निजीकरण को और कितना तेज़ करवाना चाहते हैं चिदम्बरम जी!
पूर्व गृह मंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदम्बरम के विनिवेश में तेज़ी लाने के सुझाव पर कांग्रेस से जुड़ी ट्रेड यूनियन इंटक ने ही सवाल खड़ा कर दिए हैं और इसकी शिकायत राहुल गांधी से की है।
इंटक से संबद्ध जीवन बीमा निगम (एलआईसी) के नेताओं ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को चिट्ठी लिखकर पी चिदंबरम के ट्वीट पर शिकायत दर्ज कराई है।
उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार एलआईसी में आईपीओ लाने की घोषणा की है और कर्मचारियों को पूरा अंदेशा है कि देश में सार्वजनिक क्षेत्र की सबसे बड़ी बीमा कंपनी का निजीकरण करने की ये चोर दरवाज़े से कोशिश है।
एलआईसी कर्मचारी यूनियन ने तय किया है कि 14 सितम्बर से जब संसद का मासून सत्र शुरू होगा, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को बेचने के विरोध में कांग्रेस के सभी सांसदों को चिट्ठी भेजी जाएगी।
एलआईसी एम्प्लाईज़ यूनियन और इंटक के राष्ट्रीय सचिव दीपक शर्मा ने कहा कि इस चिट्ठी में चिदम्बरम के बयान का विरोध किया जाएगा, जोकि कांग्रेस के पक्ष के ख़िलाफ़।
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राहुल गांधी की सफ़ाई
चिदंबरम ने छह सितम्बर को ट्वीट कर मोदी सरकार को वर्तमान महामंदी से बचने के छह सुझाव दिए थे जिनमें विनिवेश को तेज़ करने का भी सुझाव शामिल था।
इसके एक दिन बाद ही राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा था कि ‘प्रधानमंत्री अपने द्वारा ही खड़ी की गई समस्याओं से निबटने के लिए देश की दौलत को बेच रहे हैं।’
राहुल गांधी ने एलआईसी को बेचने की शुरूआत करने को ‘बेशर्मी’ कहा था।
यूनियन लीडर दीपक शर्मा ने कर्मचारियों को समर्थन देने वाले ट्वीट पर राहुल गांधी को ख़त लिख कर धन्यवाद बोला और कहा कि ‘ताज़ा बयान पी चिदम्बरम के बयान से उपजे धुंधलके को साफ़ करेगा।’
शर्मा ने ट्वीट कर कहा कि “मीडिया में आई ख़बरों के अनुसार, सरकार एलआईसी के 25 प्रतिशत शेयर बेच सकती है। हम लोग सरकार के मैराथन निजीकरण की रफ़्तार को लेकर काफ़ी चिंतित हैं। निजीकरण में और कितनी तेज़ी चाहते हैं चिदंबरम जी?”
कांग्रेस के अंदर मोदी सरकार की नीतियों को लेकर भारी असमंजस की स्थिति है।
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कांग्रेस में असमंजस
ऐसा प्रतीत होता है कि यही वजह है कि कांग्रेस मोदी सरकार की नीतियों का कोई ठोस प्रतिरोध नहीं खड़ा कर रही है।
सत्ताधारी पार्टियों से संबद्ध ट्रेड यूनियनें भी भारी जन दबाव और विरोधी पार्टी की सत्ता पर निशाना लगाने के लिए सक्रिय होती रही हैं।
उसी तरह जैसे यूपीए के समय में आरएसएस से जुड़ी भारतीय मज़दूर संघ बहुत मुखर थी और पिछले छह सालों में सरकार के हर फैसले पर चुप्पी लगा गई या ज़बानी विरोध जता कर सरकार की प्रशंसा में जुट गई।
तथ्य ये भी है कि एनडीए की सरकार में बुलाई गई राष्ट्रीय और आम हड़तालों में आखिरी समय में बीएमएस ने अपने हाथ खींच लिए बल्कि उसे विफल करने में जोड़ तोड़ भी की।
इसलिए इंटक या बीएमएस से जुड़ी ट्रेड यूनियनें मज़दूर वर्ग पर जारी मौजूदा हमलों को कितना रोक पाएंगी, ये कहना उतना भी मुश्किल नहीं है।
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