बंगाल के पूजा पंडालों में इस बार दुर्गा की जगह प्रवासी माताओं की मूर्तियां, लॉकडाउन के दर्द को दिखाने की कोशिश
By आशीष आनंद
कोरोना महामारी और इसकी वजह से लगाए लॉकडाउन का असर अब पूरे देश में लगभग उतर चुका है। नवरात्र शुरू होने के साथ ही बाज़ारों में रौनक लौट रही है और ज़िंदगी पटरी पर आनी शुरू हुई है लेकिन उस दौरान प्रवासी मज़दूरों के ज़ख़्म अभी भरे नहीं।
शायद यही कारण है कि पश्चिम बंगाल के मशहूर दुर्गा पूजा आयोजनों में श्रमिक महिलाओं की मूर्तियों को जगह दी गई है।
पूजा पंडालों में लॉकडाउन के दौरान पूरे परिवार की दुश्वारियों को झेलने और ओढऩे वाली महिला श्रमिकों की जिंदगी को खास तवज्जो दी गई है, जिसकी चर्चा हो रही है।
हालांकि सरकार की नीतियों ने इन श्रमिक महिलाओं की मुसीबत बढ़ा दी है, उसकी भी चर्चा दुनिया में है। लेकिन पूजा पंडालों में दुर्गा की जगह इन प्रवासी महिला मज़दूरों को देख कर लॉकडाउन के ज़ख़्म फिर हरे हो गए हैं।
महिला मज़दूरों को समर्पित इन प्रतिमाओं की फ़ोटो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही हैं और लोग तरह तरह से प्रतिक्रिया दे रहे हैं।
हालांकि कारपोरेट मीडिया घराने सरकार के इशारे पर मोदी की ओर से किए गए लॉकडाउन के बचकाने फ़ैसले से पैदा हुई महा विपदा को पूरी तरह भुला देने पर तुले हुए हैं, जबकि ये महज चंद महीने पहले की ही बात है।
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प्रवासी महिला मज़दूरों का दर्द
कोलकाता में कई पूजा पंडालों ने श्रमिकों, माताओं को की कुर्बानियों को याद करने के लिए प्रवासी महिला को दुर्गा प्रतिमा की जगह दी है।
बारिशा क्लब दुर्गा पूजा समिति ने इस वर्ष दुर्गा की पारंपरिक मूर्ति को गोद में बच्चे को लेकर जाती प्रवासी मजदूर मां के रूप में प्रदर्शित किया है।
प्रतिमा में श्रमिक महिला के साथ दो बालिकाएं भी हैं। ये वो मंजर है, जो कोरोना वायरस की महामारी की शुरूआत के समय सरकार ने अचानक लॉकडाउन की घोषणा कर दी और श्रमिक भूखे-प्यासे गांवों को लौटने लगे।
सिर पोटली, हाथों में बच्चे और मामूली से सामान के साथ सैकड़ों मील पैदल सफर का सिलसिला दो महीने बाद तक चलता रहा। इस दौरान कई हादसे हुए, जिसमें श्रमिकों की जानें गईं।
ये श्रमिक आज भी दो वक्त की रोजी-रोटी के लिए हाथ-पांव मारकर भी फांके को मजबूर हैं।
प्रवासी मज़दूरों की परेशानी
इन मूर्तियों को बनाने वाले मूर्तिकार रिंटू दास का कहना है कि लॉकडाउऩ में लाख़ों प्रवासी मज़दूरों को सिर पर सामान, गोद में बच्चों को लिए पैदल घर जाते हुए देखकर हरेक का दिल अंदर तक हिल गया।
केवल दुर्गा ही नहीं, सरस्वती और लक्ष्मी सहित अन्य देवी देवताओं को भी प्रतिस्थापित किया गया है।
एक बालिका की प्रतिमा लक्ष्मी का प्रतिनिधित्व करने वाली उल्लू के साथ और दूसरी का सरस्वती अपने वाहन के साथ। ऐसी ही एक प्रतिमा गणेश की है।
दास ने द टेलीग्राफ को बताया कि ‘राहत की तलाश में दस भुजाओं वाली दुर्गा की पारंपरिक मूर्ति श्रमिक माताओं की वास्तविक हालत को दर्शा रही है। जिसमें वह देवी दिखाई दे रही है, जिसने चिलचिलाती धूप और भूख और तपस्या के सफर को अपने बच्चों के साथ पूरा किया। वह भोजन, पानी और अपने बच्चों के लिए कुछ राहत की तलाश कर रही है।’
हाल ही में केंद्र सरकार ने महिलाओं को रात की पाली में भी काम कराने के रास्ते खोल दिए, जबकि इस व्यवस्था को इसलिए लागू किया गया था कि कार्यस्थलों पर उनके साथ अप्रिय घटनाएं ज्यादा होती है, खासतौर पर रात के समय।
जबकि सितंबर में लोकसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय श्रम व रोजगार राज्यमंत्री संतोष गंगवार ने कहा कि देश में चार करोड़ प्रवासी श्रमिकों में से 25 प्रतिशत या 1.05 करोड़ कोरोनो वायरस महामारी और आगामी लॉकडाउन के कारण अपने-अपने राज्यों में लौट गए।
इनमें उत्तर प्रदेश के 32 लाख 50 हजार और बिहार के 15 लाख मजदूर थे।
महिलाओं की परेशानी
इस परेशानी का तनाव उन महिलाओं पर बहुत ज्यादा रहा, जिन्होंने न केवल रोजगार खोया, बल्कि अपने परिवारों के साथ चार चहारदीवारी के अंदर कैद होने को मजबूर हो गईं।
नतीजतन, लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा और डिप्रेशन का सामना किया, कुछ की तो जान पर बन आई।
ह्यूमन राइट्स वॉच की 14 अक्टूबर को जारी रिपोर्ट में महिलाओं के मामले में भारत सरकार की विफलताओं को उजागर किया गया है।
इस रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि यौन उत्पीडऩ कानून को सही तरीके से लागू करने में इस कदर कोताही हुई कि लाखों महिलाओं को बेसहारा सी सूरत देखना पड़ी।
यहां तक कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीडऩ (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013 तक की परवाह नहीं की गई।
56 पन्नों की रिपोर्ट रिपोर्ट में हर स्तर पर महिलाओं की अस्मत पर हमले बढऩे, बचाव के लिए प्रयास न होने या अधूरे होने के मामले के आंकड़े और विशेषण दिए गए हैं।
ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया की निदेशक मीनाक्षी गांगुली के अनुसार, ‘भारत के अनौपचारिक क्षेत्र की लाखों महिलाओं के साथ होने वाली घटनाएं पता भी नहीं चलतीं। मालिकों, सहकर्मियों और ग्राहकों द्वारा यौन शोषण से बचाने के लिए बने कानून लागू करने के लिए बुनियादी कदम उठाना भी मुनासिब नहीं समझा गया।’
ह्यूमन राइट्स वॉच ने औपचारिक और अनौपचारिक दोनों क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं, ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं, श्रम और महिला अधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों और शिक्षाविदों के साथ तमिलनाडु, हरियाणा और दिल्ली में 85 से अधिक साक्षात्कार किए।
(सूचना स्रोत व तस्वीरें: बिजनेस टुडे, न्यूज-18 और ह्यूमन राइट वॉच की रिपोर्ट, भावानुवाद: आशीष आनंद)
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