जेएनएस में 30 घंटों से भूखे वर्करों को काम पर लगाया, महिला मज़दूर बेहोश, अस्पताल ले जाने में अनाकानी से आक्रोश
हरियाणा के मानेसर में स्थित जेएनएस कंपनी में मंगलवार को समझौता होने के बाद भूखे प्यासे वर्कर जब काम पर लौटे तो एक महिला मज़दूर कंपनी में ही बेहोश होकर गिर पड़ी, मज़दूरों ने आरोप लगाया कि इस महिला को अस्पताल में भर्ती कराने को भी मैनेजेंट राज़ी नहीं था।
एक महिला मज़दूर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि मैनेजमेंट को इतनी भी सलाहियत नहीं है कि जो मज़दूर बीते 30 घंटे से हड़ताल पर भूखे प्यासे बैठे थे, उनसे तुरंत मशीन पर काम करने की मांग करने लगा, जिसकी वजह से कई वर्करों की हालत खराब हो गई और एक महिला वर्कर बेहोश हो गई।
अंतरिम समझौते के तहत डिप्टी लेबर कमिश्नर की मध्यस्थता में मैनेजमेंट ने लिखित रूप से कहा है कि डिमांड नोटिस पर 30 अप्रैल तक समाधान निकाल लिया जाएगा और डेढ़ दिनी हड़ताल के लिए वेतन कटौती नहीं की जाएगी। इस संबंध में मैनेजमेंट ने एक हफ़्ते का समय मांगा जिसके बाद वार्ता शुरू कर दी जाएगी।
साथ ही इस दौरान किसी भी वर्कर, चाहे वो ठेका मज़दूर ही क्यों न हो, उसे निकाला नहीं जाएगा या बदले की भावना से कार्यवाही नहीं की जाएगी। ये बात मज़दूरों की अगुवा रिंकी कुमारी ने वर्कर्स यूनिटी को फ़ोन पर बताया।
रिंकी ने कहा कि मंगवाल को 12 बजे लेबर कमिश्नर के कार्यालय में समझौता हो गया और दोपहर दो बजे सभी वर्कर काम पर लौट गए, जहां उनसे शाम तक काम कराया गया।
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बेहोश मज़दूर को अस्पताल ले जाने में अनाकानी
उन्होंने कहा कि जैसे ही हड़ताल हुई, जेएनएस प्रबंधन होंडा, हीरो जैसी कंपनियों से निकाले गए वर्करों की भर्ती करने लगा और उसकी रणनीति ये थी कि यहां ठेका मज़दूरों को निकाल कर नए मज़दूर भर्ती कर लिए जाएं।
वो कहती हैं, “जब मैनेजमेंट ने 30 अप्रैल तक मामले के समाधान की बात स्वीकार की तो हम लोगों ने सबसे पहले यही शर्त रखी की किसी भी ठेका मज़दूर को न निकाला जाए और ये बात लिखित रूप से डीएलसी के सामने ली गई।”
महिला मज़दूरों ने बताया कि काम पर लौटने के बाद कंपनी ने कैंटीन में लंच का बंदोबस्त किया, हालांकि क़रीब आधे लोगों को खाना नहीं मिल सका और वो भूखे पेट शाम तक काम करते रहे।
रिंकी कुमारी ने कहा कि मंगलवार को प्रीति नाम की एक महिला बेहोश हो गई जिसके इलाज के लिए भी एचआर डिपार्टमेंट हीलाहवाली करता रहा।
वो कहती हैं, “महिला मज़दूरों को परेशान करने के लिए मैनेजमेंट तरह तरह के हथकंडे अपना रहा है। जब प्रीति बेहोश हुई और महिलाओं ने कहा कि उसे अस्पताल पहुंचाया जाए तो गार्डों ने कहा कि इसे प्रीती लेकर जाएं, हम लोग नहीं लेकर जाएंगे।”
मज़दूरों को कैंटीन के खाने को लेकर भी शिकायत है। रिंकी कुमार बताती हैं कि सुबह कैंटीन से समोसा चाय हम लोग खरीद कर खाते हैं वो भी कई कई बात जला हुआ मिलता है।
यहां मज़दूर 15-15 सालों से काम कर रही हैं और मैनेजमेंट उनके साथ आज तक मुरव्वत से पेश नहीं आया।
सोमवार को जब वर्कर हड़ताल पर बैठे तो मैनेजमेंट ने पीछे के गेट से नई भर्तियां शुरू कर दीं, जिसका महिला मज़दूरों ने विरोध किया और गेट को बंद कराया।
एक वीडियो सामने आया है जिसमें कंपनी के अधिकारी पीछे के गेट पर मज़दूरों को अंदर करने की कोशिश करते दिखे।
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बढ़ता श्रमिक असंतोष
मंगलवार को भी सुबह नए वर्करों की भर्तियां की जा रही थीं, जिसका विरोध करने पर कुछ लोग महिला वर्करों का वीडियो बनाने लगे।
रिंकी कुमारी कहती हैं कि ‘हड़ताली महिला मज़दूरों का बात बात पर वीडियो बनाना उनकी निजता को भंग करना है। हम अपनी वाजिब मांग को लेकर हड़ताल पर गए हैं।’
वो निराशा जताते हुए कहती हैं कि जब एक कंपनी में हड़ताल होती है तो बाकी मज़दूरों को वहां भर्ती होने का मौका तलाशने की बजाए हड़तालियों का साथ देना चाहिए। क्योंकि जो कंपनी 15-20 साल से काम करने वाले वर्करों की सैलरी अब तक नहीं बढ़ा पाई तो नए वर्करों के साथ क्या करेगा, ये समझना होगा।
रिंकी कुमारी के अनुसार, जबतक पूरा मज़दूर उठकर अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठाएगा और एक दूसरे का साथ नहीं देगा, तबतक कंपनियों का मनमानापन ऐसे ही चलता रहेगा।
बीते कुछ महीनों से गुड़गांव-बावल औद्योगिक इलाके में मज़दूर असंतोष बढ़ा है। बीते एक महीने में ही तीन कंपनियों में हड़ताल हुई है।
बेलसोनिका यूनियन के वाइस प्रेसिडेंट अजीत सैनी कहते हैं कि लॉकडाउन की आड़ में कई कंपनियों में वेतन समझौता लंबित है और मैनेजेंट छंटनी, वेतन कटौती और वेतन समझौते को क़ानूनी पचड़ों में फंसा कर डिले करने जैसे हथकंडे अपना रहे हैं। लेकिन मज़दूरों का असंतोष इससे रुकने वाला नहीं है।
उल्लेखनी है कि जबसे 44 श्रम क़ानूनों को ख़त्म कर चार लेबर कोड बनाए गए हैं और उन्हें संसद में पास कराया गया है, कंपनियों में छंटनी, वेतन कटौती, काम के बदतर हालात, मैनेजमेंट का दबाव और बढ़ गया है। मानेसर के ही सत्यम ऑटो में एक मार्च को ही मज़दूर हड़ताल पर चले गए थे। उससे पहले 15 फरवरी को बावल की कीहिन फ़ी कंपनी में महिलाएं आंदोलनरत हैं।
हर जगह मज़दूरों की एक ही शिकायत है कि मैनेजमेंट ने टार्गेट बढ़ा दिया है, वेतन और सुविधाओं में कटौती की जा रही है लेकि वेतन को लेकर कोई बात करने पर राज़ी नहीं है।
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