जेएनएस मानेसर में मज़दूरों ने काम बंद कर किया प्रदर्शन, सैलरी और ओटी को लेकर विवाद
लॉकडाउन के बहाने मज़दूरी की लूट पर आखिर मज़दूरों का गुस्सा फूटना शुरू हो गया है। मानेसर में पिछले एक हफ़्ते कई कंपनियों में मज़दूरों ने वेतन को लेकर कंपनी का ही घेराव कर दिया।
ताज़ा मामला आईएमटी मानेसर में स्थिति जेएनएस इंस्ट्रुमेंट लिमिटेड का है, जहां शुक्रवार को सैकड़ों की संख्या में मज़दूरों ने काम पर जाने से इनकार करते हुए गेट के सामने ही विरोध प्रदर्शन किया।
मज़दूरों ने दावा किया कि अधिकांश मज़दूरों को कंपनी ने पिछले 3 महीने से वेतन नहीं दिया है।
कंपनी में बड़ी संख्या में महिला मज़दूर भी काम करती हैं और शुक्रवार की सुबह जब सारे मज़दूरों ने इकट्ठा होकर वेतन के बारे में पूछने लगे तो कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। मज़दूरों ने कंपनी के अंदर जाने से मना कर दिया।
सोशल मीडिया पर जो वीडियो वायरल हो रहा है उसमें साफ़ दिखाई दे रहा है कि कंपनी मैनेजमेंट और सुरक्षा गार्ड मज़दूरों से काम के लिए कंपनी के अंदर जाने की अपील कर रहे हैं।
एक वीडियो में कंपनी के प्रतिनिधि हाथ जोड़कर महिलाओं से काम करने की सिफ़ारिश करता नज़र आ रहा है जबकि महिलाएं पूछ रही हैं कि उन्हें 8 मार्च और रविवार की मज़दूरी अभी तक क्यों नहीं दी गई।
मज़दूरों का कहना है कि उन्हें लॉकडाउन से वेतन नहीं दिया गया है और जब कंपनी खुल गई है, मैनेजमेंट काम कराए जा रहा है लेकिन वेतन का नाम नहीं ले रहा है।
प्रदर्शन में भारी संख्या में महिलाओं भी थीं, जिनका कहना है कि कंपनी के स्टाफ को समय पर वेतन मिल रहा है, लेकिन मज़दूरों को वेतन नहीं दिया जा रहा।
महिला श्रमिक वेतन के लिए जिद्द पर अड़ी हुई हैं। साथ ही वेतन बढ़ाने की मांग भी कर रही हैं।
मज़दूरों को मनाने के लिए मैनेजमेंट ने वेतन देने के संबंध में गेट पर नोटिस लगाने की बात भी कही और लिखित रूप से मज़दूरों को आश्वासन दिया।
जेएनएस के कार्मिक विभाग की ओर जारी लिखित आश्वासन में कहा गया है कि सभी कर्मचारियों को काम ओवरटाइम और शिफ़्ट अलाउंस भी दिया जाएगा।
दो तीन दिन पहले गुड़गांव में ईएसआई हॉस्पीटल के पास विनय ऑटो में भी मज़दूरों ने कंपनी गेट पर प्रदर्शन किया था।
इससे पहले मानेसर की ही एक कंपनी के मज़दूरों ने वेतन न दिए जाने पर ठेकेदार को बुरी तरह पीट दिया था।
मज़दूरों के शोषण के लिए मालिक वर्ग को खुली छूट दिए जाने के बाद वेतन न देने, वेतन कटौती, भत्ते में कटौती, सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण, बैंकों को निजी कंपनियों के हाथों में दिए जाने की घटना ने मज़दूर वर्ग को हताशा में डाल दिया है।
मोदी सरकार की ओर से कथित रूप से घोषित किए गए 20 लाख करोड़ का पैकेज मज़दूरों के लिए बस ख़बर बन कर रह गया है। पैदल चलकर गांव जा चुके मज़दूर अब शहरों की ओर फिर से लौटने लगे हैं और यहां कंपनियों की मनमानी से उनका साबका पड़ रहा है।
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