बजट का 60% आवंटन सिर्फ़ कर्ज़, रक्षा और सड़क पुल बंदरगाह में स्वाहा, सबसे अधिक खर्च कहां कर रही है मोदी सरकार?

बजट का 60% आवंटन सिर्फ़ कर्ज़, रक्षा और सड़क पुल बंदरगाह में स्वाहा, सबसे अधिक खर्च कहां कर रही है मोदी सरकार?

भारत की तेजी से गिरती अर्थव्यवस्था, बढ़ती बेरोज़गारी और आसमान छूती महंगाई के बीच मोदी सरकार ने पिछले महीने वित्त वर्ष 2025-2026 का बजट पेश किया था।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बजट को जन बजट कहकर अपने मुंह मियां मिठ्ठू बनने की कोशिश की कि उन्होंने 12 लाख रुपये सालाना कमाने वालों को टैक्स फ़्री कर दिया है।

वहीं आलोचकों ने रोज़गार सृजन, स्वस्थ्य, शिक्षा, कृषि और अन्य सार्वजनिक सुविधाओं में कटौती को लेकर तीखी आलोचना की है।

सच्चाई ये है कि मोदी सरकार के इस बजट में कार्पोरेट कंपनियों को भारी रियायत दी गई और कथित 12 लाख रुपये कमाने वाले एक दो प्रतिशत लोगों को छोड़कर बाकी जनता को मिलने वाली सुविधाओं में भारी कटौती की गई।

दिलचस्प यह है कि क़रीब 50 लाख करोड़ रुपये के इस बजट क़रीब एक चौथाई सिर्फ देश पर लिए गए कर्ज़ के ब्याज़ चुकाने में जाएगा।

बड़ी कंपनियों, कारपोरेट घरानों को फायदा पहुंचाने वाले बड़े हाईवे, सड़कें, फ़्लाईओवर बनाने और अमेरिका का कथित जूनियर पार्टनर (असल में पिट्ठू) बनने लिए ही कुल 31% बजट खर्च किया जा रहा है।

यानी बाकी बचे क़रीब 40% बजट में डेढ़ अरब की आबादी का रोजगार, बीमारी आरामी, पढ़ाई लिखाई, रेल बस यानी सार्वजनिक परिवहन, बिजली पानी, आमदनी, खेल, खेत खलिहान, बच्चों का पोषण, महिलाओं को बराबरी का हक़ और वो सबकुछ जो आम आदमी रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए धक्के खाता है, सबकुछ देखना है।

कर्ज लेकर अमीरों को घी पिलाने वाला बजट

एक अप्रैल 2025 से 31 मार्च 2026 तक के वित्त वर्ष में मोदी सरकार 50.65 लाख करोड़ रुपये खर्च करेगी। पिछले वित्त वर्ष में यह बजट 47.16 लाख करोड़ रुपये था।

अब नए वित्त वर्ष में इतना खर्च करने के लिए पैसा कहां से आएगा तो निर्मला सीतारमण के पास इसका जवाब है कर्ज लेकर और नेहरू-इंदिरा-राजीव गांधी के ज़माने की बनी सरकारी कंपनियों उपक्रमों को बेचकर।

इस बजट के खस्ताहाल की नज़ीर सिर्फ ये है कि इस 50.65 लाख करोड़ रुपये का 15.69 लाख करोड़ रुपये यानी लगभग 31 प्रतिशत हिस्सा कर्ज लेकर पूरा किया जाना है।

मोदी सरकार ने 470 अरब रुपये के विनिवेश यानी निजीकरण की घोषणा की है यानी इतना रुपया सिर्फ सरकारी कंपनियों को बेचकर जुटाया जाएगा।

यह मौजूदा 2023-24 वित्त वर्ष में सरकारी कंपनियों में बेटी गई हिस्सेदारी से जुटाए गए 330 अरब रुपये से भी अधिक है।

मोदी सरकार ने सार्वजनिक कंपनियों जैसे एलआईसी, वित्तीय संस्थाएं, बंदरगाह और एयरपोर्ट को अंधाधुंध बेचकर अपने खर्चे जुटाए हैं। यह ऐसा तरीक़ा है जिससे मोदी सरकार देश के चंद अमीरों को और अमीर बनाने का काम कर रही है।

एयर इंडिया की बिक्री की बात अभी पुरानी नहीं हुई है जिसे मोदी सरकार ने औने पौने दामों में टाटा ग्रुप के हवाले कर दिया।

देश के कई बंदरगाहों को अडानी के हवाले कर दिया, यूक्रेन जंग का फायदा उठाते हुए सस्ते रूसी तेल से अम्बानी के रिलायंस की कमाई कराई और उस पर मिलने वाले फायदे को टैक्स के रूप में जनता से वसूला।

बजट घाटे की तलवार जनता की सुविधाओं पर

मोदी सरकार ने इस बार का बजट घाटा 4.4% रखने का अनुमान लगाया है। जोकि पिछले वित्त वर्ष में 4.8% था।

बजट घाटे को कम करने का काम भी सार्वजनिक हित में होने वाले खर्च में कटौती करके की जा रही है न कि आमदनी बढ़ाकर।

बल्कि सरकार ने ग़रीबों, कमज़ोर तबकों और मज़दूरों को दी जाने वाली रियायतों में और कटौती कर दी है, जबकि यह वर्ग पहले ही तबाह हो चुका है।

दुनिया भर में बढ़ रहे युद्ध, विदेश निवेशकों का भारत से अपनी पूंजी लेकर भागने, आम जनता की आमदनी में कमी के चलते उनके खर्च करने की क्षमता में आई भारी कमी जिससे उपभोग पर ख़ासा असर पड़ा है, इन सबने मिलकर भारत की अर्थव्यवस्था की लुटिया डुबो दी है।

दुनिया भर के शोषणकारी कार्पोरेट घटाने और रेटिंग एजेंसिया इसे अवसर मानकर मोदी सरकार पर कंपनियों को और टैक्स छूट और हर तरह की लूट की खुली छूट की वकालत कर रही हैं।

इसी के चलते मोदी सरकार ने पर्यावरणीय क़ानूनों को ढीला कर दिया है ताकि कोई भी कंपनी भारत के प्राकृतिक संसाधनों को मनमाने तरीक़े से निचोड़ सकें।

भारत पर बढ़ता कर्ज का जाल

जिस बात को अर्थशास्त्री बीते दो तीन साल से आगाह कर रहे हैं वे काले बादल अब भारत पर घिरते जा रहे हैं।

अर्थशास्त्री लगातार चेता रहे हैं कि भारत कर्ज के जाल में फंसता जा रहा है और इस बार का बजट इस बात की गवाही देता है कि यह समस्या इतनी गहरी हो गई है कि मोदी सरकार के छिपाए नहीं छिपने वाली।

निर्मला सीतारमण के पेश किए गए 50.65 लाख करोड़ रुपये के बजट में 12.76 लाख करोड़ रुपये सिर्फ देश पर लिए गए कर्ज़ का ब्याज देने में खर्च होगा।

यानी बजट का क़रीब 20 प्रतिशत सिर्फ कर्ज की वापसी देने में खर्च होगा। यानी कर्ज़ का ब्याज़ देने के लिए कर्ज़ लेने की नौबत आ गई है।

जबकि सरकार जनता को सब्ज़बाग़ दिखाने और अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीर दिखाने के लिए विज्ञापनों, सांप्रदायिकता और झूठ का बड़े पैमाने पर सहारा ले रही है।

इनकम टैक्स में छूट की असलियत

मोदी सरकार ने 12 लाख रुपये तक कमाई करने वालों को टैक्स फ़्री कर दिया है। सरकार के चियरलीडर्स इसे मिडिल क्लास के लिए एक ऐसा मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं जिससे अर्थव्यस्था में जादू की गति सुधार हो जाएगा।

इस घोषणा के बाद से ही सोशल मीडिया पर एक मीम वायरल होने लगा जिसमें लिखा था, “यह खुशी की बात है कि निर्मला ताई ने 12 लाख रुपये तक की कमाई को टैक्स फ़्री कर दिया है, अब सोचने की बात ये है कि 12 लाख रुपये कमाया कैसे जाए!”

देश की अधिकांश 90 प्रतिशत आबादी की हालत को यह मीम कहीं अधिक सच्चाई से बयां करता है। सरकार खुद कह चुकी है कि 80 करोड़ लोग मुफ़्त का राशन पा रहे हैं।

यानी 12 लाख रुपये की कमाई करने वाला कथित मध्य वर्ग एक भ्रम है। क्योंकि भारतीय इनकम टैक्स के दायरे में ही नहीं आते क्योंकि उनकी कमाई उतनी नहीं है।

सरकारी अनुमानों के ही मुताबिक भारत में सालाना औसत आमदनी 3,24,680 रुपये है।

पिछले वित्त वर्ष यानी 2024-25 में एक अरब 40 करोड़ की आबादी वाले देश में केवल 8.6 करोड़ लोगों ने ही इनकम टैक्स रिटर्न भरा था।

पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम का कहना है कि भारत में प्रभावी टैक्स देने वालों की संख्या 3.2 करोड़ है। इसमें अमीर, अति अमीर, उच्च मध्य वर्ग, मध्य वर्ग और निम्न वर्ग भी शामिल है।

अनुमान है कि इससे सरकार के राजस्व पर क़रीब एक लाख करोड़ रुपये का असर पड़ेगा।

लेकिन कुल मिलाकर यह छूट भी इस देश के कुछ चंद अमीरों को ही फ़ायदा पहुंचाने वाला है।

बजट का अधिकांश हिस्सा रक्षा और पूंजीगत खर्च और कर्ज पर स्वाहा

देश के विकट हालात में बजट का अधिकांश हिस्सा यानी लगभग 61 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ़ कर्ज अदायगी, सेना और सड़क पुल निर्माण पर खर्च होने जा रहा है।

पूंजीगत खर्च जिसे कैपिटल एक्सपेंडिचर यानी कैपेक्स कहते हैं, इस पर सरकार ने अकेले 11.21 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया है, जोकि पिछले साल की तुलना में 10 प्रतिशत अधिक है।

इससे सड़कें, ब्रिज, बंदरगाह बनाने और बिजली पर खर्च होगा और यह सब प्राइवेट-पब्लिक पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के तहत किया जाएगा।

यानी एक बड़ा हिस्सा सिर्फ़ हथियार खरीदने, सड़क, पुल बंदरगाह, एयरपोर्ट पुल बनाने और कर्ज का ब्याज़ चुकाने पर होगा।

इसमें मोदी सरकार के ऐसे चहेते अरबपति खरबपति अमीरों को ठेके दिए जाएंगे जो देश की जनता से महंगे दाम वसूलते हैं, चाहे वह जियो-एयरलेट मोबाइल सेवाएं हों, विमान किराया हो या अन्य सेवाएं हों।

इस बार मोदी सरकार ने सेना के बजट को 6.81 लाख करोड़ रुपये कर दिया है, जो कुल बजट का 10 प्रतिशत है। यह पिछले एक दशक में सबसे बड़ी वॉद्धि है।

स्वाभाविक है कि बाकी मदों में कटौती की गई है।

जबकि हम ऊपर बता चुके हैं कि देश पर लिए गए कर्ज़ के ब्याज़ पर ही 12.76 लाख करोड़ रुपये खर्च किया जाएगा।

यानी इन तीन मदों पर ही सरकार 30.78 लाख करोड़ रुपये खर्च करेगी जोकि कुल बजट का 61 प्रतिशत बैठता है। यानी अन्य खर्चों के लिए बजट का महज 39 प्रतिशत बचता है।

कई आलोचकों ने कहा है कि स्वास्थ्य और शिक्षा के मुकाबले सेना पर छह से सात गुना खर्च करना धन की बर्बादी है। भारत अभी किसी से जंग नहीं लड़ रहा है और उसे अपने मानव संसाधन पर खर्च करना चाहिए और स्वस्थ और शक्तिशाली नागरिक बनाने पर ध्यान देना चाहिए।

और मार के लिए जनता रहे तैयार

मोदी सरकार के इस निर्लज्ज बजट का ही नतीजा है कि जनता की बुनियादी सुविधाओं और खेती किसानी के बजट में भारी कटौती हुई है।

कृषि और इससे जुड़े क्षेत्रों का बजट इस बार 1.30 लाख करोड़ रुपये से घटा कर 1.27 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है।

पिछले पांच साल से जिन 80 करोड़ लोगों को फ़्री का राशन देने के लिए मोदी सरकार जो सीना ठोंकती थी, उस मद का बजट असलियत में कम हुई है क्योंकि दो लाख करोड़ रुपये के बजट में एक पैसे की वृद्धि नहीं हुई है।

अगर 2024-25 में 4.9 प्रतिशत की महंगाई को जोड़ लें तो यह आवंटन पिछले साल के मुकाबले महज क़रीब एक लाख 90 हज़ार करोड़ ही रह जाता है।

यानी पीडीएस पर निर्भर करोड़ों लोगों के राशन में कटौती होना तय है, इसके लिए पूर्व में आजमाए तरीके अपनाए जाएंगे, बड़े पैमाने पर राशन कार्ड रद्द किया जाएगा।

यही हालत स्वास्थ्य और शिक्षा को लेकर भी है। देश के अस्पतालों में 24 लाख बिस्तरों की कमी है और स्कूलों में 12 लाख टीचर भर्ती किए जाने हैं।

स्वास्थ्य पर इस बजट में 96 हज़ार करोड़ रुपये आवंटित किया गया है, डेढ़ अरब की आबादी में प्रति व्यक्ति कितना खर्च आएगा, आप खुद अंदाज़ा लगा सकते हैं।

मनरेगा पर पिछले साल की तरह आवंटन को 86 हज़ार करोड़ रुपये ही रखा गया है। जबकि पिछले कई सालों से मनरेगा में मज़दूरी रुपये आना के हिसाब से बढ़ी है। कई राज्यों में इस कमरतोड़ मेहनत वारे रोज़गार की दिहाड़ी 200 रुपये है।

मनरेगा में 6.5 करोड़ ग्रामीण परिवार पंजीकृत हैं, जोकि कुल 30 करोड़ आबादी होती है और इनकी आजीविका इसी से चलती है वरना उनके घरों में फाकाकशी की नौबत आ आ जाए।

बजट की ऐसी किल्लत है कि कई राज्यों में महीनों से मनरेगा मज़दूरों को मज़दूरी तक नहीं मिल रही है।

दूसरी तरफ़ “ईज़ ऑफ़ डूईंग” बिज़नेस को बढ़ाने के मोदी सरकार के संकल्प में पर्यावरणीय नियमों और श्रम क़ानूनों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं क्योंकि इससे अमीरों को मुनाफ़ा निचोड़ने में दिक्कत हो रही है।

अब कंपनियों को छंटनी की खुली छूट दी जा रही है और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने वाली परमानेंट नौकरियों से बड़े पैमाने पर फ़ायरिंग हो रही है ताकि वहां सस्ते मज़दूर रखे जा सकें।

फ़ाउंडेशन फ़ॉर एग्रेरियन स्टडी के अध्ययन के अनुसार, 2022-23 में सरकार के हाउसहोल्ड कंज़प्शन एक्सपेंडिचर सर्वे के डेटा में खुलासा किया गया है कि 36 करोड़ लोग रोज़मर्रे का खाना पीना, स्वास्थ्य और आवास का खर्च जुटाने में मुश्किलों का सामना कर रहे हैं।

मज़दूर वर्ग को ग़रीब और सुपर रिच को अमीर बनाने वाला बजट

यह बजट बड़े उद्योगपतियों को टैक्स में छूट और लूट की खुली छूट देने वाला और मज़दूरों और मेहनतश जनता को और निचोड़ने वाला बजट है।

पिछले साल के बजट में इन्हीं सीतारमण ने बेरोज़गारी को कम करने के लिए कंपनियों में सस्ते मज़दूर उपलब्ध कराने के लिए अप्रेंटिस की योजना लागू की थी, लेकिन उससे अमीरों के देवता बेरोज़गारी पर जूं भी नहीं रेंगी।

कोरोड़ों लोग बेरोज़गारी, अर्द्ध बेरोज़गारी या बेगारी झेल रहे हैं। बड़े पैमाने पर बंधुआ मज़दूरी एक आम बात बन चुकी है।

जबकि अमीरों की दौलत में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि हुई है और हो रही है। अब उन्हें टैक्स प्रोत्साहन और अन्य रियायतें भी दी जा रही हैं। यह भारत और इंडिया के बीच बढ़ती खाई को और चौड़ा ही करेगा।

हालांकि बजट सत्र फिर से शुरू हो रहा है और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जीएसटी दरों में कमी लाने का संकेत दिया है।

दिलचस्प है कि भले ही भारत की एक बड़ी आबादी टैक्स नहीं देती है लेकिन उससे कमरतोड़ अप्रत्यक्ष कर वसूला जाता है। यह टैक्स पेट्रोल, दवाओं, शिक्षा, परिवहन, वाहन, खाने पीने की चीजों, टोल टैक्स आदि के रूप में उससे वसूला जाता है और यह कई देशों के प्रत्यक्ष कर से भी अधिक है।

पिछले पांच सात सालों में जिस तेज़ी से महंगाई बढ़ी है, उसमें जीएसटी का एक बड़ा योगदान है जिसे विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने एक बार ‘गब्बर सिंह टैक्स’ का नाम दिया था।

जीएसटी जनता पर कितना भारी बोझ है इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसके आने के बाद कुल अप्रत्यक्ष टैक्स का क़रीब दो तिहाई हिस्सा देश की सबसे ग़रीब जनता पर आ गया।

इस समय जीएसटी और इनकम टैक्स से आने वाला राजस्व 26.16 लाख करोड़ रुपये है। जबकि कार्पोरेट टैक्स से सरकार को महज 10.82 लाख करोड़ रुपये मिलते हैं।

साल 2010-11 के वित्त वर्ष में प्रत्यक्ष कर में कार्पोरेट टैक्स की हिस्सेदारी 67 प्रतिशत थी और बाकी का हिस्सा वेतनभोगियों के इनकम टैक्स से आता था। उस समय कोई जीएसटी नहीं थी। मौजूदा समय में,

कुल प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर संग्रह का 71 प्रतिशत का भार वेतन भोगियों और आबादी के सबसे निचले तबके पर आ गया है।

ऑक्सफ़ैम इंडिया की जनवरी की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2021-22 में जीएसटी के द्वारा वसूले गए 14.83 करोड़ रुपये का 64 प्रतिशत आबादी के सबसे निचले 50 प्रतिशत हिस्से की ओर से आया था।

जीएसटी का 30 प्रतिशत हिस्सा आबादी के मध्य वाले हिस्से के 40 प्रतिशत लोगों से और आबादी के शीर्ष पर बैठे 10 प्रतिशत लोगों से महज तीन प्रतिशत ही हिस्सा आया।

रोज़गार विहान विकास की अंधी गली

अर्थव्यवस्था के जानकारों का अनुमान है कि भारत की अर्थव्यवस्था अभी गिरकर 6.2 प्रतिशत पर आ जाएगी। आगे भी इसमें गिरावट जारी रह सकती है।

खुद प्रधानमंत्री मोदी ने जनता से शेयर बाज़ार में रिस्क लेने की अपील की थी और उनकी बात सुनकर बहुत मामूली नौकरी करने वाले लोगों ने भी शेयर मार्केट में अपनी बचत लगा दी।

हालत यह है कि बीते छह महीने में शेयर मार्के 15 प्रतिशत तक गिर गया है और कई अनुमानों में कहा जा रहा है कि आम निवेशकों का क़रीब 90 लाख करोड़ रुपये स्वाहा हो गया।

कई उद्योगपतियों ने भी चेताया है कि उनकी कंपनी रसातल में जा रही है और उन्हें नहीं पता कि भारत की जीडीपी के दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ने के आंकड़े कहां से गढ़े जा रहे हैं।

यानी भारत की जीडीपी जितना मोदी सरकार दावा कर रही है 6.2 प्रतिशत, उससे भी कहीं नीचे धंस चुकी है।

लेकिन हैरानी की बात है कि पिछले दस सालों से रोज़गार विहीन विकास से देश और जनता को उबारने के लिए निर्मला सीतरमण के बजट में निल बटा सन्नाटा छाया हुआ है।

उधर जनवरी में आताताई ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद से ही मोदी सरकार की घिग्घी बंधी हुई है।

जो लोग रोज़गार की तलाश में किसी तरह अमेरिका पहुंचे उन्हें हथकड़ी बेड़ी और सैन्य विमान से अमेरिका ने भारत में वापस छोड़ना शुरू कर दिया है।

भारत के सामानों पर आयात शुल्क लगाकर उसे धमकी पर धमकी दिए जा रहा है, लेकिन मोदी सरकार मौन है। व्हाइट हाउस में ‘अकेला शेर’ जिस तर भीगी बिल्ली की तरह बैठा रहा, उसकी नज़ीर शायद ही इतिहास में मिलती है।

https://i0.wp.com/www.workersunity.com/wp-content/uploads/2023/04/Line.jpg?resize=735%2C5&ssl=1

https://i0.wp.com/www.workersunity.com/wp-content/uploads/2023/04/Line.jpg?resize=735%2C5&ssl=1

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें

Workers Unity Team

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.