बुलडोजर-तंत्र: जिस घर पर तिरंगा है उसे तोड़ दिया जाना है; 74 साल के गणतंत्र का हासिल
By संगीता गीत
नए साल की कड़कड़ाती ठण्ड में तुग़लकाबाद के निवासियों को पुरातत्व विभाग (Archaeological Survey of India/ASI) द्वारा 11 जनवरी को एक नोटिस मिला।
नोटिस के अनुसार किले के आस-पास 100 मीटर के क्षेत्र को संरक्षित घोषित करते हुए वहाँ के सारे निर्माण को प्रतिबंधित कर,घर और दुकानों को अवैध घोषित करते हुए ध्वस्तीकरण/बेदखली के आर्डर की बात की है।
15 दिनों के भीतर ही तोड़ने की बात करते हुए कार्यवाही में अड़चन आने पर निवासियों पर खर्च का बोझ और अन्य कार्यवाही करने की घोषणा भी की गयी है। यह 15 दिन का समय 26 जनवरी को ख़त्म हो रहा है। अब सवाल है कि जनता के लिए ये कैसा गणतंत्र है?
26 जनवरी को बतौर विदेशी मेहमान मिस्र के 2013 में सत्ता-पलटवार के बाद आये राष्ट्रपति अब्देल-फत्तेह अल-सिसी को औपचारिक कार्यक्रमों के लिए बुलाया गया है। G-20 सम्मलेन की मेज़बानी के लिए चल रही तैयारियों में शहर के सौंदर्यीकरण को बढ़ावा देने और जनांदोलनों को रोकने के लिए प्रबंध जोर-शोर से हो रहे है।
उसी समय इस शहर के निवासी दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA), पुरातत्व विभाग (ASI), राष्ट्रिय हरित प्राधिकरण (NGT) या कोर्ट ऑर्डर के खौफ में हैं। शहर के अलग-अलग इलाकों में लोग बुल्डोजर का सामना करने की तैयारियां कर रहे है।
खोरी गांव में 10,000 घरों को नेस्तनाबूद किया
पिछले साल से केंद्रीय शाखा DDA राजधानी के अलग-अलग इलाकों में घरों और दुकानों को अवैध कब्ज़े के नाम पर लगातार तोड़ कर रही है।
अप्रैल 2022 में जहांगीरपुरी में डेमोलिशन सांप्रदायिक तनाव के चलते हुआ। मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्र में डेमोलिशन का दौर चलता आ रहा है। बाबरपुर, मौजपुर, मदनपुर खादर, शाहीन बाग जैसे इलाकों में बुल्डोजर पहुंचा तो था लेकिन कुछ जगहों में जाति-धर्म के विभाजन को खारिज करते हुए एकताबद्ध तरीके से बुलडोज़र का सामना किया गया।
बल्कि ऐसे टक्कर देने वाले कालिंदी कुंज के लोगों पर पुलिस ने दंगे करवाने का आरोप लगा केस भी डाला जो आज तक चल रहा है।
2021 की गर्मी और लू के समय दिल्ली के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित खोरी गांव के हज़ारों घरों को रौंदतें हुए बुलडोज़र चले। इसपर अंतर्राष्ट्रीय हलचल मचने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने अतिक्रमण को रोके बिना पुनर्वास की बात शुरू तो की लेकिन आज तक सभी को तो छोड़िए आधी जनता को भी राहत नहीं मिली है। इसी तरह 2022 में मई महीने में यमुना नदी के तट पर बसे ग्यासपुर बस्ती को भी तोड़ा गया।
लेकिन जहांगीरपुरी, ख़ोरी या ग्यासपुर के बाशिंदों को आज तक राहत नहीं मिली। अगर थोड़ा और पीछे मुड़कर देखते हैं तो 2016 में बेदखल हुए कठपुतली निवासी आज भी ट्रांजिट कैंप में रहने को बेबस और लाचार हैं जो कि घरों के लिए पैसे तक दे चुके हैं लेकिन आज तक उन्हें वादों के सिवा कुछ नहीं मिला।
और तो और आज यहाँ लोग दारु, नशा, धोखाधड़ी, सूदखोरी के जंजाल में बुरी तरह फँस चुके हैं वहीँ पानी, बिजली और साफ़-सफाई जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की कमी से जूझ रहे हैं। किसी भी तरह के सवाल उठाने पर कैंप की बिजली दो-चार दिन तक के लिए काट दी जाती है जो सीधे तौर पर सामंती व्यवस्था को दिखाता है। पुनर्वास के वादे पर आश्रित यह लोग आज इज्जत और अधिकार को भूल बेबसी और लाचारी में जी रहे हैं।
जब घर नहीं होगा झंडा कहां लगेगा
बरसात के पहले अगस्त महीने में पूर्वी दिल्ली की एक कॉलोनी में रातों-रात खंभे पर एक नोटिस लगा। नोटिस के अनुसार रातों-रात 60-70 सालों की रिहाइश को अवैध घोषित कर तोड़ने की बात कही गई थी।
इस इलाके का नाम कस्तूरबा नगर है जिन्होनें एकजुट होकर 15 अगस्त के दिन “हर घर तिरंगा” नारे पर सवाल उठाते हुए पूछा की जब घर ही नहीं होगा तो झंडा कहाँ लगेगा।
दिसम्बर के महीने चले MCD इलेक्शन में वोट देने से इंकार करते हुए कस्तूरबा नगर के लोगों ने अपने हक़ की बात की।
आज भी जुझारूपन और हिम्मत के साथ यहाँ की शोषित जाति की मेहनतकश जनता की लड़ाई DDA के खिलाफ जारी है।
छतरपुर का हाल
लोकतंत्र का खौफनाक चेहरा खड़क गांव में देखा जहाँ बिना किसी नोटिस, कोर्ट आर्डर के बुल्डोजर चढ़ा दिया गया।
पिछले साल त्यौहारों के बीच 21 अक्टूबर को अचानक छतरपुर इलाके के खड़क सतबरी गांव को छावनी में तब्दील कर DDA अफसरों की मौजूदगी में विरोध कर रही जनता को नजरबन्द कर घरों को तोड़ दिया था।
मुस्लिम बहुसंख्यक इलाके में दोनों मुस्लिम और हिंदुओं के 25 से 30 घरों को तोड़कर सरकार ने अपनी तानाशाही का परिचय दिया है।
नई शिक्षा नीति 2020 में सुधार के नाम पर आये बदलावों ने ऑनलाइन शिक्षा के नाम पर मजदूर वर्ग को शिक्षा से दूर करने का काम किया है।
कोरोना में भुखमरी की मार झेल रहे मेहनतकशों पर ऑनलाइन शिक्षा का खर्च वहन करने की ताकत नहीं थी उस वक़्त निशुल्क खुले इस स्कूल ने वो जिम्मेदारी निभाई जो सरकार की होनी चाहिए थी।
मयूर विहार फ्लाईओवर स्थित स्कूल पर बुल्डोजर चला उसके नामो-निशान को ख़त्म कर दिया है। कानून के खोल में छिपकर लगभग 200 मजदूर वर्ग के बच्चों को शिक्षा से वंचित कर,बच्चों के सपनों पर बुल्डोजर चलाना इस व्यवस्था का विद्रूप रूप है।
तुगलकाबाद में नोटिस
सर्द रातों मे मेहरौली के निवासी एक बार फिर डेमोलिशन का सामना कर रहे है। 12 दिसम्बर 2022 को एक नोटिस के ज़रिये DDA ने घर-अतिक्रमण का कोर्ट ऑर्डर दिया था।
मेहरौली आर्कियोलॉजिकल पार्क को संरक्षित करने के नाम पर दशकों से रह रहे निवासियों को बेधखल किया जा रहा है। लोगों को लंबे और महँगे क़ानूनी दाव-पेंच मे फंसाकर रखना एक पुरानी चाल है।
इसी तरह तुग़लकाबाद के निवासियों को ASI द्वारा मिले नोटिस लोगों की नींद उड़ा रहे है।
बीता साल “आवास की बात” MCD चुनाव प्रचार का एक अहम् अंग रहा। चुनाव के ठीक पहले प्रधान मंत्री ने कालकाजी में बनाये गए इन-सीटू रिहैबिलिटेशन प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया था।
भूमिहीन कैंप के 575 निवासियों को 25 जनवरी तक इन फ्लैटों में शिफ्ट करना है। जबकि आज प्रयोग के पहले ही फ्लैट खस्ता हाल में हैं। पाई-पाई जोड़कर 1,47,000 देकर भी फ्लैटों में प्रवेश करने के पहले ही दिवार, टाइल, पाइप आदि टूट चुके है। और कोई भी घर रहने लायक स्तिथि मे नहीं है।
गौरतलब है कि शहर में जिनके भी घर टूटे हैं उनको कालकाजी के इन्हीं फ्लैटों की चमकती तस्वीरें और खोखले वादे दिए जा रहे हैं।
अरावली के जंगल और पहाड़ी इस देश की राजधानी के पर्यावरण, मौसम और पानी के स्तर को बनाये रखता है। सदियों से बसे शहर के लोगों ने अरावली के साथ अटूट रिश्ता बनाया है। लोगों और प्रकृति का तालमेल लोगों के जीवन के लिए ज़रूरी है।
अरावली बचाने के नाम पर एक तरफ गरीब जनता को खदेड़ा जा रहा है तो दूसरी तरफ फार्म हाउसेस, का निर्माण बिना रुके किया जा रहा है। ग्यासपुर बस्ती को हटाने का कारण जहरीले पानी में खेती को रोकने के लिए किया था। जबकि बस्ती हटाने के बाद DDA ने उसी जगह पर पेड़ पौधे लगाए थे।
BJP में आओ नहीं तो बुलडोज़र तैयार है
आज वहां पौधों के नामपर सूखी टहनियां रह गईं हैं। इस व्यवस्था की पर्यावरण नीति जनता के लिए सूखी टहनियों की तरह काम करती है वहीं बड़े जमींदारों और कंपनियों के लिए इंधन है।
विकास के नाम पर दरकती दीवारों को जोशीमठ और झरोटा के घरों में देखा जा सकता है। टूरिज्म को बढ़ावा देने के नाम पर और हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर के लिए जो पहाड़ी सुरंगे बनाई जा रही है, इनके निशाँ पहाड़ों पर बसे निवासियों पर दिखाई दे रहा है।
इसी तरह की बेदखली के खिलाफ इन्हीं पहाड़ों पर बसे हल्द्वानी की 50000 जनता ने एकजुटता दिखाई जिससे कोर्ट ने अस्थाई तौर पर स्टे तो लगा दिया लेकिन लोग अभी भी डर में हैं।
डेमोलिशन के इस दौर को चिन्हित करते हुए ह्यूमन राइट्स वॉच (Human Rights Watch) की रिपोर्ट बताती है कि डेमोलिशन सत्ता के हाथ का एक हथियार बन चुका है।
मध्य प्रदेश के पंचायत मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया ने खुलेआम धमकी दी कि BJP मे आओ नहीं तो बुलडोज़र तैयार है। लॉ एंड आर्डर को मेन्टेन करने के नाम पर लोगों के घरों को ढहाने को लोकतंत्र कहा जा रहा है। इस तानाशाही व्यवस्था का सबसे खुला रूप बुल्डोजर राज़ है।
आज चाहे बृंदावन हो या अयोध्या, दोनो धार्मिक क्षेत्रों मे बुलडोज़र का दौर है। अयोध्या मे तीर्थ यात्रियों के बड़े मंदिर तक आवागमन को सुलभ बनाने के नाम पर आस पास के घर, दुकान और छोटे मंदिर तक तोड़ दिए गए है।
बृंदावन में यही आलम पसरा हुआ है जहां छोटे कारोबारी, पुजारी और सदियों से बसे निवासी, मुख्या मंत्री योगी को खून से खत लिख रहे हैं।
किनके लिए कराया जा रहा खाली
महंगाई और बेरोजगारी की मार झेल रही जनता को खायी में धकेलना यह दर्शाता है कि यह बुल्डोजर राज गरीब जनता की आर्थिक कमर तोड़ रही है और बड़े पूंजीपति और धन्नासेठों की झोली भर रही है।
चर्चित G-20 सम्मलेन की मेज़बानी विदेशी कंपनियों के निवेश के लिए एक खुला न्योता है। ज़मीन जब्ती और झुग्गी झोपड़ियों का अतिक्रमण सौन्दर्यकरण के नाम पर हो रही है। इस सौंदर्यीकरण के लिए कंपनियों को लाया जा रहा है और फिर ये ज़मीन उनको कौड़ियों के दाम पर बेची जाएगी।
यह सौदे इस देश के तानाशाही को बनाये रखने के लिए ज़रूरी है।
हाल ही मे केंद्रीय योजना PM अवास मे भ्रष्टाचार से ग्रस्त पश्चिम बंगाल सरकार की खबर दिखाती है कि चाहे केन्द्र सरकार हो या राज्य, निजी हित और निजी संपत्ति जुटाने के लिए संसदीय दल और सत्तादारी सरकारें मौजूदा संस्थाओं का भरपूर इस्तेमाल करते है।
इन्ही संस्थाओं के माध्यम से लोगों के घर, दुकान, कारोबार, संसाधन आदि लूटकर कंपनियों को सौंपते हैं।
इन शहरों के बच्चों को स्कूलों मे गणतंत्र का मतलब देशभक्ति से जोड़कर दिखाया जाता है। बेदखली और अतिक्रमण के सामने इन्हीं शहरवासियों के बच्चे तानाशाह-तंत्र का मुंह देख रहे हैं और एक नयी सीख पा रहे हैं – लड़ने के सिवा कोई रास्ता नहीं।
(लेखिका सोशल एक्टिविस्ट हैं और ज़रूरी नहीं कि लेख में प्रकट किए गए विचार से वर्कर्स यूनिटी की सहमति हो।)
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