बिजलीकर्मियों के गुस्से से लगा सरकार को ‘करंट’, प्रतिबंध के बावजूद मनाया काला दिवस
विद्युत संशोधन बिल के खिलाफ विरोध को रोकने को योगी सरकार की सख्ती को आखिरकार चुनौती मिल ही गई। कानून शिकंजे में कसने की धमकियों को दरकिनार कर कई जगह बिजलीर्मियों ने विरोध-प्रदर्शन किया और काली पट्टी बांधकर राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजा। वर्कर्स फ्रंट ने सबसे तल्ख टिप्पणी की। कहा कि मोदी सरकार महामारी में भी महाविनाश में लगी है।
बिजली कर्मचारियों के काला दिवस का वर्कर्स फ्रंट और मजदूर किसान मंच के कार्यकर्ताओं ने पूरे देश में समर्थन किया। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र, चंदौली, आगरा, मऊ, लखनऊ, बस्ती, गोंडा, जौनपुर, वाराणसी, इलाहाबाद आदि जिलों में और झारखंड, उड़ीसा, दिल्ली, कर्नाटक जैसे तमाम राज्यों में ईमेल, ट्वीटर, प्रशासनिक अधिकारियों के माध्यम से विद्युत संशोधन कानून 2020 को वापस लेने के लिए राष्ट्रपति को पत्रक भेजा और अपनी फेसबुक व वाट्सअप की डीपी काली की।
यह जानकारी मजदूर किसान मंच के अध्यक्ष पूर्व आईजी एस. आर. दारापुरी और वर्कर्स फ्रंट के उपाध्यक्ष व पूर्व अधिशासी अभियंता पावर कारपोरेशन ई0 दुर्गा प्रसाद ने प्रेस को जारी अपने बयान में दी।
वर्कर्स फ्रंट, मजदूर किसान मंच, बुनकर वाहनी, समाचार कर्मचारी यूनियन, ठेका मजदूर यूनियन एवं अन्य संगठनों द्वारा महामहिम को भेजे ज्ञापन में कहा गया कि कारपोरेट घरानों के हितों के लिए विद्युत क्षेत्र के निजीकरण के संशोधन कानून में सब्सिडी, क्रास सब्सिडी को खत्म कर दिया गया है जिसके कारण बिजली के दामों में अप्रत्याशित वृद्धि होगी।
किसानों को सिंचाई के लिए मिल रही सस्ती बिजली तो पूर्णतया खत्म हो जायेगी। दूसरे देशों में बिजली बेचने के प्रावधान को करने से पहले सरकार को देश में सबको सुलभ, सस्ती और निर्बाध बिजली की व्यवस्था करनी चाहिए। हालत यह है कि आज भी शहरों और गांव को हम चैबीस घंटे बिजली नहीं दे पा रहे। जबकि देश और दुनिया के विकास में बिजली का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
आज भी कोरोना महामारी के बाद हमें खेती किसानी, कल कारखानों के विकास के लिए बिजली की ही सर्वाधिक जरूरत होगी। सच यह है कि तीन लाख मेगावाट की क्षमता के सापेक्ष हम अभी महज बयालीय प्रतिशत ही बिजली का उत्पादन कर पा रहे है। वैसे भी बिजली के निजीकरण के प्रयोग देश में विफल ही हुए है। आगरा के टोरंट पावर के प्रयोग से खुद सीएजी के रिपोर्ट के अनुसार बड़ा नुकसान सरकार को हुआ है। घाटे का तर्क भी बेईमानी है।
एक तरफ सस्ती बिजली बनाने वाली अनपरा जैसी इकाईयों में थर्मल बैकिंग करायी जाती है वहीं दूसरी तरफ कारपोरेट घरानों से महंगी बिजली खरीदी जा रही है। वितरण कम्पनियों के घाटे का भी सच यह है कि सरकार ने ही अपना लाखों-करोड़ों रूपया बकाया नहीं दिया। इसलिए ज्ञापन में महामहिम से बिजली जो जीने के अधिकार का हिस्सा है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आयेगा। उसकी रक्षा के लिए इस संशोधन बिल को वापस लेने की मांग की गयी है।
प्रतिवाद में प्रमुख रूप से उड़ीसा में मधुसूदन, झारखंड में मधु सोरेन, हेमन्त दास, दिल्ली में हिम्मत सिंह, वाराणसी में जयराम पांडेय, सोनभद्र में कृपाशंकर पनिका, तेजधारी गुप्ता, चंदौली में अजय राय व आलोक राजभर, इलाहाबाद में राजेश सचान, बस्ती में एडवोकेट राजनारायन मिश्र, गोंडा में एडवोकेट कमलेश सिंह आदि लोगों ने किया।
अनपरा~ ओबरा के ठेका मजदूरों ने भी उठाई आवाज
अनपरा में वर्कर्स फ्रंट से जुड़ी ठेका मजदूर यूनियन के जिलामंत्री तेजधारी गुप्ता, मसीदुल्ला अंसारी, अशोक यादव ने प्रबंधन के माध्यम से ज्ञापन भेजा। पिपरी में ठेका मजदूर यूनियन के जिलाध्यक्ष कृपाशंकर पनिका, पूर्व सभासद नौशाद, मारी, प्रवीण कुमार मौर्य, बृजेश कुमार न अपर श्रमायुक्त विंध्याचल मंडल के द्वारा ज्ञापन भेजा गया।
ओबरा में जिला संयुक्त मंत्री मोहन प्रसाद, उपाध्यक्ष तीरथराज यादव, चंद्रशेखर पाठक के नेतृत्व प्रबंधन के माध्यम से ज्ञापन दिया गया। राबर्ट्सगंज में मजदूर किसान मंच के नेता जितेन्द्र लकड़ा, जितेन्द्र गुप्ता और घोरावल में कांता कोल व श्रीकांत सिंह के द्वारा ज्ञापन दिए गए।
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