योगी सरकार के बदलने से क्या यूपी में मज़दूरों के हालात भी बदलेंगे?

योगी सरकार के बदलने से क्या यूपी में मज़दूरों के हालात भी बदलेंगे?

By दिनकर कपूर

मोदी सरकार ने देशी विदेशी कारपोरेट घरानों के मुनाफे के लिए मजदूर वर्ग पर अभूतपूर्व हमला किया है। उसने देश में मजदूरों के 29 श्रम कानूनों को खत्म कर चार लेबर कोड बना दिए।

इन लेबर कोड के जरिए काम के घंटे 8 की जगह 12 करने का निर्णय लिया। मजदूरों की टेक होम सैलरी कम कर दी। 50 से कम मजदूर रखने वाले ठेकेदार को पंजीकरण कराने और 300 से कम मजदूरों वाली कम्पनी को छटंनी करने से पूर्व सरकार की अनुमति लेने की छूट प्रदान कर दी। ईपीएफ का अंशदान कम कर दिया गया। यहीं नहीं ईपीएफ का पैसा शेयर बाजार में लगाने की अनुमति दे दी।

ठेका मजदूरों के नियमितीकरण की जो थोड़ी बहुत सम्भावनाएं थी भी उन्हें समाप्त कर दिया गया। श्रम विभाग की भूमिका श्रम कानूनों के उल्लंधन करने पर कार्यवाही करने की जगह मालिकों को सुविधा देने वाले फैसिलीटेटर की कर दी गई है। जहां केन्द्र सरकार श्रम कानूनों पर हमले कर रही है वहीं उसे ज़मीनी स्तर पर लागू करने में उत्तर प्रदेश सरकार लगी हुई है।

इज़ आफ़ डूईंग बिजनेस के लिए उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने नई इकाइयों में एक हजार दिनों तक सभी लेबर कानूनों के लागू करने पर रोक लगा दी है। काम के घंटे बारह करने का आदेश इस सरकार ने दिया था जिसे वर्कर्स फ्रंट के हाईकोर्ट में हस्तक्षेप के बाद उसे वापस लेना पड़ा।

सरकार ने समय से वेतन भुगतान अधिनियम, उत्तर प्रदेश में संशोधन कर समय से वेतन न देने वाले मालिकों के जेल जाने वाले प्रावधान को ही खत्म कर दिया है।

रोजगार सृजन के बड़े-बड़े दावे किए जा रहे है। लेकिन सच्चाई यह है कि प्रदेश की असंगठित क्षेत्र की सूक्ष्म, लघु, मध्यम ईकाइयां और बुनकरी जैसे कुटीर उद्योग संकट के शिकार है और इनमें रोज़गार की कमी हुई है।

महिलाओं के सुरक्षा, स्वालम्बन और सम्मान देने के लिए महिला सशक्तिकरण की मिशन शक्ति योजना के विज्ञापन पर करोड़ों रूपया खर्च किया गया लेकिन इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए चल रही 181 वूमेनहेल्प लाइन और महिला समाख्या जैसी योजनाओं को बंद कर हज़ारं महिलाओं को बेरोज़गार कर दिया गया।

भाजपा ने संकल्प पत्र में वायदा किया था कि सरकार बनने के 120 दिन के अंदर आंगनबाड़ी, आशाओं के सम्मानजनक मानदेय के लिए कमेटी बनाकर इसे बढाया जायेगा। पर सरकार की विदाई की बेला आ गई मानदेय में एक पैसे की वृद्धि नहीं हुई।

उलटे प्रदेश में हजारों आगंनबाडियों को बिना पेंशन, ग्रेच्युटी या सेवानिवृत्ति लाभ दिए 62 साल की उम्र में नौकरी से हटा दिया गया। उत्तर प्रदेश में सरकारी दावों के विपरीत मनरेगा की हालत खराब है औसतन 9 दिन भी रोज़गार मनरेगा में उपलब्ध नहीं हो सका है।

कोरोना महामारी में प्रदेश से पलायन कर बाहर काम कर रहे मजदूरों की घर वापसी के समय सरकार द्वारा किए गए क्रूर, बर्बर व्यवहार को सबने अपनी आंखों से देखा है। प्रदेश के विभिन्न विभागों में संविदा, आउटसोर्सिंग, ठेका पर मजदूरों से काम कराया जा रहा है इनके नियमितीकरण करने की कोई योजना सरकार के पास नहीं है।

कुल मिलाकर कहा जाए तो उत्तर  प्रदेश में मजदूर वर्ग पर हमले लगातार जारी है। उत्तर प्रदेश में यह सभी की इच्छा है कि योगी सरकार जाए और यह भी चर्चा है कि समाजवादी पार्टी इसके बरखिलाफ उभर रही है।

लेकिन अखिलेश यादव को प्रदेश की जनता को बताना चाहिए कि मजदूर वर्ग के सम्बंध में समग्रता में उनकी नीति क्या है। महज मेट्रो और एक्सप्रेस के गुणगान से काम नहीं चलेगा।

(लेखक वर्कर्स फ्रंट के अध्यक्ष हैं।)

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Workers Unity Team

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