त्वरित टिप्पणी: वे 5 तरीके, जिनसे मोदी सरकार ने किसानों को तबाह कर दिया!
इस तस्वीर में किसानों का संदेश साफ़ है- ‘अब आत्महत्या नहीं रण होगा, संघर्ष महाभीषण होगा!’
इस बूढ़े किसान की लाठी ने सत्ता की लाठी को टक्कर दी है।
इस लाठी की टकराहट की आवाज़ देश के किसानों को संदेश दे रही है, कि टकराने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है।
देश के हुक्मरानों ने किसानों को तबाह कर उन्हें शहरों की झुग्गी-झोपड़ियों में भेजने और अमीरों की चाकरी में लगाने का निर्णय ले लिया है।
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किसानों की जमीनों पर कारपोरेट की निगाहें हैं। बीज, खाद, पानी और कीटनाशक के मालिक तो कारपोरेट काफ़ी हद तक पहले ही बन चुके हैं।
खेती के पैदावर के देशी-विदेशी बाज़ार पर पहले ही कारपोरेट अपना नियंत्रण कर चुके हैं।
https://twitter.com/i/status/1047036059228475392
अब सरकारे पूंजीपतियों को नहीं नियंत्रित करती, पूंजीपति सरकारें चलाते हैं।
कौन नहीं जानता कि मोदी की सरकार अंबानी-अडानी चलाते हैं।
पिछले 50 महीनों में करीब 4 लाख करोड़ रुपये के कर्जों की माफ़ी सरकार ने कारपोरेट घरानों की की है, लेकिन किसानों का कुल कर्ज ही करीब 70 हज़ार करोड़ है, उसे माफ करने के लिए सरकार के पास पैसा नहीं है।
बैंकों को पूंजीपतियों ने लगभग दिवालिया बना दिया है। सरकार जनता के टैक्स के पैसे से बैंकों को किसी तरह बचा रही है।
पिछले 50 महीनों में कृषि और किसानों को मोदी सरकार ने कैसे तबाह किया इसके कुछ आँकड़े-
1- 2010-11 से 2013-14 के बीच (कांग्रेस नीत यूपीए सरकार) कृषि क्षेत्र की विकास दर 5.2 प्रतिशत थी,जो मोदी के इन 4 वर्षों में गिरकर 2.5 प्रतिशत यानी आधी से भी कम हो गई है।
2- किसानों की वार्षिक वास्तविक आय में बृद्धि की दर 3.6 प्रतिशत से गिरकर 2.5 प्रतिशत हो गई है।
3- अधिकांश मुख्य फसलों पर लाभ में 1 तिहाई की गिरवाट आई।
4- कृषि निर्यात 42 बिलियन डॉलर ( 2013-14) से गिरकर 2017-18 में 38 बिलियन डॉलर रह गया है।
5- लेकिन कृषि का आयात 16 बिलियन डॉलर (2013-14) से बढ़कर 24 बिलियन डॉलर (2017-18) हो गया।
जिस खेती किसानी क्षेत्र पर देश की करीब 63 प्रतिशत आबादी यानी 75 करोड़ से ऊपर लोग निर्भर हैं, उसे मोदी ने 48 महीनों में क़रीब क़रीब तबाही के कगार पर ला दिया।
75 करोड़ लोगों को अच्छे दिनों का सपना दिखाकर, और बदतर दिन दिखा दिए।
Is this the #India #Gandhiji dreamt of and died for? The #police is using #WaterCanons and tear gas on the poor protesting #farmers on the Delhi-UP border. What kind of #Democracy are we living in? pic.twitter.com/ZoSs2JIcIQ
— DrSidKhosa_India_Rising (@drsidkhosa) October 2, 2018
ये आंकड़े भारत सरकार की संस्थाओं ने ही उलब्ध कराए हैं।
कारपोरेट झूठ की मशीनरी (मीडिया) और संघ द्वारा फैलाया जा रहे धार्मिक नफ़रत के ज़हर से इन तथ्यों को झुठलाया जा रहा है और खुशहाल भारत का विज्ञापन किया जा रहा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।)
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