बेलसोनिका यूनियनः ठेका मजदूरों को यूनियन की सदस्यता देने की घोषणा से किसके हित पूरे हुए?

बेलसोनिका यूनियनः ठेका मजदूरों को यूनियन की सदस्यता देने की घोषणा से किसके हित पूरे हुए?

By-अजीत सिंह

बीते 15 अक्तूबर 2020 को बेलसोनिका यूनियन ने लघु सचिवालय गुड़गांव पर 8 घंटे की भूख हड़ताल कर बेलसोनिका फैक्ट्री में कार्य करने वाले ठेका मजदूरों को यूनियन की सदस्यता देने का आह्रान किया था। यूनियन ने कहा था कि हम अपनी यूनियन का सदस्य उन ठेका मजदूरों को भी बनायेंगे जो हमारे साथ लम्बे समय से कार्य कर रहें है। परन्तु आज जब 15 अक्तूबर 2020 से अब तक 9 माह का समय बीत जाने के बाद भी यूनियन ने ठेका श्रमिकों को यूनियन की सदस्यता नही दी है। यूनियन ने ठेका श्रमिकों को यूनियन का सदस्य बनाने के लिये यूनियन के सविंधान में संषोधन को लेकर कानूनी कदम जरूर उठाए। परन्तु श्रम विभाग चण्डीगढ़ ने सविंधान के संषोधन को स्वीकृति नहीं दी। यूनियन ने इस मामले को यहीं पर छोड़ दिया। इस मामले को लेकर यूनियन ने कोई गम्भीरता नही दिखाई। कानून तभी अपना काम करता है जब उसके ऊपर राजनैतिक दबाव हो। मजदूरों की राजनैतिक कार्यवाहियां ही कानून को मजबूर कर सकती है।

किसी भी मजदूर यूनियन व मजदूरों को यूनियन की इस कार्यवाही को समझना बहुत जरूरी है। बगैर वर्गीय दृष्टिकोण के इस मामले को नही समझा जा सकता है। ठेका श्रमिकों को गोलबंद करने का कार्य पिछले काफी लम्बे समय से छूटा हुआ है। एक फैक्ट्री के स्तर पर स्थाई-अस्थाई मजदूरों की एकता का मामला फैक्ट्री यूनियनों से नदारद है। स्वयं स्थापित ट्रेड यूनियन सेंटरों से सम्बद्ध यूनियनें भी ठेका मजदूरों को अपनी यूनियन की सदस्यता नही देती है। बल्कि यूनियन वाली फैक्ट्रियों में ठेका मजदूरों व स्थाई मजदूरों का रिश्ता मजदूर-मैनेजर से कम नही है। यह हकीकत है कि मषीनों व भारी मषीनों पर ज्यादातर काम ठेका श्रमिकों से ही कराया जाता है। इस पर यूनियन व प्रबंधन एकमत नजर आते है। स्थाई व ठेका मजदूरों की तन्खाहों का अगर हम अन्तर देखे तो पायेंगे कि स्थाई मजदूरों का वेतन यूनियन बनने के बाद कई गुना बढ़ जाता है और अस्थाई मजदूरों को जस के तस वेतन में बस अपना व अपने परिवार का गुजर बसर करना होता है। फैक्ट्री में यूनियन बनने के बाद स्थाई व ठेका मजदूरों का रिश्ता भी बदल जाता है और उनके हित भी बदल जाते है। स्थाई श्रमिकों व यूनियन के हित केवल उनके मांग पत्र के इर्द-गिर्द सिकुड़ जाते है। फैक्ट्री में उनके साथ कार्य कर रहे ठेका श्रमिकों की कार्य परिस्थितियां कैसी है? यूनियन द्वारा इस सवाल को नजरअंदाज कर दिया जाता है। उन नारों व भाषणों की बातें अक्सर खोखली प्रतीत होने लगती है जिनको अक्सर मजदूर धरना -प्रदर्षनों व अपनी सभाओं में जोर-जोर से लगाते है। एक तर्क प्रयाप्त होता है अपने हितों को साधने के लिये कि यूनियन तो केवल परमानेंट मजदूरों की होती है। इस तर्क का हवाला मजदूरों के पूरे समूह के हितों की हत्या कर देता है। एक फैक्ट्री के भीतर कई तरह के मजदूर कार्य करते है जिनमें से केवल स्थाई श्रमिकों के हित बाकी मजदूरों से अलग हो जाते है।

बेलसोनिका यूनियन द्वारा ठेका श्रमिकों को यूनियन की सदस्यता देने की घोषणा आज 9 माह बीत जाने के बाद भी महज एक घोषणा ही रह गई है। इसे व्यवहार में उतारने की जरूरत यूनियन को महसूस नही हुई है। यूनियन की इस घोषणा से महज स्थाई मजदूरों के हित पूरे हुये है। इसका गहराई से विश्लेषण करने पर पाया गया कि इस कार्यवाही से यूनियन का लम्बित पड़ा मांग पत्र जरूर हल हुआ है। असल में यूनियन का यह कदम केवल स्थाई श्रमिकों के हितो को पूरा करने के लिये ही उठाया गया था। आम भाषा में इस मामले को इस रूप में समझा जा सकता है कि यूनियन ने अपने मांग पत्र को हल कराने के लिये ठेका श्रमिकों का केवल इस्तेमाल किया है। भले ही ठेका मजदूरों को यूनियन की सदस्यता देने की घोषणा से तात्कालिक तौर पर यूनियन का मांग पत्र हल हो गया हो लेकिन दुर्गामी तौर पर प्रबंधकों के हित ही पूरे हुये है। वर्ग व वर्ग के हितों की सही समझ ना होना चीजें अपने विपरित की ओर जायेंगी। निष्चित ही यह जिम्मेदारी नेतृत्व की होती है।

15 अक्तूबर के कार्यक्रम के बाद नवम्बर 2020 में यूनियन का मांग पत्र पर समझौता सम्पन्न होने के बाद ठेका श्रमिकों को सदस्यता देने की कार्यवाही को ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया। आज जब शासक वर्ग का मजदूर वर्ग पर चौतरफा हमला हो रहा है और स्थाई नौकरियों पर छंटनी, तालाबंदी, कानूनी व गैर कानूनी वी. आर. एस. द्वारा हमला बोल दिया गया है तो शासक वर्ग के इस हमलें का सामना अकेले स्थाई मजदूरों की यूनियनें करने की स्थिति में नही है। बेलसोनिका प्रबंधन द्वारा वी.आर.एस. की आधिकारिक घोषणा ने मजदूर यूनियन को सकते में डाल दिया है। यूनियन को इस बात का पुनः आभास करा दिया है कि बिना वर्गीय एकता के मालिक वर्ग से जीत पाना सम्भव नहीं है। यूनियन बनाने को लेकर चले 2 साल के लम्बे संघर्ष के बाद मिली जीत का सूत्रधार बेलसोनिका मजदूरों की वर्गीय एकता का पक्ष बहुत मजबूत था। इस वर्गीय एकता के आगे प्रबंधन ने अपनी फौरी हार मान कर यूनियन को स्वीकार कर लिया था। परन्तु दो मांग पत्र हल होने के बाद स्थाई व ठेका श्रमिकों के हित अलग अलग हो गये। और जब यूनियन द्वारा ठेका श्रमिकों को यूनियन की सदसयता देने की घोषणा कर वर्गीय एकता की तरफ बढ़ी तो प्रबंधन ने यूनियन की स्थिति को भांपकर उसी वर्गीय एकता पर हमला कर दिया है। ठेका मजदूरों को यूनियन की सदस्यता देने से पीछे हटने का परिणाम, कम्पनी प्रबंधन द्वारा स्थाई व ठेका श्रमिकों को वी. आर. एस. की घोषणा करना बेलसोनिका के समस्त श्रमिकों की एकता के ऊपर हमला है। यूनियन को अब इस बात का आभास हो चुका है कि बिना फैक्ट्री के स्तर पर वर्गीय एकता बनाए प्रबंधन के हमले को नही रोका जा सकता है।

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Amit Singh

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