1 जून के देशव्यापी काला दिवस को प्रतिबंधित करना गैरकानूनी- वर्कर्स फ्रंट

1 जून के देशव्यापी काला दिवस को प्रतिबंधित करना गैरकानूनी- वर्कर्स फ्रंट

पावर सेक्टर के निजीकरण के लिए लाये गये विधुत संशोधन कानून-2020 के खिलाफ 1 जून 2020 के प्रस्तावित देशव्यापी काला दिवस को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रतिबंधित करना गैरकानूनी व संविधान विरुद्ध है साथ ही अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के बाध्यकारी नियमों के भी खिलाफ है।

वर्कर्स फ्रंट के प्रदेश अध्यक्ष दिनकर कपूर ने इसकी निंदा करते हुए प्रेस को जारी अपने बयान में ये बात कही है। उन्होंने कहा कि बिजली कामगारों का आंदोलन किसान, आम नागरिक के हित में है, जबकि पावर सेक्टर को कारपोरेट्स को सौंपने की मोदी सरकार की कार्यवाही राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध है।

उन्होंने कहा कि इस बिल में प्रस्तावित देश के बाहर बिजली बेचने का प्रावधान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक कार्पोरेट मित्र के लिए लाया गया है, जो कच्छ गुजरात में बन रही अपनी बिजली को पाकिस्तान को बेचने के लिए बेताब हैं। इसीलिए प्रधानमंत्री आए दिन इस बिल को लाने के लिए प्रयास कर रहे हैं।

इसके विरोध से बौखलाई आरएसएस-भाजपा की सरकार ने प्रतिबंध लगाया है। उन्होंने बिजली कामगारों से अपील की कि निराश होने या घबराने की जगह जनता को सचेत करने और सरकार की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ जन जागरण की जरुरत है।

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देश के लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास करने वाले दलों, संगठन व व्यक्तियों और किसान आन्दोलन, व्यापार मंडलों के प्रतिनिधियों के साथ मिलकर इस विरोध को राजनातिक प्रतिवाद में बदलना होगा। यह बेहद डरी हुई सरकार है, इससे राजनीतिक तरीके से ही मुकाबला किया जा सकता है।

दिनकर कपूर ने बताया कि इस बिल में मुख्य प्रावधान सब्सिडी व क्रॉस सब्सिडी खत्म करना, डिस्कॉम (वितरण) को कारपोरेट कंपनियों के हवाले करना और टैरिफ की नयी व्यवस्था से न सिर्फ कोरोना महामारी में जमीनी स्तर पर जूझ रहे बिजली कामगारों के भविष्य को खतरे में डाला जा रहा है।

इससे आम उपभोक्ताओं खासकर किसानों पर भारी बोझ डाला जाएगा, जिसकी शुरुआत बिजली दरों में बढ़ोत्तरी कर पहले ही हो चुकी है। जानकारों का कहना है कि इस बिल के बाद किसानों और आम उपभोक्ता को करीब दस रुपया बिजली प्रति यूनिट खरीदने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।

दरअसल, ‘लोकल पर वोकल’ करने वाली मोदी सरकार कोरोना महामारी से पैदा हुए आर्थिक संकट के बहाने देश की सार्वजनिक संपत्ति को बेचने और बर्बाद करने में लगी है। कोयला क्षेत्र के निजीकरण के लिए अध्यादेश लाया जा चुका है, रक्षा जैसे राष्ट्रीय हित के महत्वपूर्ण सेक्टर में विदेशी पूंजी निवेश की अनुमति दे दी गई। बैंक और बीमा को बर्बाद कर दिया गया। वास्तव में बिजली सेक्टर पर ये हमला भी इसी ‘देश बेचो योजना’ का हिस्सा है।

उन्होंने कहा कि बिजली के घाटे का तर्क भी बेईमानी है क्योंकि घाटा कारपोरेटपरस्त नीतियों की देन है। उत्तर प्रदेश का ही उदाहरण देख लें, यूपीपीसीएल द्वारा न सिर्फ केंद्रीय पूल से राष्ट्रीय औसत से काफी सस्ते दर से बिजली खरीदी जाती है, बल्कि अनपरा, ओबरा और जल विद्युत गृहों से काफी निम्न दर से बिजली का उत्पादन किया जाता है।

लेकिन इन सस्ते बिजली पैदा करने वाले उत्पादन केंद्रों में थर्मल बैकिंग करा कर उत्पादन रोका जाता है। वहीं कारपोरेट घरानों से अत्यधिक मंहगी दरों से बिजली खरीदी जाती है।

यह भी सर्वविदित है कि देश में निजी घरानों को सस्ते दामों पर जमीन से लेकर लोन तक मुहैया कराया गया और हर तरह से पब्लिक सेक्टर की तुलना में तरजीह दी गई तब इनके यहां उत्पादित बिजली की लागत ज्यादा आना लूट के सिवाय और कुछ नहीं है। यही नहीं, इन कारपोरेट घरानों ने बैंक से लिए कर्जो का भुगतान तक नहीं किया जो आज बैंकों के एनपीए में एक बड़ा हिस्सा है।

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ashish saxena