2022 तक ऑटोमेशन से कंपनियां 12, 375 अरब रु. बचत कर सकती हैं, हफ्ते में चार दिन काम की मांग तेज़ हुई
एक सर्वे के मुताबिक, 2022 तक ऑटो सेक्टर, रिटेल और सेवा क्षेत्रों की कंपनियों में ऑटोमेशन लागू करने से 165 अरब डॉलर यानी 12, 375 अरब रुपये की बचत कर सकती हैं।
इससे बड़े पैमाने पर नौकरियों के जाने का ख़तरा भी पैदा हो गया है। सेंटर फॉर सिटीज़ की जनवरी में आई रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक तकनीक क़रीब 36 लाख नौकरियों को ख़त्म कर देगी।
कैपजेमिनी रिचर्स इंस्टीट्यूट ने अपने एक सर्वे में पाया है कि फैक्ट्रियों, प्लांटों और कंपनियों में ऑटोमेशन लागू करने के मामले भारत दुनिया में पांचवें पायदान पर है।
अमेरिका इस सूची में 26 प्रतिशत ऑटोमेशन के साथ पहले, फ्रांस 21 प्रतिशत के साथ दूसरे, जर्मनी 17 प्रतिशत के साथ तीसरे और ब्रिटेन 16 प्रतिशत के साथ चौथे पायदान पर है।
भारत इस सूची में 15 प्रतिशत के साथ 5वें स्थान पर है।
ये भी पढ़ेंः यूरोप में हफ्ते में चार दिन काम की मांग, भारत में 12 घंटे ड्यूटी नॉर्मल बात बन गई है
ऑटोमेशन का सबसे बड़ा कारणः अधिक से अधिक मुनाफ़ा कमाना
सर्वे में ऑटोमेशन को लेकर काम कर रहीं या उसका परीक्षण कर रहीं कंपनियों के 700 सीईओ की राय को शामिल किया गया है।
40 प्रतिशत से अधिक कंपनियों के मालिकों का कहना है कि ऑटोमेशन के पीछे सबसे प्रमुख बात गुणवत्ता में सुधार लाना है।
जबकि एक चौथाई का कहना था कि वो इसके जरिये मुनाफ़े को बढ़ाना चाहते हैं।
जिन कंपनियों के मालिकों का सर्वे किया गया, उनमें एक चौथाई में पहले से ही ऑटोमेशन का इस्तेमाल हो रहा है।
जबकि ऑटोमेशन को लेकर ऑटो इंडस्ट्री सबसे आगे है, यानी इसमें सबसे अधिक ऑटोमेशन हुआ है।
ऑटोमेशन वाले सभी उद्योगों में एक चौथाई तो ऑटो इंडस्ट्री से आते हैं।
जबकि औद्योगिक विनिर्माण और रिटेल क्षेत्र में यह 15-15 प्रतिशत है।
हफ्ते में चार दिन काम को लागू करना मुश्किल नहीं
भारत की ऑटो इंडस्ट्री में भी बड़े पैमाने पर ऑटोमेशन तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है। इससे नौकरियों में तेज़ी से गिरावट आने की आशंका है।
चेन्नई, बेंगलुरू या दिल्ली के पास गुड़गांव से धारूहेड़ा तक की ऑटो इंडस्ट्री में ऑटोमेशन से नौकरियों के कम होने का असर साफ देखा जा सकता है।
उद्योग जगत में आए इस बदलाव के कारण यूरोप की ट्रेड यूनियनों ने तो ये मांग भी रखी है कि अधिकाधिक ऑटोमेशन वाले उद्योगों में हफ्ते में चार दिन काम और अधिक वेतन का नियम लागू किया जाए।
ब्रिटेन की ट्रेड यूनियन कांग्रेस ने भी इस बारे में एक प्रस्ताव को पास किया है।
ब्रिटिश ट्रेड यूनियनों का कहना है कि आधुनिक तकनीक से हफ़्ते में चार दिन का काम का हिसाब लागू करना मुश्किल नहीं है। इससे बेरोज़गारी कम करने में भी मदद मिल सकती है।
इस साल के शुरू में जर्मनी में हफ़्ते में 28 घंटे काम करने की ट्रेड यूनियनों की माँग मानी गई थी।
(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। इसके फ़ेसबुक, ट्विटरऔर यूट्यूब को फॉलो ज़रूर करें।)