है कि ज्यादा समय चलाने के लिए दिन में केवल एक बार खाना खा रहे हैं’
– बेंगलुरु में 240 श्रमिकों का समूह

पंजाब के भटिंडा में फंसे बिहार के मजदूर सुजीत कुमार ने 4 दिनों में खाना नहीं खाया था।
– तीन अप्रैल की बात

अपने दो बच्चों को खाना खिलाने फीडिंग सेंटर में 4 घंटे तक लाइन में खड़े रहे, आखिर में केवल चार केले मिल पाए, वही बच्चों को खिलाकर तसल्ली करना पड़ी।
– दिल मोहम्मद, वाहन चालक

हमें सामुदायिक रसोई से कुछ दिनों भोजन मिला, लेकिन बच्चे उसे खाकर बीमार पड़ गए। हम खाना बनाने को राशन खरीदने के लिए पैसा चाहते हैं।
– साजिद अंसारी, मुंबई

बेंगलुरु में फंसी तीन बच्चों विधवा मां भाग्यलक्ष्मी ने कहा, ‘मैं इंदिरा कैंटीन तक पहुंचने में असमर्थ हूं, वहां बहुत भीड़ है।’

नोएडा में 10 वीं कक्षा के छात्र यासमीन ने कहा, ‘हमारे घर में चार बच्चे हैं जिनके लिए हमें दूध की जरूरत है, हम इन दिनों उन्हें चीनी घोलकर पानी पिला रहे हैं।’

तमिलनाडु के कृष्णागिरी जिले में पश्चिम बंगाल के एक प्रवासी श्रमिक शेख असदुल्लाह ने कहा, ‘स्थानीय किराना दुकान हमें ऋण पर किराने का जरूरी सामान दे रही है, लेकिन हमें उसे चुकाना होगा। लॉकडाउन समाप्त होने के बाद हमारे पास घर वापस जाने के लिए कोई पैसा नहीं बचा है।’

रामबली राम और एक अन्य परिवार (कुल आठ सदस्य) मध्य प्रदेश के सिंगरौली में हिंडाल्को संयंत्र के लिए काम कर रहे थे। उन्हें एक स्थानीय संगठन पांच किलो गेहूं दिया, उनके पास गेहूं को आटा बनाने के लिए या नमक और तेल जैसी आवश्यक चीजें खरीदने के लिए नकदी नहीं है।

ऐसी घटनाएं और बयान असंख्य हैं। हम सभी के पास ऐसी ढेरों सूचनाए होंगीं। फिलहाल हम स्टैंडर्ड वर्कर्स एक्शन नेटवर्क (स्वान ) की रिपोर्ट में दर्ज भयावह हालात के बारे में बात करेंगे। ये रिपोर्ट 21 दिन के लॉकडाउन पर आधारित है।

क्रमश: जारी….

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ashish saxena