मैं गुलाम नहीं हूं, कहते ही ग्राहक ने चप्पल ले दौड़ा लिया, ज़ोमैटो ने डिलीवरी ब्वॉय को निकाला

मैं गुलाम नहीं हूं, कहते ही ग्राहक ने चप्पल ले दौड़ा लिया, ज़ोमैटो ने डिलीवरी ब्वॉय को निकाला

By श्माम मीरा सिंह, वरिष्ठ पत्रकार

बेंगलुरु में ज़ोमैटो के एक डिलीवरी ब्यॉव कामराज को काम से इसलिए निकाल दिया गया क्योंकि ग्राहक ने शिकायत की थी उसे डिलीवरी ब्वाय ने घूंसा मारा था। चूंकि ग्राहक रसूखदार और सोशल मीडिया में धाक रखने वाली थी इसलिए ट्वीटर पर हंगामा हो गया और बिना जांच के कामराज को निकाल दिया गया।

कामराज ज़ोमैटो के लिए 26 महीने से घर घर खाना पहुँचा रहे हैं। अब तक उन्होंने क़रीब 5000 डिलीवरी की हैं जिनमें उन्हें 5 में से 4.7 रेटिंग मिली है, जोकि सबसे अधिक रेटिंग में से एक है।

NDTV और बाक़ी जगह उनका इंटर्व्यू देखने से भी समझ आ जाएगा कि कामराज असभ्य और अपराधी क़िस्म के आदमी नहीं हैं बल्कि सज्जन और सभ्य हैं।

पर सोशल मीडिया इंफलुएंसर की इकतरफ़ा कहानी के चलते कामराज को सस्पेंड कर दिया गया, जिसके बाद कामराज पर सिवाय फूट फूटकर रोने के कुछ नहीं बचा।

पर सोचने वाली बात है कि अगर इतनी ही नौकरियाँ कामराज के आसपास घूम रही होतीं तो अधेड़ उम्र में बीस-बीस रुपए के लिए घरों पर खाना नहीं पहुँचा रहे होते।

कामराज को नौकरी से निकाल दिया गया क्योंकि एक इंफलुएंसर ने दुनिया को वीडियो बनाकर बताया कि डिलीवरी बॉय ने उनके मुंह पर हिट कर दिया है, जिससे उनकी नाक ज़ख़्मी हो गई।

पूरे देश ने एक तरफ की कहानी सुनी और कामराज हम सब की कहानियों में “बेहूदे” हो गए. दूसरी साइड सुनने का वक्त किसी पर नहीं।

पर देर सबेर अब दूसरी साइड की कहानी सामने आ रही है। पर डिलीवरी बॉय की औक़ात ही क्या है? उसकी कहानी सुनने का वक्त किसी पर नहीं।

कामराज रो रोकर कह रहे हैं कि उन्होंने “सोशल मीडिया इंफलुएंसर” को हिट नहीं किया जबकि वे अपनी ही उँगली में पहनी एक अंगूठी से ज़ख़्मी हुई हैं।

पूरी कहानी ऐसे है कि कामराज खाना लाते समय रास्ते में फँस गए थे और ग्राहक को सूचित करते रहे कि जाम में फँस गए हैं, प्लीज़ कंपनी से शिकायत मत करना।

घर पर खाना लेकर पहुँचे तो ग्राहक ने कहा कि नियमानुसार लेट होने पर उन्हें फ्री में खाना चाहिए, लेकिन पैसा कटना था उस आदमी की जेब से जो पाँच पाँच मंज़िल सीढ़ियों पर चढ़कर आपके लिए खाना पहुँचाते हैं, क्योंकि उन्हें बीस-तीस रुपए मिल सकें।

यही गलती थी कामराज की, यही अपराध था उसका। ग्राहक ने लगातार कंपनी की चैट सपोर्ट से चैट करती रहीं, शिकायत करती रहीं। कामराज मनाते रहे कि मैडम जी शिकायत मत करिए, खाना इसलिए मुफ़्त नहीं दे सकता क्योंकि कैश ऑन डिलीवरी है।

ग्राहक ने अपने घर के आधे बंद गेट के अंदर खाने का पैकेज रख लिया। पैसे न मिलने पर कामराज ने खाने के उस पैकेज को उठाने की कोशिश की। एक तरफ़ ग्राहक, एक तरफ़ कामराज और बीच में दरवाज़ा। यहीं से शुरू हुई कहानी।

कहानी जो मैडम जी ने अपनी वीडियो में नहीं सुनाई, ऐसा नहीं है कि कामराज ने ऊँची आवाज़ में बात न की होगी, ऐसा नहीं है कि कामराज ने ग़ुस्सा न किया होगा।

किया होगा, इसकी पूरी संभावनाएँ हो सकती हैं, लेकिन संभावनाएँ तो इसकी भी हो सकती हैं कि मैडम ने भी जिरह की हो। संभावनाएँ तो ये भी हो सकती हैं कि मैडम ने भी उसे बेहूदगी से ट्रीट किया हो। हो तो ये भी सकता है कि मैडम ने डिलीवरी बॉय को आदमी मानने से ही इनकार कर दिया हो, क्योंकि उसकी औक़ात ही क्या है? उसे तो फटकारा जा सकता है, उसे तो धिक्कारा भी जा सकता है।

इसी बहस में डिलीवरी बॉय ने ग्राहक से कहा कि मैं आपका ग़ुलाम नहीं हूँ। यही लाइन शायद डिलीवरी बॉय को नहीं कहनी थी। ग़ुलाम तो वो है, ग़ुलाम उसके वर्ग के करोड़ों लोग हैं जिनकी जगह शहरों के ऊँचे मकानों में रहने वाले मालिक के डॉगी जितनी नहीं है।

बहस हुई। जिरह हुई। सही ग़लत, बुरे अच्छे की बहस के इतर. अभी डिलीवरी बॉय का भी वर्जन सुनते हैं, डिलीवरी बॉय का कहना है कि मैडम ने उसके लिए चप्पल उठाई, चप्पल मारते हुए आती मैडम जी से अपने बचाव में जब उसने उनके हाथ को धक्का देने की कोशिश की तो उनके हाथ की अंगूठी उनकी नाक में ज़ख़्म कर गई।

इसका अनुवाद अख़बारों और सोशल मीडिया में ऐसे हुआ कि अंग्रेज़ी बोलने वाली मैडम को देशी भाषा कन्नड़ वाले डिलीवरी बॉय ने हिट कर दिया है। हम सबने इस खबर पर आँखें नटेरीं, हैश टैग चलाए, ग़ुस्सा हुए. रोष किया. और कामराज को नौकरी से निकाल दिया गया।

कामराज जिसकी अम्मा डायबिटीज़ की सिरियस स्टेज पर हैं। कामराज जो घर में कमाने वाला इकलौता है। वो घर घर खाना पहुँचा कर हर रोज़ कुछ कमाकर लाता है और घर लाकर बच्चों को खिलाता है। उसी कामराज की नौकरी चली गई।

ज़ोमैटो से रिक्वेस्ट है कि जितनी सहानुभूति उसे अपने ग्राहक की है उतनी ही सहानुभूति अपने कर्मचारी से दिखाए, और इस पूरे मामले की लीगल जाँच कराए। जब तक जाँच पूरी न हो तब तक कामराज को न्यूनतम मज़दूरी देती रहे। जो भी दोषी हों, और जितने भी दोषी हों, ज़्यादा, कम, बहुत ज़्यादा, बहुत कम, वो सब सच बाहर आना चाहिए।

(फ़ेसबुक पोस्ट से साभार, संपादित)

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