प्रदर्शन करने पर FIR के ख़िलाफ ट्रेड यूनियनों का अमित शाह को पत्र, मुकदमे को बताया ट्रेड यूनियन अधिकारों पर हमला
दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने केंद्रीय गृह मंत्रालय अमित शाह को चिट्ठी लिखकर 9 अगस्त के प्रदर्शन के लिए देश भर में दर्ज किए गए मुकदमों को तत्काल वापस लिए जाने की मांग की है।
उल्लेखनीय है कि श्रम क़ानूनों को ख़त्म किए जाने, निजीकरण और कोरोना में मेहनतकश वर्ग आबादी के साथ सरकार की ओर से किए गए बुरे सुलूक के ख़िलाफ़ केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के साझा मंच ने बीते 9 अगस्त को देश बचाओ का नारा देते हुए जेल भरो आंदोलन का आह्वान किया था।
इससे पहले मज़दूर संघर्ष अभियान (मासा) ने 9 जुलाई से 9 अगस्त के बीच एक महीने तक मोदी सरकार की मज़दूर किसान विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन का आह्वान किया था।
केंद्रीय ट्रेड यूनियनों की ओर से जारी चिट्ठी में कहा गया है कि नौ अगस्त को ट्रेड यूनियनों और किसान संगठनों की ओर से बुलाए गए शांतिपूर्ण देशव्यापी प्रदर्शन के बाद एफ़आईआर दर्ज किया जाना लोकतंत्र में विरोध के अधिकार का गला घोंटना है।
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प्रदर्शन करने के अधिकार पर हमला
ये प्रदर्शन मौजूदा सरकार की श्रम नीति, विनिवेश और सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण के ख़िलाफ़ हुआ था। कोरोना वायरस के ख़िलाफ लड़गाई में अगली पांत में खड़े डॉक्टर, नर्स, टेक्निकल स्टाफ़, सफ़ाई कर्मचारी, म्युनिसिपल वर्कर्स और आशा, आंगनवाड़ी, मिड डे मील के स्कीम वर्कर्स के वाज़िब मुद्दों को उठाया गया।
ये सभी मेहनतकश वर्ग के लोग महामारी के समय में भी बाहर निकलने पर मज़बूर हुए क्योंकि उन पर सरकार की ओर से लगातार बदइंतज़ामी थोपी जा रही थी।
चिट्ठी में कहा गया है कि प्रदर्शन के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क पहनने की नियम का कड़ाई से पालन किया गया था। यहां तक कि इसे भी एफ़आईआर में कारण बता दिया गया है।
ट्रेड यूनियनों के नेताओं ने कहा है कि इस तरह की कार्यवाही वर्करों की समस्याओं को उठाने के यूनियनों के लोकतांत्रिक अधिकार को दबा देने की बदले वाली कोशिश है। ये अस्वीकार्य है।
चिट्ठी में कहा गया है कि, हम आपसे अपील करते हैं कि पूरे देश में यूनियन नेताओं और कार्यकर्ताओं पर किये गए एफ़आईआर को लोकतंत्र के हित में वापस लिया जाए।
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मज़दूरों में आक्रोश
इस चिट्ठी को जारी करने वाली ट्रेड यूनियनों में इंटक, एटक, एचएमएस, सीटू, एटक, टीयूसीसी, सेवा एक्टू, एलपीएफ़ और यूटीयूसी का नाम शामिल है।
ग़ौरतलब है कि जबसे लॉकडाउन घोषित हुआ, पूरे देश में धरना प्रदर्शन पर रोक लगा दी गई लेकिन दूसरी तरफ़ छंटनी, सार्वजनिक उपक्रमों की बिक्री, श्रम क़ानूनों को ख़त्म करने से लेकर महामारी के दौरान मज़दूरों के साथ हुए बुरे सुलूक को लेकर मज़दूर वर्ग में खासी नाराज़गी है।
शायद यही वजह रही कि कोरोना के समय में भी दिल्ली के जंतर मंतर पर ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता, मज़दूर और नेता भारी संख्या में जुटे थे।
इसीलिए जब पहली बार मई में लॉकडाउन में ढील दी गई तो सबसे पहले ट्रेड यूनियनों ने 22 मई को देश व्यापी विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया था।
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