मार्क्स के वो अधूरे काम जिन्हें फ्रेडरिक एंगेल्स ने पूरे किए: जन्मदिवस पर विशेष
By मनीष आज़ाद
फ्रेडरिक एंगेल्स की मृत्यु पर लिखते हुए लेनिन ने उन्हें ‘तर्क की शानदार मशाल और शोषितों के लिए धड़कने वाले बेमिसाल ह्रदय’ की संज्ञा दी थी। आज उनकी मृत्यु के 127 साल बाद भी इस मशाल की लौ उनके विचारों में जल रही है।
28 नवम्बर 1820 को आज के ‘यूपरटाल’ (Wuppertal) जर्मनी (तत्कालीन प्रशा) में एंगेल्स का जन्म हुआ था। छात्र जीवन से ही उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया था।
मार्क्स की तरह एंगेल्स भी तत्कालीन ‘लेफ्ट हेगीलियन ग्रुप’ के सदस्य थे। इसी दौरान एंगेल्स ने मार्क्स द्वारा संपादित अखबार ‘Rheinische Zeitung’ में कई लेख लिखे। हालाँकि अभी एंगेल्स की मार्क्स से मुलाक़ात नही हुई थी।
संपन्न मध्य वर्गीय परिवार में जन्मे एंगेल्स के पिता मिल मालिक थे। जाहिर है वे एंगेल्स की राजनीतिक गतिविधियों को कतई पसंद नही करते थे। अंततः पिता के दबाव देने पर 1842 में एंगेल्स को ब्रिटेन के मानचेस्टर शहर जाना पड़ा, जहां उन्हें पिता की एक सहस्वामित्व वाली फैक्ट्री का मैनेजमेंट देखना था।
यहीं उनकी मुलाक़ात उन्हीं की फैक्ट्री में काम करने वाली एक आयरिश मज़दूर महिला मैरी बर्न्स से हुई। यह दोस्ती जल्द ही प्यार और पार्टनरशिप में बदल गयी। हालाँकि उन्होंने औपचारिक शादी कभी नहीं की।
मैरी बर्न्स ने एंगेल्स के जीवन पर निर्णायक असर डाला। मैरी बर्न्स राजनीतिक रूप से सजग महिला थीं और मज़दूरों के ‘चार्टिस्ट आन्दोलन’ की कार्यकर्ता थीं। चार्टिस्ट आन्दोलन के नेताओं से एंगेल्स का परिचय मैरी बर्न्स ने ही कराया।
इसके बाद एंगेल्स चार्टिस्ट आन्दोलन के अखबार ‘नॉर्दन स्टार’ के लिए नियमित रूप से लिखने लगे। मैरी बर्न्स ने ही एंगेल्स को वहां के मज़दूरों की गन्दी संकरी झुग्गियों से और उनके रोज़मर्रा के जीवन-संघर्ष से परिचय कराया। राउल पेक की मशहूर फ़िल्म ‘द यंग कार्ल मार्क्स’ में इस पहलू को बहुत शानदार तरीके से दिखाया है।
मैरी बर्न्स ने कई बार मज़दूर झुग्गी बस्तियों में एंगेल्स को पिटने से भी बचाया। क्योंकि मज़दूर शुरू में एंगेल्स पर संदेह करते थे कि ये मज़दूर बस्ती में किसी स्वार्थवश ही आया होगा। सच तो यह है कि 1844 में लिखी एंगेल्स की क्लासिक रचना ‘The condition of the Working Class in England’ एंगेल्स के इसी प्रत्यक्ष अनुभव पर आधारित थी और इस अनुभव से परिचय कराने का पूरा श्रेय मैरी बर्न्स को जाता है।
मैरी बर्न्स के साथ ही एंगेल्स ने आयरलैंड की यात्रा की। आयरिश रास्ट्रीयता के सवाल को समझने में इस यात्रा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
एंगेल्स की मार्क्स से एक संक्षिप्त मुलाक़ात 1842 में हो चुकी थी। लेकिन 1844 में दोनों पेरिस में (मार्क्स यहाँ निर्वासित जीवन जी रहे थे) 10 दिन साथ रहे और रात दिन के जुझारू बहस मुबाहिसा के बाद दोनों उस मजबूत वैचारिक एकता की ज़मीन पर खड़े हो गए जिसे आज हम मार्क्सवाद के रूप में जानते हैं।
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घोषणापत्र जिसने पूरी दुनिया बदल दी
जर्मनी के मशहूर समाजवादी फ्रेंज मेहरिंग (Franz Mehring) ने लिखा है कि एंगेल्स की विनम्रता के बावजूद यह सच है की मार्क्स को अर्थशास्त्र के कई महत्वपूर्ण पहलुओं से एंगेल्स ने ही परिचय कराया।
बहरहाल इसी के साथ दुनिया के सर्वहारा को मार्क्स और एंगेल्स के रूप में अपना कमांडर और पथप्रदर्शक मिल गया।
एंगेल्स ने मार्क्स के साथ मिलकर पहली किताब ‘होली फॅमिली (1845)’ लिखी और 1846 में दूसरी किताब ‘जर्मन इडीयोलोजी’ लिखी। ‘जर्मन इडीयोलोजी’ में पहली बार क्रांतिकारी द्वन्दात्मक भौतिकवादी दर्शन सुव्यवस्थित रूप से सामने आया। पूँजीवाद में सर्वहारा जिस झूठी चेतना (false consciousness) का कैदी हो जाता है, उसका ज़िक्र पहली बार इसी किताब में आया।
”मनुष्य की भौतिक स्थितियां उसकी चेतना का निर्धारण कराती हैं, ना कि उसकी चेतना उसकी भौतिक स्थितियों का”, तमाम आदर्शवादी कुहासे को चीर देने वाली यह क्रांतिकारी पंक्ति इसी किताब से है।
”परिस्थितियां मनुष्य का निर्माण करती है और पलट कर मनुष्य भी परिस्थितियों का निर्माण करता है”, यह शानदार द्वंदात्मक सिद्धांत इसी पुस्तक में पहली बार प्रतिपादित किया गया। इसी किताब में एंगेल्स ने एलान किया की ‘मुक्ति कोई मानसिक कार्यवाही नहीं बल्कि एक ऐतिहासिक कार्यवाही है’।
लेकिन दिलचस्प बात यह है की इस क्रांतिकारी किताब को छपने के लिए इसे रूस में क्रांति होने तक का इन्तेज़ार करना पड़ा। 1935 में ही जाकर सोवियत रूस में यह पहली बार प्रेस का मुंह देख सकी और सामान्य पाठकों तक पहुँच सकी।
1846 में मार्क्स एंगेल्स ने मिलकर ‘कम्युनिस्ट करेस्पोनडंस कमेटी’ (Communist Correspondence Committee) बनाई ताकि सामान विचारों वाले लोगों के साथ एकता बनाई जा सके। इसी प्रक्रिया में ‘द लीग ऑफ़ द जस्ट’ से होते हुए ‘कम्युनिस्ट लीग’ में दोनों शामिल हो गये।
इसके तरफ से घोषणापत्र तैयार करने का काम मार्क्स और एंगेल्स के कन्धों पर पड़ा। यह घोषणापत्र फरवरी 1848 में छपकर आया। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा की ‘कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ के आने के बाद फिर दुनिया वैसी कभी नहीं रही, जैसी वह इसके पहले थी।
दुनिया का अब तक का सबसे खूबसूरत और क्रांतिकारी नारा ‘दुनिया के मजदूरों एक हो, मजदूरों के पास खोने के लिए सिर्फ बेड़ियाँ है और जीतने के लिए पूरी दुनिया है’ यहीं से आया।
‘कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ ने दर्शन को दार्शनिकों के सिर से उतार कर मज़दूरों के संघर्षों के बीच स्थापित कर दिया। उसने एलान किया- ‘अब तक दार्शनिकों ने संसार की व्याख्या की है, लेकिन असल सवाल उसे बदलने का है’। दर्शन के क़रीब 2000 सालों के इतिहास में पहली बार दुनिया बदलने का सवाल दर्शन का केन्द्रीय सवाल बन गया।
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एक क्रांतिकारी सिद्धांत की नींव
मानव समाज के समस्त इतिहास को (इस वक़्त तक आदिम साम्यवाद की जानकारी नहीं थी) ‘वर्ग संघर्ष के इतिहास’ के रूप में पहली बार सूत्रित किया गया। सामाजिक विज्ञान में इस सूत्रीकरण का महत्व ठीक वैसे ही है, जैसे भौतिक विज्ञान में आइन्स्टीन का E = mc2.
‘कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ का ‘कम्युनिज्म का सिद्धांत’ वाला हिस्सा अकेले एंगेल्स ने लिखा। यहाँ एंगेल्स ने बहुत ही सरल तरीके से कम्युनिज्म के सिद्धांत को समझाया और पहली बार हमें भावी वर्ग विहीन समाज की एक स्पष्ट रूपरेखा मिली। एंगेल्स ने सर्वहारा को एक स्वतंत्र वर्ग के रूप में मान्यता दी और उसकी मुक्ति का वैज्ञानिक आधार प्रस्तुत किया। यहाँ एंगेल्स ने एक और महत्वपूर्ण प्रस्थापना भी दी की बिना पूरे समाज को मुक्त किये सर्वहारा खुद को मुक्त नहीं कर सकता।
यह महत्वपूर्ण संयोग था कि ‘कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ के छपते ही लगभग पूरे यूरोप में सामंतवाद और राजशाही के खिलाफ़ क्रांति शुरू हो गयी। मार्क्स ने इसे ‘कांटीनेंटल रेवोलुशन’ की संज्ञा दी। अब सिद्धांत को व्यवहार में उतारने का वक़्त था। दर्शन को जमीन पर उतारने का वक़्त था। एंगेल्स और मार्क्स यहाँ भी अग्रिम पंक्ति में खड़े थे। दोनों तत्काल ही इस क्रांति में कूद गए।
‘कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ की पोजीशन के अनुसार ही पहली बार सर्वहारा ने स्वतंत्र राजनीतिक वर्ग के रूप में संघर्ष शुरू किया। एंगेल्स ने लिखा- ‘हर जगह क्रांति मज़दूर वर्ग की कार्यवाही थी, मज़दूरों ने ही बैरिकेड खड़े किए, मज़दूरों ने ही इस क्रांति में अपना जीवन न्योछावर किया।’ एंगेल्स और मार्क्स ने जर्मनी के कोलोन (Cologne) को अपना संघर्ष क्षेत्र बनाया।
बाद में एंगेल्स जर्मनी के राइन प्रान्त आकर बन्दूक लेकर बैरीकेटिंग की लड़ाई भी लड़ी। कम लोग यह जानते है की एंगेल्स सैन्य मामलों के सिद्धांत और व्यवहार दोनों में सिद्धहस्त थे। एंगेल्स ने 1841 में कुछ समय प्रशा की सेना में भी काम किया था। मार्क्स के परिवार में एंगेल्स को प्यार से अक्सर ‘मिस्टर जनरल’ कह कर संबोधित किया जाता था।
बहरहाल मजदूरों की इस स्वतंत्र राजनीतिक पहलकदमी से बुर्जुआ वर्ग घबरा गया और उसने क्रांति को अधूरा छोड़कर सामंती शक्तियों के साथ हाथ मिला लिया और अपनी बन्दूकें अपने पूर्व सहयोगी सर्वहारा की तरफ मोड़ दी। जून आते आते क्रांति की दिशा पलट गयी और ग़द्दार बुर्जुआ ने सामंती शक्तियों के साथ मिल कर मज़दूरों का कत्लेआम शुरू कर दिया।
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मार्क्स के काम से आगे
मार्क्स ने इस पर बहुत तीखा कमेन्ट करते हुए लिखा कि बुर्जुआ रिपब्लिक फरवरी क्रांति में नहीं बल्कि जून प्रतिक्रांति में स्थापित हुआ था। अब पूरे यूरोप में प्रतिक्रियावाद का दौर था। एंगेल्स और मार्क्स अपने विचारों और अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण पूरे यूरोप में कुख्यात हो चुके थे। जर्मनी और फ्रांस की पुलिस खास तौर पर उन्हें खोज रही थी। अन्ततः दोनों को भाग कर इंग्लैंड आना पड़ा। जहा अपेक्षाकृत प्रतिक्रियावाद का प्रभाव कम था।
यहाँ आकर एंगेल्स ने अपनी इच्छा के विरूद्ध जाकर पुनः अपने पिता की मानचेस्टर स्थित कॉटन मिल में काम करने का निर्णय लिया। यह काम उन्होंने सिर्फ अपने प्रिय दोस्त कामरेड मार्क्स और उनके परिवार की मदद करने के लिए किया। इसी मदद के कारण मार्क्स ‘कैपिटल’ लिखने का अपना ऐतिहासिक मिशन पूरा कर सके।
मार्क्स ने खुद इसे स्वीकार करते हुए एक पत्र में एंगेल्स को लिखा-‘ कैपिटल लिखने का काम पूरा हो गया। यह सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे त्याग के कारण संभव हुआ।’
कैपिटल का भाग 2 और 3 एंगेल्स ने मार्क्स की मृत्यु के बाद मार्क्स के अधूरे और अस्त-व्यस्त नोट्स के आधार पर अपना पूरा रक्त निचोड़ कर पूरा किया। लेनिन ने तो साफ साफ कहा कि ‘जिस तरह से एंगेल्स ने कैपिटल भाग 2 और 3 को पूरा किया है, इसे मार्क्स और एंगेल्स दोनों की साँझा कृति माना जाना चाहिए।’
एंगेल्स मार्क्स व उनके परिवार की आर्थिक मदद के अलावा उन निर्वासित राजनीतिक मज़दूरों की भी मदद कर रहे थे जो मुख्यतः जर्मनी और फ्रांस के प्रतिक्रियावाद से बचकर यहाँ आये थे। शायद इसी पहलू के कारण लेनिन ने उन्हें ‘सबके लिए धड़कने वाले बेमिसाल ह्रदय’ की संज्ञा दी थी।
लेकिन इन्हीं व्यस्तताओं के बीच 1850 में एंगेल्स ने एक और शानदार किताब लिखी- ‘जर्मनी में किसान युद्ध’। इस किताब में उन्होंने प्रोटेस्टंट धर्म आन्दोलन के पीछे की सामाजिक-आर्थिक शक्तियों को सामने रखा और सिद्ध किया कि धर्म के आवरण में प्रोटेस्टंट आन्दोलन वास्तव में बुर्जुआ आन्दोलन था।
लेकिन इस किताब का सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह था कि सर्वहारा को अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए किसानों के साथ मोर्चा क़ायम करना होगा। निश्चय ही यह लिखते हुए एंगेल्स के दिमाग में हाल की 1848 की क्रांति की असफलता भी रही होगी।
यह सोचना भूल होगी कि इस दौरान मार्क्स महज कैपिटल लिखने में लगे रहे और एंगेल्स अपनी फैक्ट्री में व्यस्त रहे। इसके विपरीत दोनों लगातार इस प्रयास में रहे की मजदूर आन्दोलन को कैसे फिर से अपने पैरों पर खड़ा किया जा सके। इसके लिए दोनों निर्वासित राजनीतिक मजदूरों और इंग्लैंड के मजदूर संगठनो के लगातार संपर्क में रहे और उन्हें गाइड भी करते रहे।
पेरिस कम्यून
इस दौरान एंगेल्स और मार्क्स ने संघर्षरत राष्ट्रीयताओं विशेषकर पोलिश और आयरिश रष्ट्रीयता के लिए लड़ रहे लोगों से भी संपर्क किया और उन्हें व्यापक मजदूर आन्दोलन का हिस्सा बनाने का प्रयास किया। अमेरिका के गृह युद्ध पर भी दोनों की पैनी नज़र थी और दोनों इन विषयों पर लगातार लिख भी रहे थे। अमेरिकी गृह युद्ध के सैन्य मामलों पर एंगेल्स के लिखे लेख बहुत महत्वपूर्ण थे।
इन तमाम प्रयासों का ही नतीजा था, 1864 में स्थापित दुनिया का प्रथम इंटरनेशनल (‘International Workingmen’s association’ or First International)। आज जिसे हम मार्क्सवाद कहते हैं, वह इसी इंटरनेशनल में तमाम ग़ैर सर्वहारा प्रवित्तियों (प्रूदोवाद, लासालवाद, अर्थवाद ब्लांकिवाद, अराजकतावाद आदि) से लड़ कर स्थापित हुआ। और इन तमाम वैचारिक लड़ाइयों में एंगेल्स ने मार्क्स का भरपूर साथ दिया।
हालाँकि भौतिक रूप से एंगेल्स इसके रोजमर्रा के कामों में काफी कम शामिल रहे। लेकिन अंतिम निर्णायक कांग्रेस में एंगेल्स की भूमिका महत्वपूर्ण थी, जहां उन्होंने इंटरनेशनल को अराजकतावादी बकुनिनपंथियों के हाथों में जाने से बचाया। यहाँ एंगेल्स ने बाक़ायदा एक रणनीतिकार की भूमिका निभाते हुए इंटरनेशनल को बकुनिनपंथियों से बचाते हुए इसके हेडक्वार्टर को 1876 में अमेरिका शिफ्ट करने में क़ामयाब हो गए। हालाँकि वहा जाकर यह निष्क्रिय हो गया।
यह इंटरनेशनल की ही ताकत थी की इंग्लैंड का बुर्जुआ चाहकर भी अमेरिकी गृह युद्ध में दक्षिण (Confederate) की तरफ से हस्तक्षेप नहीं कर पाया और पूरे यूरोप का बुर्जुआ दूसरे देशों के मज़दूरों को ‘हड़ताल तोड़क’ (strikebreaker) के रूप में इस्तेमाल नहीं कर पाया, जो इंटरनेशनल की स्थापना से पहले आम बात थी।
इंटरनेशनल के दौरान ही 1871 में मज़दूरों का पहला राज्य ‘पेरिस कम्यून’ अस्तित्व में आया। एंगेल्स ने ‘पेरिस कम्यून’ को फ़र्स्ट इण्टरनेशनल की संतान कहा। पेरिस कम्यून पर मशहूर फ़िल्मकार ‘पीटर वाटकिंग’ ने बहुत ही महत्वपूर्ण फ़िल्म ‘ला कम्यून’ बनायी है।
पेरिस कम्यून की हार के बाद एक बार फिर यूरोप में दमन चक्र तेज हो गया। इंग्लैंड के अलावा पूरे यूरोप में इंटरनेशनल को प्रतिबंधित कर दिया गया। इंटरनेशनल के सदस्यों के पीछे पूरे यूरोप (इंग्लैंड को छोड़कर) की पुलिस कुत्तों की तरह पीछे पड़ गयी। एक बार फिर पूरे यूरोप से क्रांतिकारी मज़दूर दमन से बचने के लिए इंग्लैंड जाने लगे।
एंगेल्स ने रात दिन एक करके इन मजदूरों के रहने खाने की व्यवस्था की और उनसे राजनीतिक सम्बन्ध क़ायम किये। आम तौर से एंगेल्स के इस मानवतावादी पहलू पर कम ध्यान दिया जाता है। लेकिन तत्कालीन प्रतिक्रियावाद के दौर में यह बेहद महत्वपूर्ण था। उनमें से कुछ मज़दूरों की तो एंगेल्स ने मार्क्स की ही तरह आजीवन मदद की।
पूंजी भाग-2 और तीन का काम
इसी समय एंगेल्स की माँ ने एंगेल्स को एक भावनात्मक पत्र लिखा- ‘तुम हमेशा ग़ैर और अजनबियों की बात ही सुनते हो, अपनी मां की बात तो कभी नहीं सुनते। भगवान ही जानता है कि इस समय मेरी क्या स्थिति है। अख़बार उठाते समय मेरे हाथ काँपते है, क्योंकि उनमे तुम्हारी गिरफ्तारी के वारंट की खबर होती है।’ इस पत्र से एंगेल्स के व्यक्तित्व की भी एक झलक मिलती है।
1863 में मैरी बर्न्स की मृत्यु के कुछ समय बाद एंगेल्स उसी तरह के रिश्ते में मैरी बर्न्स की छोटी बहन लीडिया बर्न्स (Lydia Burns) के साथ बंध गये। लीडिया बर्न्स की मृत्यु के बाद जर्मनी के प्रमुख समाजवादी अगस्त बेबेल की पत्नी को लिखे पत्र में एंगेल्स लिखते हैं- ‘मेरी पत्नी एक ईमानदार आयरिश सर्वहारा की संतान थीं, जिमका ह्रदय उस वर्ग के लिए धड़कता था, जिसमें उन्होंने जन्म लिया।’
‘मेरे दिल में उनकी इज्ज़त उन तमाम पढ़ी लिखी, सुसंस्कृत आकर्षक मध्यवर्गीय महिलाओं से कहीं ज्यादा है। और संकट के समय यह बात मुझे हमेशा सुकून पहुचाती रही है।’ मार्क्स की छोटी बेटी एलीनार मार्क्स की लीडिया से बहुत अच्छी दोस्ती थी। एलीनार मार्क्स ने लीडिया के बारे में लिखा- ‘लीडिया अशिक्षित थीं। वह लिख पढ़ नहीं सकती थीं, लेकिन वह सच्ची और ईमानदार थीं। वह एक संत महिला थीं।’
एंगेल्स के बहुत से बुर्जुआ जीवनीकार मैरी बर्न्स और लीडिया को एंगेल्स की बराबर की पार्टनर मानने से इंकार करते हैं। उनके अनुसार दोनों एंगेल्स के घर का काम करने वाली नौकरानी थीं, जिससे एंगेल्स थोड़ा बेहतर व्यवहार करते थे।
अपनी पूंजीवादी सोच के कारण वे इस बात को पचा ही नहीं सकते थे कि उच्च मध्य वर्ग से आने वाले इतना पढ़े लिखे सुसंस्कृत व्यक्ति की पत्नी या पार्टनर सर्वहारा वर्ग से आने वाली एक अशिक्षित महिला कैसे हो सकती है। उन्हें इस बात की समझ नहीं थी कि एंगेल्स भविष्य का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।
1883 में उनके प्रिय मित्र और सह वैचारिक योद्धा कार्ल मार्क्स का भी निधन हो गया। एंगेल्स ने लिखा- ‘दुनिया के सबसे बेहतरीन दिमाग ने सोचना बंद कर दिया।’
पत्नी लीडिया और फिर मार्क्स की मौत ने एंगेल्स को भीतर तक तोड़ दिया था, लेकिन वे सर्वहारा सेना के सच्चे सिपाही थे। दुःख मनाने का वक़्त कहा था। एंगेल्स फिर मोर्चे पर आ डटे। उन्हें मार्क्स का बहुमूल्य अधूरा काम कैपिटल भाग 2 और 3 पूरा करना था। एंगेल्स के ही एकल प्रयासों से यह क्रमशः 1885 और 1894 में प्रकाशित हुई।
इसी बीच जर्मनी, फ्रांस इंग्लैंड आदि देशों में राष्ट्रीय स्तर पर सर्वहारा पार्टी के गठन का प्रयास शुरू हो गया था। जर्मनी की सर्वहारा पार्टी के संस्थापक आगस्त बेबेल, विल्हेम लीब्नेख्त आदि लगातार एंगेल्स के संपर्क में थे और उनसे बहुमूल्य सुझाव ले रहे थे। इतिहास की यह त्रासदी ही थी कि जर्मनी की सर्वहारा पार्टी शुरू से ही अवसरवाद से ग्रस्त थी।
मार्क्स ने ‘सोशलिस्ट वर्कर्स पार्टी ऑफ़ जर्मनी’ (SAPD) के इसी अवसरवाद पर हमला बोलते हुए 1876 में ‘गोथा कार्यक्रम की आलोचना’ लिखी थी। लेकिन सुव्यवस्थित हमला एंगेल्स ने 1878 में अपनी किताब एन्टी-डूहरिंग (Anti-Dühring) में लिखकर बोला।
पहली बार मार्क्सवाद के तीनों संघटक तत्व दर्शन, राजनीतिक अर्थशास्त्र और वैज्ञानिक समाजवाद के बारे में एंगेल्स ने आम पाठकों के लिए बहुत सरल रूपरेखा प्रस्तुत की। उनकी प्रसिद्ध पुस्तिका ‘समाजवाद: काल्पनिक और वैज्ञानिक’ इसी पुस्तक का हिस्सा है।
परिवार, निजी संपत्ति और राज्य की उत्पत्ति
फ्रांसीसी क्रांति के दौरान बास्तीय किले पर हमले की 100वीं बरसी पर 14 जुलाई 1889 को पेरिस में दूसरे इंटरनेशनल की स्थापना हुई। इस समय तक एंगेल्स काफ़ी बुजुर्ग हो गए थे, लेकिन फिर भी एंगेल्स वैचारिक स्तर पर इसे अपना बहुमूल्य सुझाव और मार्गदर्शन देने में कभी पीछे नहीं रहे।
लेकिन एंगेल्स का सर्वश्रेष्ठ अभी आना बाकी था। यह था 1884 में आई उनकी किताब ‘परिवार, निजी संपत्ति और राज्य की उत्पत्ति’। आमतौर से 19 वीं शताब्दी में दो किताबों की चर्चा की जाती है जिसने उस क्षेत्र में चिंतन की पूरी दिशा ही बदल दी। पहली है चार्ल्स डार्विन की ‘ऑन दि ओरिजिन ऑफ़ स्पीशीज (On the Origin of Species)’ और दूसरी है कार्ल मार्क्स की ‘दास कैपिटल’।
लेकिन मेरे हिसाब से 19 वीं शताब्दी की तीसरी महत्वपूर्ण रचना एंगेल्स की ‘परिवार, निजी संपत्ति और राज्य की उत्पत्ति’ है। जिस तरह मार्क्स के ‘कैपिटल’ ने उजरती गुलामी के कारणों की पड़ताल करते हुए उसकी मुक्ति की संभावनाओं को वैज्ञानिक आधार पर स्थापित किया, ठीक उसी तरह एंगेल्स की इस क्लासिक रचना ने भी महिलाओं की गुलामी की पड़ताल की और उसकी मुक्ति की संभावनाओं को वैज्ञानिक आधार दिया।
लेनिन भी इस किताब को आधुनिक समाजवाद की एक बुनियादी कृति मानते हैं। इस किताब ने महिलाओं को उनकी पहचान और आवाज दी।
एंगेल्स ने खुद इसके विषयवस्तु के महत्व को इस रूप में रखा है- ‘पितृ अधिकार से पहले मातृ अधिकार (mother-right)’ के अस्तित्व की खोज का वही महत्व है जो डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत का जीवविज्ञान के लिए और मार्क्स के अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत का राजनीतिक अर्थशास्त्र के लिए है।’
एंगेल्स की प्राकृतिक विज्ञान (Natural Science) में गहरी रूचि थी। मार्क्स और एंगेल्स दोनों को ही अपने समय के विज्ञान की सभी शाखाओं की नवीनतम जानकारी थी। इसे आप इस घटना से समझ सकते है।
चार्ल्स डार्विन की ‘ऑन दि ओरिजिन ऑफ़ स्पीशीज (On the Origin of Species)’ 24 नवम्बर 1859 को जब प्रकाशित हुई तो उसे उसी दिन पंक्ति में सबसे आगे खड़े होकर खरीदने वालों में एंगेल्स थे। कुछ ही दिनों में यह किताब पढ़कर और उस पर अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणी लिखकर इस किताब को एंगेल्स ने मार्क्स के पास भेज दिया।
1872-73 से ही एंगेल्स ने एक बेहद महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट अपने हाथ में ले लिया था। वह था ‘डायलेक्टिक्स ऑफ़ नेचर’ (Dialectics of Nature) लिखने का प्रोजेक्ट। यानी द्वंदवाद (Dialectics) को चिंतन और समाज के अलावा समस्त प्रकृति पर लागू करना। लेकिन अफ़सोस कि उनका यह प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो पाया।
इसका मुख्य कारण यही था कि उन्होंने अपने प्रिय कामरेड दोस्त कार्ल मार्क्स के अधूरे कैपिटल को पूरा करने को अपनी प्राथमिकता बनाते हुए, अपने खुद के प्रोजेक्ट को ठन्डे बस्ते में डाल दिया था।
डायरेक्टिक्स ऑफ़ नेचर पर आइन्सटीन ने क्या कहा
एंगेल्स की मृत्यु के बाद जब ‘डायलेक्टिक्स ऑफ़ नेचर’ के लिए लिए गए नोट्स को जर्मन समाजवादी पार्टी के बर्नस्टीन ने महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टीन को दिखाया तो आइन्स्टीन इसकी तमाम कमियों के बावजूद इसकी गहन अंतर्दृष्टि से बेहद प्रभावित हुए और इसे उसी रूप में छापने की सिफारिश की। बाद में यह किताब 1925 में सोवियत रूस से प्रकाशित हुई।
मशहूर जीव वैज्ञानिक रिचर्ड लेवाईन और रिचर्ड लेवान्तीन (Richard Levins and Richard Lewontin) 1985 में आयी अपनी पुस्तक ‘दि डायलेक्टिकल बायोलॉजिस्ट’ (The Dialectical Biologist) को फ्रेडरिक एंगेल्स को समर्पित करते हुए कहते हैं- ‘फ्रेडरिक एंगेल्स को, जो कई मामलों में ग़लत साबित हुए हैं, लेकिन वे वहां एकदम सही साबित हुए हैं, जहां हमें उनकी ज़रूरत थी।’
इन दोनों वैज्ञानिकों ने अपने तमाम शोध का प्रस्थान बिंदु एंगेल्स की इसी पुस्तक में दी गयी स्थापनाओं को बनाया। एक अन्य मशहूर वैज्ञानिक स्टीफ़न जे गोल्ड (Stephen Jay Gould) ने 1975 में ‘नेचुरल हिस्ट्री’ में लिखते हुए ‘डायलेक्टिक्स ऑफ़ नेचर’ के ही एक चैप्टर ‘वानर से मानव बनने की प्रक्रिया में श्रम की भूमिका’ को वर्तमान जीव विज्ञान के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना।
आज विज्ञान के क्षेत्र में एक तरह का कुहासा व्याप्त है। भौतिक विज्ञान को गणित में रीडयूस (reduce) किया जा रहा है, वही जीव विज्ञान व मनोविज्ञान को ‘जीन’ में रीडयूस (reduce) किया जा रहा है। इस कुहासे को समझने के लिए एंगेल्स की ‘डायलेक्टिक्स ऑफ़ नेचर’ आज भी बेहद महत्वपूर्ण है। और सच तो यह है की इस कुहासे को चीरने के लिए भी प्रस्थान बिंदु ‘डायलेक्टिक्स ऑफ़ नेचर’ ही है।
भौतिक विज्ञान में आज ‘बिग बैंग’ का बोलबाला है। सैद्धांतिक भौतिकी के अधिकांश शोध का प्रस्थान बिंदु ‘बिग बैंग’ ही है। आश्चर्य की बात है कि अधिकांश मार्क्सवादी भी इस सिद्धांत को अकाट्य मानते हैं।
लेकिन एंगेल्स ने ‘डायलेक्टिक्स ऑफ़ नेचर’ में लिखा कि पदार्थ और पदार्थ की गति कभी नष्ट नहीं होती, वह महज अपना रूप बदलती है। यानी ‘मैटर’ का न तो आदि है और न अंत। पदार्थ और पदार्थ की गति को विश्लेषित करते हुए उन्होंने कहा कि दोनों को अलगाया नहीं जा सकता।
आज ऊर्जा को लेकर जितना भाववाद भौतिक विज्ञान में मौजूद है, वह एंगेल्स के समय नहीं था। लेकिन हम एंगेल्स की स्थापनाओं से आज इस बात को अच्छी तरह समझ सकते हैं कि ऊर्जा महज एक ‘गणना’ है। जिसे हम पदार्थ से अलग ऊर्जा की संज्ञा देते हैं, वह महज एक दूसरे प्रकार का पदार्थ और उसकी गति है। लेकिन ऊर्जा को लेकर यह भाववाद पूंजीवाद/साम्राज्यवाद को पसंद है। इसलिए इसे इस तरह से बढ़ावा दिया जाता है, मानो यही अंतिम सत्य हो।
ठीक इसी तरह नोम चोम्स्की का भाषा संबंधी सिद्धान्त भाववाद में आकंठ डूबा हुआ है। आश्चर्य की बात यह है कि अधिकांश मार्क्सवादी भी इसे अंतिम सत्य के रूप में स्वीकार कर लेते हैं। नोम चोम्स्की के अनुसार हर व्यक्ति में एक LAD (Language acquisition device) होता है जो जन्मजात होता है। चोम्स्की के अनुसार यह ‘LAD’ कभी 50 हजार साल पहले किसी प्राकृतिक चमत्कार के कारण जीन में म्यूटेशन के कारण बना।
एंगेल्स ने ‘वानर से मानव बनने में श्रम की भूमिका’ में चेतना और भाषा के सवाल को भौतिकवादी नज़रिए से हल किया और बताया कि चेतना और भाषा को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता और दोनों का संबंध मानव के सामूहिक श्रम से है।
यानी भाषा का जन्म एक ऐतिहासिक प्रक्रिया में सामूहिक श्रम के साथ हुआ है, किसी प्राकृतिक चमत्कार से नहीं।
कहने का मतलब यह है कि आज विज्ञान के क्षेत्र में जो भाववादी घटाटोप छाया है, उसे काटने का प्रस्थान बिंदु आज भी एंगेल्स की महत्वपूर्ण रचना ‘डायलेक्टिक्स ऑफ़ नेचर’ में ही है।
इसी तरह समाज विज्ञान में छाये कुहासे यानी ‘उत्तर आधुनिकता’ का जवाब एंगेल्स का यह महत्वपूर्ण कथन है- ‘तर्क वितर्क से पहले व्यवहार है (There is practice before argumentation)।’
सच तो यह है की एंगेल्स और मार्क्स के क्रांतिकारी विचारों से ज्ञान का कोई भी क्षेत्र निर्णायक रूप से प्रभावित हुए बिना नहीं रहा।
एंगेल्स के 70 वें जन्मदिन पर मार्क्स की बेटी एलीनार मार्क्स ने एंगेल्स की तारीफ़ करते हुए कहा कि ‘एंगेल्स कभी बूढ़े नहीं लगते। पिछले 20 सालों से वे दिनों दिन और जवान होते जा रहे हैं।’
यह बात भले ही हलके फुल्के अन्दाज़ में उनकी तारीफ़ में कही गयी हो, लेकिन यह अटल सच है कि एंगेल्स और मार्क्स के विचार दिनों दिन युवा, जीवन्त और पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक होते जा रहे हैं।
फासीवाद और पतनशील साम्राज्यवाद के इस दौर में जब सभी विचारधाराएँ औंधे मुंह गिर रही हैं तो मार्क्सवाद की मशाल आशा की मशाल के रूप में और अधिक प्रज्जवलित है।
एंगेल्स के जन्म के ठीक 202 साल बाद आज यह कहना कतई अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि मार्क्सवाद है तो आशा है और आशा है तो मार्क्सवाद है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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