श्रम क़ानूनों को ख़त्म करने पर आईएलओ ने जताई नाराजगी तो मोदी सरकार ने दी सफ़ाई

श्रम क़ानूनों को ख़त्म करने पर आईएलओ ने जताई नाराजगी तो मोदी सरकार ने दी सफ़ाई

कई राज्यों ने श्रम कानून में मज़दूरों को घुटनों पर ला देने वाले बदलाव किए हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने इसे लेकर गहरी चिंता ज़ाहिर की है।

आईएलओ ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह किया है कि भारत अपनी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं का ख्याल रखे और राज्यों को इसके बारे में याद दिलाए और हस्तक्षेप करे।

भारत ने आईएलओ संधि 144 पर हस्ताक्षर किया था और वो श्रम क़ानूनों को लागू करने के लिए बाध्य है।

इस संधि के तहत मज़दूरों से जुड़े विवादों को निपटाने के लिए सरकार कंपनी मालिकों और मज़दूरों के बीच त्रिपक्षीय वार्ता में सहयोग करेगी।

आईएलओ ने 10 भारतीय केंद्रीय ट्रेड यूनियनों की ओर से श्रम कानूनों के बदले जाने के विरोध में लिखे गए पत्र का संज्ञान लेकर मोदी सरकार पर अंगुली उठाई है।

पत्र में लिखा गया है कि उत्तरप्रदेश, गुजरात, मध्यप्रदेश जैसे राज्य ट्रेड यूनियन एक्ट 1926 और औद्योगिक विवाद अधिनियम को लागू करने की बजाय रद्द कर रहे हैं।

ये क़ानून मज़दूरों को अपने हक़ हासिल करने के लिए बनाए गए थे।

हालांकि आईएलओ की ओर से आए बयान के बाद श्रम कानून मंत्री संतोष गंगवार ने कहा कि श्रम क़ानून खत्म करने का कोई सवाल ही नहीं उठता है।

उन्होंने साफ़ किया कि भारत ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन’ संधि 144 का एक हस्ताक्षरकर्ता है और वो ऐसा कुछ भी नहीं करेगा जो आईएलओ को शिकायत का मौका दे।

गंगवार ने कहा कि श्रम कानूनों में बदलावों को वापस ले लिया गया है। इस बीच 12 घंटे काम के आदेश को उत्तरप्रदेश और राजस्थान की सरकारों ने वापस ले लिया है।

स्वास्थ्य सेवाओं पर ध्यान देने की बजाए कोरोना संकट की आड़ में श्रम कानूनों को खत्म किया जाना अनैतिकता है।

मूलभूत अधिकार संविधान में दर्ज है और इन्हें एक झटके में ख़त्म नहीं किया जा सकता।

मध्यप्रदेश जैसै कुछ राज्य श्रम कानूनों को खत्म करेके चीन को अलविदा कह चुकी विदेशी कंपनीयों को भारत में निवेश करने के लिए आकर्षित कर रहे हैं।

लेकिन संविधान द्वारा दिए गए यूनियन बनाने के अधिकार और औद्योगिक विवादों के निपटारे के लिए बनाए गए क़ानूनों को ख़त्म नहीं किया जा सकता।

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Workers Unity Team