जेएनयू में समान काम समान वेतन मांगने पर महिला सफाई कर्मचारी को निकाला

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पिछले कुछ सालों से अपने आदेशों के कारण विवादों के घेरे में रहने वाले जेएनयू प्रशासन अब सफ़ाई कर्मचारियों के कारण चर्चा में है।

जेएनयू की महिला सफाई कर्मचारी उर्मिला और सह कर्मचारी सुनीता को ‘समान काम समान वेतन’ की मांग उठाने पर काम से निकाल दिया गया।

उर्मिला कैंपस में ऑल इंडिया जनरल कामगार यूनियन की अध्यक्ष हैं।

उन्हें 28 नवंबर 2018 को कांट्रैक्टर ‘रक्षक सिक्योरिटीज़’ ने कथित तौर पर मनमाने तरीके से हटाने का आदेश जारी कर दिया।

उर्मिला और सुनीता कई सालों से शिप्रा हॉस्टल जेएनयू में सफाईकर्मचारी थीं। उनका कहना है कि ‘अब उन्हें यहां इनको प्रवेश करने से भी रोका जा रहा है।’

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उर्मिला जागरूक महिला हैं और जेएनयू में हक़ हुकूक़ के लिए होने वाले प्रदर्शनों में वो छात्र-छात्राओं के लिए परिचित चेहरा रही हैं। (फ़ोटोः अरेंज्ड)
वेतन की मांग उठाने के लिए मज़दूरों को भड़काने का आरोप

उनपर ‘वेतन की मांग उठाने के लिए मज़दूरों को भड़काने’ का आरोप लगाया गया है।

यूनियन ने बयान जारी कर कहा है कि उर्मिला, सुनीता और सभी मज़दूरों पर गैरकानूनी और दुर्भावनापूर्ण तरीके से कार्यवाही की जा रही है।

बयान के अनुसार, ‘यह सब मज़दूरों के कानूनी अधिकारों, ख़ास तौर से ‘समान काम के लिए सामान वेतन’ की मांग उठाने का परिणाम नज़र आता है।’

जबकि डिप्टी चीफ़ लेबर कमिश्नर (सेंट्रल) ने 17 सितम्बर 2018 को अपने आदेश में जेएनयू में समान काम समान वेतन लागू करने को कहा था।

यहां तक कि आदेश में कहा गया कि जेएनयू प्रशासन (प्रिंसिपल एम्प्लायर) उन मज़दूरों पर भी समान काम समान वेतन के आदेश को लागू करे, जो कोर्ट को सौंपी गई 12 ठेका मज़दूरों की कैटेगरी में नहीं हैं।

इसके लिए लेबर कोर्ट ने जेएनयू प्रशासन को सीधे तौर पर ज़िम्मेदार बताया।

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ठेकेदार संस्था रक्षक सिक्योरिटी का उर्मिला को भेजे हुए लेटर की प्रति। (फ़ोटोः अरेंज्ड)
जेएनयू प्रशासन ने मिलने से भी मना किया

उर्मिला का कहना है कि, ‘प्रिंसिपल एम्प्लायर होने के नाते जेएनयू  प्रबंधन सभी आदेशों का उल्लंघन कर रहा है।’

उन्होंने कहा, ‘ठेकेदार के माध्यम से यूनियन की शांतिपूर्ण संगठित गतिविधियों और जायज़ माँगों को गैरकानूनी तरीकों से ‘मज़दूरों को भड़काने’ का नाम दे रहा है।’

यूनियन का आरोप है कि जेएनयू प्रशासन ने मज़दूरों से मिलने और ज्ञापन लेने से भी इंकार कर दिया।

मज़दूरों का कहना है कि और भी मज़दूरों को काम से हटाने की धमकियां दी जा रही हैं।

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ठेकेदार द्वारा की गई कार्रवाई पर उर्मिला के जवाब की प्रति। उर्मिला का कहना है कि ‘कर्मचारियों के हक़ की आवाज़ बुलंद करने के कारण ही उन्हें निशाना बनाया जा रहा है।’ (फ़ोटोः अरेंज्ड)
सुप्रीम कोर्ट ने समान काम समान वेतन का दिया है आदेश

यूनियन ने मांग की है कि  उर्मिला और अन्य मज़दूरों को तुरंत काम पर वापिस लिया जाए और इस तरह दमन पर रोक लगे।

दूसरी सबसे महत्वपूर्ण मांग है कि जेएनयू प्रबंधन ‘समान काम के लिए समान वेतन’ के आदेश का तुरंत पालन करे।

उल्लेखनीय है कि पिछे महीने नवंबर में देश की सर्वोच्च अदालत ने भी समान काम समान वेतन को जायज ठहराया था।

उत्तर प्रदेश के वन विभाग में कार्यरत ग्रुप डी के कर्मचारियों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने याचिका की सुनवाई करते हुए कहा था कि समान काम कर रहे दिहाड़ी मज़दूर भी उसी काम को करने वाले रेग्युलर कर्मचारियों के न्यूनतम वेतन के बराबर पाने के हक़दार हैं।

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