जंगल में झुग्गी बना कर रह रहे थे, इस महामारी के समय वहां से भी उजाड़ दिया खट्टर सरकार ने
By खुशबू सिंह
गुड़गांव नगर निगम कार्यालय के बाहर बच्चों को गोद में लिए महिलाएं, बूढ़े, बच्चे और नौजवान धूप बारिश में भी धरने पर बैठे हुए हैं।
गुड़गांव में दशकों पुरानी श्याम झा कॉलोनी झुग्गी को निगम ने बिना किसी नोटिस के नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश पर 20 जुलाई को तोड़ डाला।
झुग्गी तोड़ने की प्रक्रिया कई दिनों तक चली और इसे लेकर पुलिस प्रशासन के साथ झुग्गीवासी भिड़े भी, लेकिन भारी पुलिस फ़ोर्स लगाकर नगर निगम ने आखिर वहां सारे घरों को ज़मीदोज़ करवा दिया।
यही नहीं इनके सामान को ट्रैक्टर ट्राली में भर कर सड़क पर फिंकवा दिया और लोगों का दावा है कि क़ीमती सामान वे अपने साथ लेते गए।
बेघर मज़दूर वर्ग अपने हक के लिए 20 अगस्त से धरने पर बैठे हैं। इन लोगों ने कई अधिकारियों को इस बाबत पत्र भी लिखे लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
धरने की अगुवाई कर रहीं सोनल बताती हैं, “बिना किसी नोटिस के हमारी झोपड़ियों को तोड़ दिया गया। प्रतिरोध करने पर पुलिस की लाठियों का सामना करना पड़ता है।”
वो कहती हैं, “एक महिला झुग्गी तोड़ने का विरोध कर रही थी, तो नगर निगम वालों ने उस पर ट्रैक्टर ही चढ़ा दिया जिससे उनके कमर का मांस फट गया। इस पर हमने एफआईआर की पर हमारी कोई सुनवाई नहीं हुई। महिला अपने पैसे से दवा करा रही है।”
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किताबें गल गईं
एक पीड़ित महिला ने बताया कि ‘उनके घर में तीन सदस्य हैं। पति दिहाड़ी करता है और बेटा 10वीं कक्षा में पढ़ रहा है। पर घर न होने के नाते उसकी किताबे बरसात में गल गईं। किताबों के लिए अब भीख मांगना पड़ेगा, पर हम अपने बच्चे को किसी तरह पढ़ाएंगे।’
बताया जाता है कि ये झुग्गी तबसे है जब यहां पत्थर की कटाई के लिए स्टोन क्रशर हुआ करते थे और देश के कोने कोने से लोग रोज़गार की तलाश में इधर आकर रहने लगे।
जब स्टोन क्रशर का काम बंद हुआ तो लोगों के सामने रोज़गार का संकट पैदा हो गया और कोई समुचित रोज़गार न मिलने के कारण वे यहीं झुग्गी में रहकर दिहाड़ी, बेलदारी और लोगों के घरों में काम कर किसी तरह आजीविका चलाने लगे।
लेकिन इस कोरोना काल में जब खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दर्जनों बार दर्जनों तरीक़ों से लोगों को घरों में रहने की नसीहत दे रहे थे, हरियाणा में उन्हीं की सरकार ने इन झुग्गियों पर बुलडोज़र चलवा दिया।
नगर निगम ने 20 जुलाई से झुग्गियों को तोड़ने का काम शुरू किया और 29 जुलाई तक सभी झोपड़ियों को साफ़ कर दिया।
झुग्गीवासियों का कहना है कि इस दौरान यदि कोई प्रतिरोध करता तो उनके साथ नगर निगम के कर्मचारी मार-पीट भी करते थे। एक दिन नगर निगम के ड्राईवर ने एक महिला के ऊपर ट्रैक्टर चढ़ा दिया। हालांकि प्रशासन इसे दुर्घटना बताता है।
इसी दिन झुग्गीवासियों और पुलिस और नगर निगम कर्मचारियों के बीच पत्थरबाजी हुई जिसमें कई लोगों को चोेटें आईं।
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‘उजाड़ने आए थे, लूट कर ले गए’
महिला ने आरोप लगाया कि ‘नगर निगम वालों ने घर तो तोड़ा ही साथ में सामान भी उठा ले गए। आठ हज़ार रुपए पेटी में रखा था, पेटी को भी उठा ले गए। राशन को ज़मीन पर पलट दिया।’
सोनल कहती हैं, “झोपड़ी तोड़े जाने के ख़िलाफ़ हमने हरियाणा सरकार, गुड़गांव कमिश्नर और आवास मंत्री हरदीप सिहं पुरी को पत्र लिखा था। लेकिन कोई सुनवाई नहीं है।”
प्रदर्शन कगने वालों ने आरोप लगाया है कि, “इस बारे में इन्होंने कोर्ट में याचिका भी दायर की है पर तारीख़ नहीं मिलती है।
पीड़ितों का कहना है कि लॉकडाउन के समय नगर निगम की तरफ सो कोई मदद नहीं मिली पर, घर तोड़ने का काम करने में इन्होंने ज़रा भी मुरौव्वत नहीं बरती।
पिछले 30 सालों से श्याम कॉलोनी में रही एक अन्य महिला कहती हैं, “औरतें जब झोपड़ियों को तोड़ने से रोकती हैं तो नगर निगम वाले उन्हें उठा ले जाने की धमकियां देते हैं। साथ ही गालियां और अपशब्द कहते हैं।”
इन्हीं में से एक अन्य प्रदर्शनकारी मंजू का कहना है कि “झोपड़ी तोड़े जाने के बाद वे लोग पन्नी घेर कर रह रहे हैं, नगर निगम वाले उनकी पन्नी भी उजाड़ दे रहे हैं।”
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क्या बीजेपी ग़रीब विरोधी है?
उदारवादी नीतियां लागू होने के बाद देश में अमीरी ग़रीबी की खाई बढ़ी है। लाखों की तादात में लोग सड़कों पर रहने को मज़बूर हैं। लेकिन कोरोना महामारी के समय इनके पास अब नौकरी भी नहीं है। ऊपर से इन्हें उस जगह से भी खदेड़ा जा रहा है जहां वो मज़बूरी में ही रह रहे हैं।
इंसाफ की उम्मीद में लोग बरसात,धूप और इस कोरोना काल में भी धरना दे रहे हैं। सोनल कहती हैं, “न तो लोकल विधायक और ना ही कमिश्नर सुनने को राज़ी हैं। उनका कहना है कि ये ऊपर का आदेश है।”
लेकिन श्याम झा कॉलोनी अकेला मामला नहीं है। इसी कोरोना महामारी के समय में दिल्ली में आधा दर्जन झुग्गियों को तोड़ डाला गया। हरियाणा के फरीदाबाद में भी झुग्गियों को तोड़ना जारी है। उत्तराखंड में जंगल में रह रहे वन गुज्जरों के पीछे बीजेपी सरकार बहुत पहले से पड़ी हुई है।
कुछ महीने पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने जंगलों से आदिवासियों को निकालने का फरमान जारी कर दिया था क्योंकि कोर्ट में केंद्र सरकार ने कोई हलफ़नामा तक नहीं लगाया था।
ऐसा प्रतीत होता है कि बीजेपी की केंद्र सरकार और बीजेपी की राज्य सरकारें झुग्गियों में रहने वाले लोगों को खाली कराने का अपना पुराना एजेंडा इसी लॉकडाउऩ में ही पूरा कर लेना चाहती है। और मोदी के आपदा को अवसर बनाने की मार असल में ग़रीबों को सहनी पड़ रही है।
भारत की आबादी 135.26 करोड़ है इसमें से 17.7 लाख से अधिक लोग सड़कों पर रहते हैं। बावज़ूद इसके सरकार मंदिरों को बनाने के लिए करोड़ों रुपए तो खर्च कर रही है, लेकिन ग़रीबों के आवास के इंतज़ाम पर कोरी बातें ही की जाती हैं, वो भी चुनावी समय में।
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