मजदूरों को बड़ी कार्रवाई को मजबूर कर रहा प्रबंधनः दलजीत सिंह, इंटरार्क यूनियन प्रधान
उत्तराखंड के रुद्रपुर के सिडकुल, पंतनगर और इसके पास ही किच्छा स्थित इंटरार्क कंपनी में मजदूरों का आक्रोष अब चरम पर है।
बीते सात सितम्बर से दोनों प्लांटों में हड़ताल पर बैठे मजदूरों ने मजदूर किसान महा पंचायत बुलाई है।
मजदूर वेतन समझौते को लेकर बीते चार महीने से संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन मैनेजमेंट ने दोनों प्लांटों से अबतक 96 परमानेंट मजदूरों को नौकरी से निकाल बाहर किया है।
किच्छा में मजदूर किसान एकता रैली से पहले इंटरार्क बिल्डिंग मैटीरियल्स प्रालि के पंतनगर प्लांट के प्रधान दलजीत सिंह ने कहा कि अगर मैनेजमेंट की तानाशाही ऐसे ही जारी रही तो मजदूर बड़ी कार्रवाई की ओर बढ़ेंगे।
चार अक्टूबर, मंगलवार को रुद्रपुर के पास किच्छा में इंटरार्क मजदूर यूनियन ने मजदूर किसान पंचायत का आयोजन किया है।
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चार साल से न बोनस न वेतन समझौता
दलजीत ने कहा कि पिछले चार साल से कंपनी ने न बोनस दिया है न कोई वेतन वृद्धि की है। बल्कि लेबर कोर्ट और हाईकोर्टों के तमाम आदेशों का सीधा उल्लंघन कर पंतनगर प्लांट में लॉकआउट किया गया, वेनत समझौते पर वादे करके भी मुकरा गया और फिर रातों रात मशीनों को शिफ्ट करने की कोशिश की गई।
उन्होंने कहा कि यूनियन की प्रमुख मांग है कि अब जो समझौता हो वो हमारे मांगपत्र के अनुसार हो और 2018-19 के बाद से जो भी वेतन वृद्धि हो उसका भी एरियर दिया जाए।
दलजीत ने कहा कि पंतनगर प्लांट में करीब चार महीने से ज्यादा मनमाना लॉकआउट कर दिया गया। सभी मजदूर इस दौरान फैक्ट्री के बाहर धरना प्रदर्शन करते रहे।
उसके बाद नैनीताल हाईकोर्ट की ओर से आदेश आने के बाद लॉकआउट खुला और छह जुलाई को सभी मजदूरों को काम पर रखा गया। लेकिन सस्पेंडेड वर्करों की बहाली नहीं हुई। जबकि लॉकआउट 16 मार्च को हुआ था।
वो कहते हैं, “दोबारा फैक्ट्री शुरू करने के चंद दिनों बाद ही मुझे बाहर के मामले में आरोप लगाकर काम से निकाल दिया गया। मुझ पर आरोप लगा कि बच्चों को प्रदर्शन में लाकर मैं उनके साथ ज्यादती और दुरुपयोग करता हूं। बाल हनन का मुकदमा लगाया था मेरे ऊपर।”
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ठेका मजदूरों की भर्ती
दलजीत के अनुसार, “मेरे ऊपर मुकदमा कायम किया गया कि मैं बच्चों को बहला फुसला कर इसकी आड़ में धरना प्रदर्शन करता हूं।”
ये तो रुद्रपुर प्रशासन ने मुकदमा दर्ज किया, लेकिन मैनेजमेंट ने इसका बहाना बनाकर दलजीत को निकाल दिया।
दलजीत ने बताया कि इस आड़ में उन्होंने और 26 मजदूरों को प्लांट से बाहर कर दिया। यही नहीं इसकी जगह ठेका मजदूरों को लाकर प्लांट में परमानेंट नेचर वाले काम कराने की कोशिश की।
परमानेंट मजदूरों को लगातार निकाला जा रहा था, टार्चर किया जा रहा था और उनकी जगह कैजुअल और ठेका मजदूरों की भर्ती की जा रही थी।
उन्होंने कहा कि प्रबंधन की इस कोशिश को मजदूरों ने अपनी एकता के बल पर नाकाम कर दिया।
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जबरदस्ती मशीनें शिफ़्ट
दलजीत कहते हैं कि जब सब्र की सीमा पार हो गई तो मजदूरों ने बीते 7 सितम्बर से कार्यबहिष्कार का ऐलान कर दिया और तबसे लेकर अभी तक दोनों प्लांटों में मजदूर बाहर धरने पर बैठे हैं।
इस बीच ठेका मजदूरों से प्लांट चलाने की कोशिश हो रही है। हालांकि उत्पादन लगभग ठप है।
हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी बीते दिनों प्रशासन की मौजूदगी में मैनेजमेंट ने किच्छा प्लांट से मुख्य मशीनें शिफ्ट करा ली हैं। इसे लेकर भारी हंगामा भी बरपा।
दलजीत कहते हैं कि प्रबंधन के इस नाफरमानी वाले रुख से मजदूरों में आक्रोष बढ़ता जा रहा है और अगर इस पर कोई वार्ता आगे नहीं बढ़ी तो यूनियन कुछ ‘बड़े फैसले’ ले सकती है।
उन्होंने कहा कि अगर बातें नहीं मानी जाती हैं तो मजदूर हाईवे जाम या कंपनी गेट को जाम कर सकते हैं।
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दलजीत ने बताया कि प्रशासन इस पूरे मामले में मौन है और उसका कोई भी रुख मजदूरों के पक्ष में नहीं है, वरना उसकी मौजदूगी में मशीनें बाहर नहीं निकाली जा सकती थीं।
उन्होंने बताया कि लाकआउट के दौरान का एक नया पैसा भी मैनेजमेंट ने मजदूरों को नहीं दिया है। यह मुकदमा हाईकोर्ट में चल रहा है।
अभी 96 मजदूर नौकरी से निलंबित हैं और उन्हें आधी सैलरी मिल रही है।
(डब्ल्यूयू न्यूज़ डेस्क द्वारा संपादित)
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