दैनिक जागरण ने कैसे स्पार्क मिंडा-इंटरार्क मज़दूरों पर पुलिसिया कार्रवाई की पटकथा लिखी?
तीन दिसम्बर को उत्तराखंड के किच्छा संस्करण में दैनिक जागरण ने छोटी सी ख़बर प्रकाशित की।
ख़बर का शीर्षक है, “उद्योगों को अस्थिर कर रहा लाल सलाम।” किच्छा के एसडीएम एनसी दुर्गापाल के हवाले से जागरण संवाददाता ने ये निष्कर्ष निकाला है।
इस ख़बर में अख़बार ने लिखा है, “उत्तराखंड में फैलते उद्योगों के जाल के बीच इस तरह का असंतोष, बसने से पहले ही उजड़ने की ओर धकेलने की दिशा में ले जाने का प्रयास योजनाबद्ध तरीके से किया जा रहा है।”
अख़बार यहीं नहीं रुकता है बल्कि रुद्रपुर सिडकुल और किच्छा में इंटरार्क कंपनी में जारी आंदोलनों में माओवादी हाथ होने की भी आशंका ज़ाहिर करता है।
निलंबन, वेतन कटौती, बोनस कटौती और आमरण अनशन
गौरतलब है कि पिछले तीन महीने से इन दो प्लांटों की यूनियनें वेतन समझौते को लेकर संघर्ष कर रही हैं।
इस दौरान कई मज़दूरों को निलंबित कर दिया गया। दबाव बनाने के लिए वेतन कटौती की जाने लगी। बोनस पर भी संकट आ गया।
इसलिए, आगे के संघर्ष में ये सारी मांगें जुड़ती चली गईं।
इन्होंने दशहरे के दो दिन बाद स्थानीय विधायक राजकुमार ठुकराल के निवास के घेराव की भी योजना बनाई थी।
स्थानीय अख़बारों का रुख तबतक मज़दूर आंदोलनों के प्रति थोड़ा ही सही सकारात्मक रहा। (ख़बरों की कतरने देख सकते हैं।)
लेकिन उनकी (खासकर दैनिक जागरण) भाषा तब बदल गई जब डेढ़ हफ्ते पहले दोनों प्लांटों के गेट पर ही मज़दूर अपने बीबी बच्चों के साथ अनशन पर बैठ गए।
एक हफ्ते पहले कुछ मज़दूरों ने आमरण अनशन भी शुरू कर दिया।
इंटरार्क और स्पार्क मिंडा के मज़दूर आंदोलनरत
यही नहीं पिछले 77 दिनों से रुद्रपुर, डिप्टी लेबर कमिश्नर के ऑफ़िस पर धरना दे रहे रुद्रपुर स्थित स्पार्क मिंडा कंपनी के 150 लड़के लड़कियों ने भी आमरण अनशन की घोषणा कर दी।
इस तरह रुद्रपुर में डीएलसी ऑफ़िस से लेकर इंटरार्क कंपनी के गेट तक मज़दूरों का मोर्चा खुल गया।
बीच में दशहरा, दीपावली और स्थानीय निकाय चुनावों की वजह से मज़दूरों का आंदोलन मंद पड़ा था।
नए सिरे और नए तेवर से शुरू हुआ स्पार्क मिंडा और इंटरार्क मज़दूरों के आंदोलन को इलाक़ाई स्तर पर अन्य ट्रेड यूनियनों का काफी समर्थन हासिल हुआ।
तीन दिसम्बर को हुए मज़दूर पंचायत में सिडकुल क्षेत्र की ट्रेड यूनियनों के नेता शामिल हुए। संयुक्त संघर्ष समिति ने भी अपना समर्थन ज़ाहिर किया।
आंदोलन के एक फैक्ट्री से आगे बढ़ने का डर पैदा हो गया
ये आंदोलन एक फैक्ट्री से उठकर इलाकाई स्तर पर व्यापक होने की ओर जा रहा था। ऐसे में स्थानीय प्रशासन के लिए चुनौती बड़ी होने वाली थी।
इसीलिए पुलिस प्रशासन ने एक साथ दोनों ही अनशनों को ख़त्म करने की योजना बनाई।
ये देखना दिलचस्प है कि जिस दिन इन दोनों अनशनों पर पुलिसिया कार्रवाई करनी थी, उसके पहले दैनिक जागरण में ‘माओवादी लिंक’ स्थापित करने के आशय वाली ख़बर प्रकाशित हुई।
अख़बार ने न केवल बिना किसी अधिकारी का हवाला दिए माओवादी लिंक की शंका ज़ाहिर की बल्कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की ‘निवेश बुलाने की अथक कोशिशों’ की भूरि भूरि प्रशंसा भी की।
रिपोर्ट की भाषा देखिए, “पिछले छह माह से उत्तराखंड में उद्योगों की फसल लहलहाने की दिशा में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पूरी ताकत झोंक दी। परिणाम में कई हज़ार करोड़ के निवेश के अनुबंध के रूप में सामने आया।”
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दैनिक जागरण की रिपोर्टिंग, त्रिवेंद्र की तारीफ़, माओवादी लिंक का हवाला
हालांकि ये मानने का कोई कारण नहीं दिखता कि रुद्रपुर से महज 100 किलोमीटर दूर स्थित रामनगर में डेल्टा ग्रुप के तीन प्लांट बंद होने की वजह से पिछले छह महीने में 4,500 मज़दूरों के सड़क पर आ जाने की ख़बर से दैनिक जागरण जैसा ‘नंबर एक!’ अख़बार अनभिज्ञ रहा हो।
जबकि पूंजीपति को फैक्ट्री बंद करने का राज्य की त्रिवेंद्र सरकार ने ही अनुमति दी थी।
संवाददाता ने आगे लिखा है, “उद्योगों की फसलें लहलहाने के लिए मुख्यमंत्री के प्रयास के समानांतर बसे हुए उद्योगों में अस्थिरता फैलाने के लिए लाल सलाम के प्रयास भी काम कर रहे हैं।”
माओवादी लिंक स्थापित करने के लिए आगे लिखा गया है, “हाल ही में किच्छा की एक सरिया फैक्ट्री में वर्षों से कार्य कर रहे माओवादी के पकड़े जाने के बाद गोपनीय एजेंडा भी सामने आया है।”
दैनिक जागरण यहीं नहीं रुकता, वो लिखता है, “उसके बाद भी लगातार पकड़े गए माओवादी की मानसिकता के न जाने और कितने लोग उद्योगों में फैले श्रमिक के अंदर असंतोष फैला उद्योगों को घुन की तरह खाने में जुए हुए हैं।”
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दैनिक जागरण ने लिखी पुलिसिया कार्रवाई की पटकथा
इस ख़बर के प्रकाशित होने के दूसरे दिन ही पुलिस ने एक साथ डीएलसी ऑफिस पर आमरण अनशन पर बैठे स्पार्क मिंडा के कर्मचारियों और इंटरार्क के गेट पर बैठे मज़दूरों को रात में जाकर धमकाया।
छह दिसम्बर को जब पूरा देश डॉ भीमराव अम्बेडकर की पुण्यतिथि मना रहा था, मुंह अंधेरे सुबह सात बजे रुद्रपुर और किच्छा की पुलिस, एसडीएम, एसपी समेत 200 पुलिस दल डीएलसी कार्यालय पहुंच गया।
अभी अनशनकारी तंबू के नीचे अपनी रज़ाईयों में दुबके ही थे कि उनकी रजाईयां छीन ली गईं, तंबू उखाड़ दिया गया।
सारा सामान एक गाड़ी में भर कर गांधी मैदान में ले जाकर फेंक दिया गया।
प्रत्यक्षदर्शी अनशनकारी अशोक कुमार ने वर्कर्स यूनिटी को बताया कि पुलिस ने महिला अनशनकारियों के साथ बदतमीज़ी की और तिरपाल को फाड़ दिया।
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विधायक को लाल झंडे से है परहेज
गौरतलब है कि स्पार्क मिंडा कर्मचारियों की अगुवाई भारतीय मज़दूर संघ कर रहा है जो उसी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) का अनुषांगिक संगठन है जिससे जुड़ी भारतीय जनता पार्टी की सरकार राज्य में है।
स्थानीय विधायक राजकुमार ठुकराल भी भाजपा से ही हैं। और दशहरे के बाद उन्होंने खुद आकर मज़दूरों की समस्याओं के समाधान का आश्वासन दिया था।
इंटरार्क मज़दूर यूनियन में वामपंथी मज़दूर संगठन सक्रिय हैं। इंटरार्क के एक मज़दूर ने वर्कर्स यूनिटी को बताया था कि ‘विधायक के पास जाने पर उन्होंने साफ़ साफ़ कहा था कि लाल झंडे वालों से बात नहीं करनी है।’
यानी स्थानीय राजनीतिज्ञ और प्रशासन ने पहले से ही एक माहौल बनाना शुरू कर दिया था।
आमरण अनशन वो ट्रिगर था, जिसपर दैनिक जागरण जैसे अख़बारों का सहारा लिया गया, मज़दूर आंदोलनों को गैरकानूनी घोषित करने के लिए।
हालांकि अख़बार ने ये बताने की जहमत नहीं उठाई कि अगर इन आंदोलनों में चरमपंथी वामपंथी हावी हैं तो मज़दूर आमरण अनशन जैसे गांधीवादी तरीक़े क्यों अख्तियार कर रहे हैं?
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दमन का नया तरीका, दमन से पहले ट्रेड यूनियन पर ‘माओवादी लिंक घोषित करो’
स्पार्क मिंडा के मज़दूर महात्मा गांधी की तस्वीर पर माल्यार्पण करने के साथ आमरण अनशन शुरू किया था।
शायद दैनिक जागरण के संपादक को इतना सोचने की फुर्सत नहीं रही होगी।
लेकिन इतना तो साफ है कि बीजेपी सरकारों में पिछले दो सालों में ट्रेड यूनियनों पर माओवादी लिंक का ठप्पा लगाकर उनके दमन को न्यायसंगत ठहराने की जो कोशिश जारी थी, ये उसी की अगली कड़ी है।
डीएलसी ऑफ़िस से खदेड़ दिए जाने के बाद स्पार्क मिंडा के कर्मचारी गांधी मैदान में टेंट लगाकर अनशन जारी रखे हुए हैं।
चार अनशनकारियों को पकड़ कर ले जाने के बाद, चार अन्य मज़दूर आमरण अनशन पर बैठ गए हैं।
यही हाल इंटरार्क का है। अनशनकारियों को पुलिस ने अस्पताल में भर्ती करा दिया है। फैक्ट्री गेट पर धरना जारी है और आमरण अनशन की जगह पर कुछ और मज़दूर आकर बैठ गए हैं।
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सरकारों ने मालिक मज़ूर के बीच मध्यस्थ की भूमिका त्याग दी है
कानून व्यवस्था के नाम पर पुलिस प्रशासन लगातार मज़दूरों पर दबाव बनाने में लगा हुआ है। कुछ दिन पहले 80 इंटरार्क मज़दूरों को हिरासत में लिया गया था।
इनमें पांच पर मुकदमा दर्ज किया गया। कई अन्य की शिनाख्त की जा रही है। आंदोलन तोड़ने के लिए चुन चुन कर गिरफ्तारियां करने की आशंका बनी हुई है।
मज़दूरों पर जो केस लगाए जा रहे हैं, उसमें फैक्ट्री मालिक की ओर से भी केस दर्ज किए जा रहे हैं।
श्रम और पूंजी के अंतरविरोध में राज्य अपनी मध्यस्थ की भूमिका त्याग कर, पूंजीपतियों के पक्ष में खुल कर सामने आ गया है।
स्पार्क मिंडा के साथ एक वार्ता में खुद डिप्टी लेबर कमिश्नर ये कहते हुए दिखाई दे रहे हैं कि उनका काम सिर्फ संराधन का है यानी जो मामले उनके समझ आएंगे उन्हें वो केवल उच्च अधिकारी के पास भेजने का आधिकार रखते हैं।
जबकि मज़दूरों का साफ साफ आरोप है कि डीएलसी का रवैया मज़दूरों के प्रति पक्षपात भरा रहा है और वो मालिक के पक्ष में खड़े होकर तर्क करते हैं।
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