कर्नाटक में 3 हफ़्ते से 1300 गार्मेंट वर्करों का धरना, अमेरिका यूरोप के नामी ब्रांडों के लिए बनते हैं कपड़े
कर्नाटक में बेंगलुरू के पास श्रीरंगापाटन में स्थित गोल्कादास एक्सपोर्ट कंपनी की ईसीसी-2 यूनिट में लेऑफ़ के ख़िलाफ़ 1300 वर्कर तीन हफ़्ते से धरना प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई हल नहीं निकला है।
छह जून को जब तालाबंदी की नोटिस चस्पा हुई तभी से फ़ैक्ट्री के बाहर रोज़ ये वर्कर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं।
गोल्कादास एक्सपोर्ट कंपनी नामी गिरामी देशी और विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए कपड़ा बनाती है। ये यूरोप और अमेरिका के बड़े ब्रांडों को भी सप्लाई करती है।
द न्यूज़ मिनट के अनुसार, पिछले साल इसने नामी ब्रांड एचएंडएम के लिए अपने कुल प्रोडक्शन का 70-80% निर्यात किया था।
ले ऑफ़ के अनुसार, वर्करों से कहा गया कि अब उन्हें बेसिक सैलरी की आधी दी जाएगी।
इस यूनिट बंद हुए तीन हफ़्ते हो गए हैं और वर्कर, जिनमें अधिकांश महिलाएं हैं, सड़क पर आ गई हैं। अप्रैल में वर्करों को आधी सैलरी दी गई और चार मई को ये काम पर लौटे।
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वर्करों का कहना है कि उन्हें बिना पूर्व सूचना के ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से छह जून को घर बिठा दिया गया। जबकि ले ऑफ़ का फ़ैसला त्रिपक्षीय होता है जिसमें गार्मेंट एंड टेक्स्टाइल वर्कर्स यूनियन, कंपनी और लेबर डिपार्टमेंट के लोग शामिल होते हैं।
न्यूज़ मिनट के अनुसार, कंपनी के डिप्टी जनरल मैनेजर सिरीश कुमार का कहना है कि कंपनी ने अभी कोई फैसला नहीं लिया है और बातचीत अभी चल रही है, जिसके बारे में अभी नहीं बताया जा सकता।
हालांकि वर्करों और लेबर डिपार्टमेंट दोनों का कहना है कि बिना पूर्व सूचना के ही कंपनी ने ले ऑफ़ का फ़ैसला ले लिया।
ट्रेड यूनियन का कहना है कि कंपनी ने औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 25एम का उल्लंघन किया है।
लेकिन कंपनी से मशीनों के बाहर ले जाने की शुरुआत पहले ही हो गई थी और इसकी भनक लगते ही ट्रेड यूनियनों ने एक जून को ही राज्य के लेबर डिपार्टमेंट को चिट्ठी लिख कर इसकी सूचना दी थी।
लेबर डिपार्टमेंट का कहना है कि कंपनी ने कोरोना के चलते ऑर्डर कम होने का हवाला दिया था।
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द न्यूज़ मिनट वेबसाइट के अनुसार, श्रीरंगापाटन के इलाक़े में 20 फ़ैक्ट्रियां हैं लेकिन सिर्फ इसी अकेली फ़ैक्ट्री ने ले ऑफ़ दिया है।
एचएंडएम ने कहा है कि ये आपसी विवाद है और क़ानून की व्याख्या को लेकर गतिरोध बना हुआ है।
लेकिन एचएंडएम ने इस पर कोई स्टैंड लेने से मना कर दिया है। उल्लेखनीय है कि विदेशी ब्रांड कर्मचारियों के काम के हालात की भी जांच करती हैं और तभी ऑर्डर देती हैं।
लेकिन इस मामले में ऐसा लगता है कि बड़े ब्रांड भी गार्मेंट वर्करों के शोषण को लेकर आंखें मूंदे हुए हैं।
वेबसाइट के अनुसार, एनटीयूआई के महासचिव गौतम मोदी ने एचएंडएम को भी कटघरे में खड़ा किया है और कहा कि क्या एचएंडएम की उन वर्करों के प्रति कोई ज़िम्मेदारी नहीं बनती जो उनके लिए कपड़े बनाते हैं?
उन्होंने कहा कि एचएंडएम केवल क़ानून की व्याख्या में असली मुद्दा भटका कर अपने सप्लायर की ढाल नहीं ले सकता। उसे अपने सप्लाई चेन में काम करने वाले वर्करों के अधिकारों और उनके शोषण की भी ज़िम्मेदारी लेनी पड़ेगी।
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गौतम मोदी ने कंपनी खोलने और मज़दूरों को उनकी तनख्वाह देने की मांग की।
ऐसी भी ख़बर है कि गोल्कादास एक्सपोर्ट वर्करों को अपना हिसाब लेने के लिए या ट्रांसफ़र लेने के लिए दबाव बना रहा है।
असल में पड़ोसी ज़िले मैसूर में भी इस कंपनी की एक यूनिट है लेकिन अधिकांश वर्कर सपरिवार यहीं रहते हैं इसलिए उनका मैसूर जाना संभव नहीं है।
2018 में कर्नाटक सरकार ने एक नोटिफ़िकेशन जारी कर गार्मेंट वर्करों की सैलरी में 30-40% की बढ़ोत्तरी की थी लेकिन कंपनियों के दबाव में इसे वापस ले लिया गया।
वेबसाइट के अनुसार, एक आरटीआई के मार्फ़त पता चला कि बढ़ोत्तरी वापसी के लिए गार्मेंट कंपनियों, शाही एक्सपोर्ट, गोल्कादास एक्सपोर्ट और हिम्मत सिंघका सीड लि के मालिक सरकार से मिले थे।
यहां तक कि इन मालिकों ने लेबर डिपार्टमेंट को एक चिट्ठी लिखकर ये भी धमकी दी थी कि अगर सरकार ने सैलरी बढ़ाई तो वो अपनी यूनिटों को पड़ोसी राज्यों में लेकर चले जाएंगे।
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जबकि न्यूनतम वेतन अधिनियम 1948के अनुसार, राज्य सरकारों को हर तीन से पांच साल में वेतन बढ़ोत्तरी का निर्णय लेना होता है। जबकि कर्नाटक के वर्करों का कहना है कि पिछले 40 सालों में उनकी सैलरी केवल पांच बार ही बढ़ी है।
हाल ही में कर्नाटक की बीजेपी सरकार ने काम के घंटे आठ से 10 करने का अपना निर्णय वापस ले लिया था।
इससे पहले लॉकडाउ के दौरान वर्करों को घर भेजने के लिए ट्रेन चलवाने की मंज़ूरी भी अंतिम समय में वापस ले ली गई थी। बाद में काफ़ी आलोचना के बाद येद्दयुरप्पा सरकार ने ट्रेनें चलाईं।
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