6 साल से जेल में बंद मारुति के मज़दूरों को हाईकोर्ट से भी नहीं मिली जमानत, कोर्ट ने याचिका खारिज की
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे मारुति मजदूरों की जमानत याचिका को शुक्रवार को खारिज कर दिया है।
गौरतलब है कि आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे 13 मारुति मज़दूरों में से 3 मजदूर साथियों सुरेश ढुल, संदीप ढिल्लो व धनराज भम्भी की जमानत के लिए चंडीगढ़ हाई कोर्ट में याचिका लगाई गई थी।
इसकी सुनवाई आज कोर्ट नंबर 9 में जज एबी चौधरी की अदालत में थी।
मजदूरों की ओर से सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका जॉन ने पैरवी की।
लेकिन कोर्ट ने किसी भी दलील को सुनने से इनकार कर दिया।
साढ़े छह साल से जेल में बंद हैं मज़दूर
उल्लेखनीय है कि 18 जुलाई 2012 को मारुति सुजुकी के मानेसर प्लांट में हुई घटना के बाद 150 मजदूर लंबे समय तक जेल में बंद रहे।
इस घटना में एक मैनेजर की मृत्यु हो गई थी।
पांच साल बाद 18 मार्च 2017 को सेशन कोर्ट गुड़गांव ने 117 मजदूरों को बाइज्जत बरी कर दिया।
लेकिन कोर्ट ने 31 लोगों को दोषी करार दिया था, जिनमें से 13 मजदूरों को उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी।
मारुति की प्रोविजनल कमेटी ने कहा है कि ‘साढ़े 6 साल बीत जाने के बावजूद कोर्ट आज भी इन बेगुनाह मारुति मजदूरों को जमानत तक देने को तैयार नहीं हो रहा है। इससे एक बार फिर साबित हुआ कि न्यायपालिका किसके पक्ष में खड़ी है!’
‘घोटालेबाज़ पूंजीपति खुले घूम रहे हैं, मज़दूर जेल में सड़ रहे हैं’
मज़दूर प्रतिनिधियों ने आरोप लगाया कि ‘एक तरफ जहां तमाम घोटालेबाज और अपराधी शान से घूम रहे हैं, बैंक का करोड़ों रुपए लेकर चंपत हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर बेगुनाह मजदूरों को जमानत तक नहीं मिल रही है।’
उन्होंने असंतोष ज़ाहिर करते हुए कहा, “यही है पूंजीवाद का न्याय। जहां पर फैक्ट्रियों में मजदूरों की मौत के बाद भी प्रबंधकों पर कोई कार्रवाई नहीं होती है, वहीं दूसरी ओर निरपराध मजदूरों के साथ अन्याय का यह उदाहरण सामने है।”
यह सोचने का विषय है कि जब कोर्ट यह कह रहा हो कि मारुति मजदूरों को जमानत मिलने से निवेश प्रभावित होगा तो फिर इस व्यवस्था में मज़दूरों को न्याय की उम्मीद भी बेमानी है।
(चंडीगढ़ से मारुति के बरखस्त वर्करों और प्रोविजनल कमेटी के सदस्य खुशी राम के द्वारा भेजे गए बयान पर आधारित)
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