इस देश के दो पीएम नहीं हैं, इसलिए सवाल तो नरेंद्र मोदी से ही पूछा जाएगाः रवीश कुमार
रवीश कुमार ने कहा कि पत्रकारों का सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग करना असल में जनता को एक तरह की धमकी देना है कि अगर हम इनकी ये हालत कर सकते हैं तो तुम्हारी क्या हालत कर देंगे, सोच लेना।
पत्रकारों पर हमले के ख़िलाफ़ 22-23 सितम्बर को दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के पहले दिन दूसरे सत्र में प्रमुख वक्ता के रूप में पहुंचे थे।
विषय था ट्रोल, थ्रेट, इटीमिडेशन। वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार, स्वतंत्र पत्रकार नेहा दीक्षित और वरिष्ठ पत्रकार निखिल वागले ने इस पर अपने अनुभव साझा किए।
रवीश ने कहा कि इस देश में सिर्फ एक प्रधानमंत्री हैं, इसलिए कोई सवाल होगा तो इन्हीं एक से होगा। सत्ता में आने के बाद नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने मिलकर एक ऐसी संस्कृति का निर्माण किया है जिसमें सवाल पूछने वालों को गाली दी जाती है, उन्हें धमकाया जाता है।
दूसरा कोई होता तो उससे भी सवाल पूछा जाता। अब ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री आप हैं और सवाल दूसरे से पूछे जाएं।
रवीश कुमार ने कहा कि पत्रकारों को धमकाने, चुप कराने, पीछा करने, सोशल मीडिया पर ट्रायल करने के पीछे एक ही विचारधारा और राजनीतिक संस्कृति के लोग हैं। और ऐसे समय जब भय का माहौल बनाया जा रहा है, इससे मुकाबला करने का एक ही कारगर हथियार है कि सवाल मन में उठे उसे उसी वक्त बोलना होगा।
उनका कहना है कि जो लोग ये सोचते हैं कि न बोलने से वो बच जाएंगे, ये उनकी ग़लतफहमी है। जो बोलने से बच रहे हैं, ऐसा वक्त आ गया है कि वो भी नहीं बचने वाले हैं।
रवीश ने कहा कि उनके कार्यक्रम में दो साल से सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी का कोई नेता उनके कार्यक्रम में नहीं आता है, जबकि इससे पहले कई भाजपाई नेताओं के फोन आते थे कि उन्हें भी डिस्कशन में शामिल किया जाए। लेकिन जबसे सरकार बनी और सवालों का सामना करना पड़ा तो उन्होंने बहिष्कार कर दिया।
उन्होंने कहा कि पत्रकारों को चुप कराने के लिए सोशल मीडिया से लेकर ज़मीन तक पर एक भीड़ तैयार की गई है जो कि हर कीमत पर बदनाम करने, लिंच करने के लिए तैयार बैठी हुई है।
आरएसएस से जुड़े संगठनों द्वारा असम की आदिवासी बच्चियों की तस्करी का खुलासा करने पर संघ के निशाने पर आईं नेहा दीक्षित ने कहा कि धमकाने के लिए ये ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं कि एक ख़ौफ़ पैदा हो जाए। ट्रोल आर्मी रेप करने के तरीके सुझाती है।
वरिष्ठ पत्रकार निखिल वागले ने कहा कि मीडिया को चुप कराने के ये तरीके हैं। पहले वो ट्रोल करते हैं, फिर धमकी देते हैं और इससे भी बात न बने तो वो आवाज़ उठाने वाले लोगों को मार डालते हैं। उम्मीद करते हैं कि नरेंद्र दाभोलकर, पंसारे, कलबुर्गी और गौरी लंकेश के बाद आगे ऐसी कोई घटना सामने न आने पाए।
(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र मीडिया और निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को फॉलो करें।)