वर्करों के हितों के मामले में अच्छी रैंकिंग नहीं है अमेरिका की
अन्य औद्योगिक देशों की तुलना में हेल्थकेयर, पेड लीव और अन्य मामलों में पीछे है अमेरिका
ह्यूमन रिसोर्स फर्म जेनेफिटस की ताजा रैंकिंग के मुताबिक, अमेरिका में अन्य विकसित देशों की तुलना में वर्करों को कम लाभ मिलते हैं।
सीएनबीसी के मुताबिक, मजदूरों को मिलने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं, सवैतनिक अवकाश, पिता बनने पर दिए जाने वाले अवकाश, रिटायरमेंट आदि के मामलों में अमेरिका विकसित देशों में निचले नंबर पर है।
इन सुविधाओं के मामले में डेनमार्क, नीदरलैंडस, फिनलैंड, स्वीडन और स्विटजरलैंड टॉप नंबर के देशों में हैं जबकि अमेरिका निचली पायदान वाले देशों जैसे चेक रिपब्लिक, लात्विया, दक्षिण कोरिया और मैक्सिको के साथ है।
हालांकि अमेरिका में यह प्रावधान है कि राज्यों को वर्करों के न्यूनतम भत्तों को बढाने का अधिकार है।
सेंटर फॉर इकनॉमिक एंड पॉलिसी रिसर्च के मुताबिक विकसित देशों में अमेरिका अकेला ऐसा देश है, जो अपने वर्करों को सवैतनिक अवकाश की गारंटी नहीं देता।
दूसरी ओर, यूरोपीय देशों में कानूनी तौर पर वर्करों को साल में 20 दिनों का सवैतनिक अवकाश दिया जाता है, कुछ देशों में तो ऐसे दिनों की तादाद तीस तक हैं।
यही नहीं, औदयोगिक देशों में अमेरिका ही इकलौता देश है, जिसमें नागरिकों के लिए यूनिवर्सल हेल्थकेयर स्कीम लागू नहीं है।
कॉमनवेल्थ फंड के अनुसार, उच्च आय वाले देशों में अपनी अर्थव्यवस्था के आकार के हिसाब से अमेरिका स्वास्थ्य सेवाओं पर सबसे ज्यादा खर्च करता है। इसके बावजूद दूसरे धनी देशों की तुलना में यहां ऐसी मौतों की तादाद ज्यादा है, जिन्हें रोका जा सकता है।
कोविड-19 के दौर में अमेरिका में लाखों बेरोजगार लोगों ने सरकारी भत्ते का लाभ लिया, हालांकि पैसे और इसे दिए जाने वाले पीरियड के लिहाज से यह काफी कम था।
जहां डेनमार्क ने लॉकडाउन में नौकरी गंवाने वाले अपने वर्करों को 104 सप्ताह तक उनके वेतन का 90 फीसद भत्ता दिया , वहीं अमेरिका ने सिर्फ 26 सप्ताह तक बेरोजगार लोगों को भत्ता दिया, वह भी उनके वेतन का केवल आधा हिस्सा था।
जेनेफिटस के मुताबिक, हालांकि अमेरिकी सांसदों ने वर्करों के सवैतनिक अवकाश और न्यूनतम भत्तों के लिए अमेरिकी कांग्रेस में कई विधेयक पेश किए हैं, अगर ये पास हो जाते हैं तो वर्करों को इनसे लाभ मिलेगा।
(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)