मनरेगा से भी कम मज़दूरी में खटने को मज़बूर चाय बगान के मज़दूर

मनरेगा से भी कम मज़दूरी में खटने को मज़बूर चाय बगान के मज़दूर

 कब तक मनरेगा से कम दिहाडी पर खटते रहेंगे असम के चाय बागानों के मजदूर
देश की चाय की नहीं, चाय बागानों के मजदूरों की सुध लें पीएम

असम के 875 बड़े और 2,73,000 से ज्यादा चाय बागानों में आठ लाख से ज्यादा काम करने वाले मजदूर सालों से अपना दैनिक वेतन बढ़ाने की मांग कर रहे हैं।

दो दिन पहले ही एक्टिविस्ट ग्रेटा थन्बर्ग पर निशाना साधते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था कि देश की चाय को बदनाम किया जा रहा है।

चाय बागान के मजदूरों को न्यूनतम वेतन एक्ट 1948 में शामिल नहीं किया गया है, यही वजह है कि उन्हें मनरेगा में काम करने वाले मजदूरों से भी कम पैसा दिया जाता है।

मनरेगा में मजदूरों को प्रतिदिन दो सौ रूपये के करीब दिए जाते हैं, जो हर राज्य में अलग अलग है।

मौजूदा समय में चाय बागान के मजदूरों को एक दिन के 167 रुपये मिलते हैं जबकि मजदूर काफी लंबे समय से मजदूरी को 351.33 रुपये करने की मांग कर रहे हैं।

केरल में चाय के बागानों में काम करने वाले मजदूरों की दिहाड़ी 380.38 रुपये है। कुछ और भुगतान मिलाकर ये और भी ज्यादा हो जाती है. तमिलनाडु में कथित तौर पर ये 333 रुपये प्रति दिन है।

पश्चिम बंगाल में ये अब 202 रुपये प्रति दिन है, बढ़ोतरी से पहले ये 176 रुपये थी। असम में अस्थायी कर्मियों की हालत और खराब है।

पत्तियां तोड़ने के पीक सीजन में कुल मजदूरों का 70 फीसदी हिस्सा अस्थायी कर्मियों का होता है।

इन्हें सिर्फ 135 रुपये प्रति दिन मिलता है और हाउसिंग और हेल्थकेयर जैसी सुविधाएं भी नहीं मिलती ।

चाय के बागानों में काम करने वाले ज्यादातर मजदूर झारखंड, बिहार, ओडिशा और बंगाल के मूल आदिवासी हैं, जिन्हें 19वीं सदी में ब्रिटिश असम में चाय के बागानों में काम करने के लिए ले आए थे।

एक ऊपरी अनुमान के मुताबिक, ये मजदूर असम की जनसंख्या का करीब 15 फीसदी हिस्सा हैं। कुछ अनुमान ये आंकड़ा 20 फीसदी तक बताते हैं।

इन मजदूरों की संख्या तिनसुकिया, डिब्रूगढ़, गोलाघाट, शिवसागर और सोनितपुर जैसे असम के ऊपरी चाय उत्पादक जिलों में ज्यादा है।

इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ‘‘भारत के असम में चाय बागानों में मजदूरों के अधिकार का साफ उल्लंघन किया जाता है ।

उनकी हेल्थकेयर और सब्सिडाइज्ड खाने, रहने और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं की उपेक्षा की जाती है। मजदूरी काफी कम है और काम करने की स्थिति खराब हैं।‘‘

2017 में वीमेन एंड चाइल्ड डेवलपमेंट मिनिस्ट्री को सौंपी गई एक रिपोर्ट का कहना था कि 89 फीसदी मजदूरों के पास सैनिटेशन फैसिलिटी नहीं है।

रिपोर्ट में कहा गया कि 84 फीसदी महिला मजदूरों ने कहा कि उन्हें माहवारी के समय भी काम करना पड़ता है और बच्चों के लिए क्रेच की सुविधा भी अपर्याप्त है।

खुद को कई बार सार्वजनिक मंचों से चाय वाला कहने वाले प्रधानमंत्री ने पिछले चुनावों के समय भी इन चाय बगान मज़दूरों के वोट बैंक देखते हुए वायदे किये थे,जो अब तक पूरे नही हुए है। असम अगले साल फिर से चुनाव होने वाले है।

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Abhinav Kumar

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