ऐतिहासिक सफलताः कोलकाता में बनी घरेलू कामगारों की यूनियन
पश्चिम बंगाल के घरेलू महिला कामगारों ने एक ऐतिहासिक जीत हासिल की है…2014 से यूनियन बनाने की मांग को आखिर लेबर डिपार्टमेंट ने हरी झंडी दे दी. देश में ये अपनी तरह की पहली यूनियन है और देश के करीब पांच करोड़ घरेलू कामगारों के लिए एक नई उम्मीद की किरण भी बन गई है. यूनियन बनवाने में अगुवाई की 38 साल की तापसी मोइरा ने. उन्होंने 2014 में घरेलू सेविकाओं के संगठन पीजीपीएस में शामिल हो गईं. संगठन ने साल 2014 में ट्रेड यूनियन का दर्जा पाने के लिए आवेदन किया था. उसके बाद तापसी मोइरा लगभग रोज चार घरों का कामकाज निपटाने के बाद श्रम विभाग के दफ्तर जाती थीं. लगभग चार साल के संघर्ष के बाद इस महीने तापसी और उनके जैसी कई महिलाओं की मेहनत रंग लाई है. राज्य सरकार ने उनको ट्रेड यूनियन का प्रमाणपत्र दे दिया है. यूनियन की मान्यता मिल जाने के बाद पीजीपीएस ने एक रैली की और उसमें सरकार के सामने अपनी मांगें रखीं. पहली मांग थी..कामगार औरतों को घरों में टॉयलेट का इस्तेमाल करने दिया जाए, प्रति घंटे के हिसाब से दिहाड़ी मिले जिसकी दर 54 रुपये प्रति घंटे हो, हफ्ते में एक दिन की छुट्टी दी जाए.