कोरोनाः जनता ने घंटा घड़ियाल बजा लिया, अब जांच और इलाज कब शुरू होगा मोदीजी?

कोरोनाः जनता ने घंटा घड़ियाल बजा लिया, अब जांच और इलाज कब शुरू होगा मोदीजी?

By मुनीष कुमार

जनता ने आपके कहने पर 14 घंटे का कर्फ्यू भी लगा लिया। आपके कहे अनुसार ताली, शंख व घंटे-घड़ियाल भी बजा लिए।

देश की भयभीत-पीड़ित जनता की अब कोरोना जांच का और ईलाज का इंतजाम करवाईए मोदीजी! पहले ही बहुत देर हो चुकी है, अब और देरी देश में कहीं कहर बनकर न टूट पड़े।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आपातकालीन शीर्ष विशेषज्ञ माइक रयान की बात को सुनने और गौर देने की सख़्त ज़रूरत है जो आज उन्होंने लंदन में बीबीसी से कही है।

उन्होंने कहा कि ‘देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य को दुरुस्त किए बगैर मात्र लाॅक डाउन करके कोरोना वायरस को पुर्नर्जीवित होने से नहीं रोका जा सकता है।’

“हमें उन पर ध्यान केन्द्रित करने की ज़रुरत है जो कोरोना वायरस से सक्रंमित हैं, बीमार हैं। उन्हें अलग-थलग करने व दूसरे लोगों के सम्पर्क में आने से रोकने की जरुरत है।”

जांच क्यों कम हो रही है देश में?

उन्होंने कहा कि जैसे ही लाॅक डाउन हटाया जाता है, इस बीमारी के वापस पनपने की सम्भावना बन जाती है।

माइक रयान ने दक्षिण कोरिया, चीन व सिंगापुर का उदाहरण देते हुए कहा कि इन देशों में प्रतिबंधों के साथ हर संभव संदिग्ध की कोरोना जांच भी कराई गयी। उन्होंने कहा कि इस बीमारी का केन्द्र बिंदु अब एशिया बन गया है।

गौरतलब है कि अन्य प्रतिबंधों के साथ दक्षिण कोरिया में कोरोना वायरस से मुकाबला करने के लिए 10 लाख लोगों में 4,881 तथा चीन में 2,820 लागों की कोरोना संक्रमण की जांच कराई गयी।

हर संक्रमित मरीज के ईलाज व उसे तन्हाई में रखने की व्यवस्था की गयी। इन देशों ने अपने सभी संशाधनों को कोरोना का इलाज करने के लिए उपयोग किया।

इसका परिणाम यह रहा कि चीन से कोरोना लगभग खत्म होने की ओर है और दक्षिण कोरिया में कुल संक्रमित लोगों में मृत्यु का आंकड़ा 1 प्रतिशत के आसपास है। इन दोनों देशों में नये कोरोना संक्रमण के मामलों में भी कमी आयी है।

दो करोड़ लोगों पर एक जांच लैब

राष्ट्रीय सहारा के अनुसार, 16 मार्च तक हमारे देश में कोरोना जांच प्रति 10 लाख लागों में मात्र 6.8 लोगों की ही की गयी है। जो कि आश्चर्यजनक रुप से बेहद कम है। ये सरकार की इस मामले में आपराधिक लापरवाही की ओर इशारा करता है।

दुनिया में अब तक कोरोना संक्रमण के 3.16 लाख से भी अधिक मामले सामने आ चुके हैं। जिनमें 13,500 लोगों की मृत्यु हो चकी है। हमारे देश में कोरोना संक्रमण के अभी तक 360 मामले सामने आए हैं। इनमें से 7 लोगों की मौत की ख़बर है।

देश में कोरोना वायरस की जांच के लिए अभी मात्र 62 सरकारी लैब हैं जिनमें कोरोना जांच की व्यवस्था है। यानि कि लगभग दो करोड़ लोगों पर एक लैब है, जो कि देश की दयनीय हालत की ओर इशारा करता है।

कोरोना टेस्ट की व्यवस्था बेहद सीमित होने के कारण, देश में कोरोना संक्रमण के मामले वास्तविकता के मुकाबले काफी कम सामने आ रहे हैं।

अभी भी कोरोना से संक्रमित लोग बड़ी संख्या में समाज में रह रहे हैं। जिस कारण देशवासियों का आने वाला समय बेहद कठिन है।

4500 रु. में होगी जांच तो कौन करा पाएगा?

सरकार का जोर जांच के मुकाबले लाॅक डाउन पर ज्यादा है। मात्र लाॅक डाउन से कोरोना से मुकाबला संभव नहीं है। जैसा कि माइक रयान भी कह रहे हैं।

इस समय जरुरी है समाज में कोरोना संक्रमित मरीजों को चिन्हित करने के लिए देश में बड़े स्तर पर जांच व लैब स्थापित करने की व्यवस्था की जाए। आज देश में कारोना की जांच आसान नहीं है।

कोई व्यक्ति जब कोरोना के लक्षण दिखने पर सरकारी अस्पताल पहुंचता है तो उसकी जांच कराने की जगह उसकी एक टोल फ्री नम्बर पर बात कराई जाती है।

सरकार निजी पैथोलोजी लैब को कोरोना जांच के नाम पर 4500 रु. शुल्क वसूलने को हरी झण्डी दे रही है। ये सब-कुछ देश के लिए बेहद घातक है।

हमारे देश में 11 हजार लोगों पर एक एलोपैथिक डाक्टर है। जबकि एक हजार लोगों पर 1 डाक्टर का मानक है। इसी तरह से देश में गिने-चुने अस्पताल हैं जहां पर कोरोना के इलाज के लिए आई.सी.यू, वैंटीलेटर व मरीजों को कोरन्टाइन में रखने की व्यवस्था है।

corona virus lab test

घर घर होनी चाहिए जांच

ऐसे में आज ज़रूरी है कि देश में युद्ध स्तर पर कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज हेतु आई.सी.यू, वैंटीलेटर व मरीजों को कोरन्टाइन की व्यवस्था की जाए। देश के सभी प्राइवेट अस्पताल व पपैथोलोजी लैब को सरकार अधिग्रहित कर उन्हें देश की सेवा में समर्पित कर दे।

इस समय देश का होटल उद्योग ठप पड़ा है। देश के बड़े-बड़े रिजोर्ट व होटलों को आसानी से रोतों-रात अस्पतालों में तब्दील किया जा सकता है। इसकी पहल भी सरकार को करनी चाहिए।

सरकार को चाहिए कि वह गांव व तहसील स्तर पर मौजूद प्राथमिक, सामुदायिक, संयुक्त, बेस व जिला अस्पतालों/स्वास्थ्य केन्द्रों में कोरोना संक्रमण की जांच के लिए किट व विशेषज्ञ उपलब्ध कराकर व्यापक स्तर पर जांच की व्यवस्था करे।

देश के सभी संशाधनों को कोरोना से लड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाए।

सच्चाई ये है कि जब तक देश में कोरोना मरीजों की पहचान करके उनके इलाज की व्यवस्था नहीं की जाएगी, उन्हें तन्हाई में नहीं रखा जाएगा, तब तक देश को कितना भी लाॅक डाउन कर दिया, कोरोना पर नियंत्रण सम्भव नहीं है।

देश संकट की घड़ी में है। जब सरकार वोटर लिस्ट बनाने, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) तैयार करने के लिए अपने कर्मचारी घर-घर भेज सकती है तो कोरोना वायरस के इलाज के लिए पैरामेडिकल स्टाफ व अन्य कर्मचारियों क्यों नहीं घर-घर भेजा जा सकता है?

workers return from mumbai

ग़रीबों पर सबसे अधिक असर

उन्हें कोरोना संक्रमित मरीजों की जांच व उनकी पहचान करने में क्यों नहीं लगाया जा सकता है?

देश में ज्यादातर राज्यों में लाॅक डाउन बढ़ाकर 31 मार्च तक कर दिया गया है, सभी रेलों को भी रद्द किए जाने की खबर है।

देश की 80 प्रतिशत आबादी मेहनत-मजदूरी करके, खोमचा ठेला-फड़ लगाकर, टैम्पों, बस आदि चलाकर तथा अन्य विभीन्न तरीके के काम करे अपना जीवन यापन करती है।

उसके सामने दो वक्त की रोटी का संकट आ खड़ा हुआ है। उनके लिए एक तरफ कुआं है, दूसरी तरफ खाई। कुछ राज्य सरकारों ने उनके लिए एकहजार, 3,000 रु. आदि देने की घोषणा की है।

कोरोना के साथ मंडरा रहा एक और ख़तरनाक़ ‘वायरस’ का ख़तरा, नज़रअंदाज़ करना कितना घातक?

corona virus testing and readiness of india

31 मार्च के लाॅक डाउन व आगे की स्थिति को देखते हुए ये राशि बहुत थोड़ी है।

सरकार के पास धन व संशाधनों की कोई कमी नहीं है जब सरकार पिछले 6 वर्षों में देश के पूंजीपतियों का 8 लाख करोड़ रुपयों का कर्ज माफ कर सकती है तो कोरोना वायरस के संकट से निपटने के लिए इससे भी ज्यादा धन खर्च करने की क्षमता उसके पास है।

और उसे ये काम सर्वेच्च प्राथमिकता से करना चाहिए। वरना इतिहास ने आज भी बंगाल अकाल के अपराधियों को माफ़ नहीं कर पाई है।

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Workers Unity Team