कोरोना की आड़ में एचएफ़सीएल ने कर्मचारियों को हैदराबाद ट्रांसफर किया, लिस्ट में 50 महिलाएं
हिमाचल के सोलन में स्थित दूरसंचार उपकरण बनाने वाली बड़ी कंपनी एचएफ़सीएल ने वेतन बढ़ोतरी की मांग कर रहे कर्मचारियों का ट्रांसफर देश के अलग-अलग राज्यों में कर दिया है, जिससे कर्मचारियों में रोष पैदा हो गया है।
ट्रांसफर की सूची में 50 से अधिक महिलाओं का नाम शामिल है। इन सभी की उम्र 45 साल है।
कंपनी में 200 से अधिक कर्मचारी हैं। सभी कर्मचारी पिछले 25-35 सालों से काम कर रहे हैं और इनकी उम्र 45 के पार है।
कंपनी के वर्करों ने वर्कर्स यूनिटी को बताया कि इतने सालों से काम करने के बाद आज कंपनी उन्हें 20-25 हज़ार रुपये वेतन देती है और पिछले कई सालों से इसमें भी कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है।
अब कोरोना और लॉकडाउन के समय में ट्रांसफ़र किया जा रहा है, जबकि देश के अलग अलग हिस्से में अभी लॉकडाउन जारी है और कहीं कहीं बहुत कड़े प्रतिबंध लगाए गए हैं।
जिन कर्मचारियों का ट्रांसफर कंपनी अलग अलग राज्यों में कर रही है, उन सभी की उम्र 45 साल के आस पास है और वो अपनी गृहस्थी सोलन में जमा चुके हैं।
दिसम्बर 2019 में ही कंपनी प्रबंधन ने 13 लोगों को निकाल दिया था। तब भी मांगपत्र को लेकर ही प्रबंधन और यूनियन में विवाद कारण था।
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यूनियन को तोड़ने की कोशिश का आरोप
एचएफ़सीएल ग्रुप मजदूर संघ के महासचिव अनूप कुमार शर्मा ने वर्कर्स यूनिटी को बताया, “ मार्च 2019 से हम वेतन बढ़ाने की मांग रहे हैं। इसको लेकर लेबर कोर्ट में डिमांड लेटर भी पेंडिंग पड़ा है। मांग पत्र को वापस लेने के लिए कंपनी पिछले साल से ही दबाव बना रही है।”
अनूप कहते हैं, “मांग पत्र को लेकर कंपनी ने 2019 में हमारी ग़ैरक़ानूनी तरह से तालाबंदी भी कर दी थी। इस बात की शिकायत हमने हिमाचल श्रम अधिकारी से की थी। लेकिन कोई फायदा नहीं निकला था।”
उन्होंने कहा, “इस मसले को लेकर हम डीएम के पास गए थे। डीएम ने कर्मचारियों को फौरन काम पर लेने का आदेश दिया था। उस वक्त हमें काम पर रख लिया था। लेकिन मांग पत्र वापस लेने का दबाव हम पर लगातार बना रहा।”
उन्होंने आरोप लगाया कि प्रताड़ना के बाद भी जब मांग पत्र वापस नहीं लिया गया तो यूनियन को तोड़ने के लिए प्रबंधन ने नई चाल चली और 27 जुलाई 2020 को कई कर्मचारियों का ट्रांसफर अन्य राज्यों में कर दिया।
एच एफ सी एल लिमिटेड एक टेलीकॉम कंपनी है जिसका हेड ऑफिस दिल्ली के ग्रेटर कैलाश में हैं और कंपनी की फैक्ट्री हिमाचल और गोा में हैं जबकि इसकी सब्सिडियरी प्लांट चेन्नई और होसुर में है।
जुलाई 2019 में भी कंपनी ने 63 लोगों को बाहर का रास्ता दिखा दिया था जबकि 10 लोगों का तबादला हिमाचल से दूर अलग राज्यों में कर दिया था। इसके अलावा 22 लोगों को नौकरी से भी निकाल दिया जो अनुबंध पर रखे गए थे।
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कंपनी हैदराबाद शिफ़्ट करने की योजना
अनूप कहते हैं, “कंपनी के इस गैरक़ानूनी रवैये को लेकर हमने श्रम अधिकारी और सीएम को पत्र भी लिखा पर कहीं से कोई ज़वाब नहीं आया।”
फ़िर वे कहते हैं, “कंपनी ने रजिस्टर्ड यूनियन को रद्द करने के लिए श्रम अधिकारी को भी पत्र लिखा है और हिमाचल सीएम को पत्र लिख कर प्रबंधन ने कहा है कि वो कंपनी को हैदरबाद शिफ्ट कर रहे हैं, इसीलिए कर्मचारियों का ट्रांसफर किया जा रहा है। ”
इसी तरह का मामला उत्तराखंड के पंतनगर सिडकुल औद्योगिक क्षेत्र में इंटरार्क बिल्डिंग मैटीरियल्स इंडिया का भी था। यहां भी कंपनी में यूनियन है और मांग पत्र काफ़ी दिनों से लंबित पड़ा है।
लेकिन इसी बीच लॉकडाउ शुरू हुआ तो कंपनी ने जुलाई के प्रथम सप्ताह में क़रीब 200 मज़दूरों को चेन्नई ट्रांसफ़र कर दिया, जिसके ख़िलाफ़ यूनियन नैनीताल हाईकोर्ट पहुंची और वहां से स्टे ऑर्डर आया।
साथ ही मज़दूरों ने जोरदार संघर्ष किया, सभी मज़दूर एकजुट रहे और आखिरकार कंपनी को झुकना पड़ा और ट्रांसफ़र रद्द करना पड़ा।
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