मकान मालिक ने निकाला, 8 माह की गर्भवती महिला 50 किमी पैदल चल पहुंची गाज़ियाबाद

मकान मालिक ने निकाला, 8 माह की गर्भवती महिला 50 किमी पैदल चल पहुंची गाज़ियाबाद

By  खुशबू सिंह

लॉकडाउन की मार सबसे अधिक किसी पर पड़ी है तो वो मज़दूर वर्ग है। सभी मजदूरों की तरह दर-बदर की ठोकरेें खाने वालों में सत्यम सिंह और उनकी पत्नी चांदनी भी हैं।

चांदनी आठ माह की गर्भवती हैं। जीवन की सबसे बड़ी खुशी में लॉकडाउन एक महा विपत्ति की तरह आ गया।

चांदनी को 45 डिग्री सेल्सियस की इस चिलचिलाती धूप और गर्मी में 50 किलोमीटर का सफर पैदल तय करना पड़ा है।

सार्वजनिक परिवहन की सुविधा उपलब्ध ना होने के कारण पेट में 8 माह का बच्चा लेकर अपने पति के साथ चांदनी  पैदल चल कर मंगलवार को गाज़ियाबाद पहुंची हैं।

पुलिस एक राज्य से दूसरे राज्य में मजदूरों को प्रवेश करने नहीं दे रही है। इसी तरह की कई दिक्कतों का सामना इस परिवार को करना पड़ा है।

पुलिस ने कई घंटों तक दिल्ली यूपी के बॉर्डर पर दोनों रोक कर रखा था। लाख मिन्नतें करने के बाद पुलिस ने उन्हें जाने दिया।

सत्यम सिंह उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर के रहने वाले हैं और हरियाणा के फरीदाबाद में मिस्त्री का काम करते हैं। किराए का कमरा लेकर अपनी पत्नी के साथ रहते हैं। 9 से 10 हजार रुपया महीना कमा लेते हैं।

अचानक लॉकडाउन की घोषणा के कारण सारा काम धंधा ठप पड़ने से आमदनी का रास्ता बंद हो गया। इस वजह से घर का किराया नहीं दे पाए।

इन दो महीनों में न तो सरकार की ओर से कोई मदद मिली ना ही कहीं और से। किसी तरह दो महीने बचे खुचे पैसे से जीवन काटा।

लॉकडाउन के दो महीना गुज़र जाने के बाद एक दिन मकान मालिक ने इन्हें घर से बाहर निकाल कर कमरे पर ताला लगा दिया।

जब सत्यम के पास कोई विकल्प नहीं बचा तो अपनी गर्भवती पत्नी को लेकर इस उम्मीद में घर से निकले गए कि शायद कोई रस्ते में मदद कर देगा लेकिन तमाम पुलिस नाकों को पार करते हुए उनकी ये उम्मीद एक एक कर टूटती गई।

फिर भी उन्होंने हिम्मत बांधे रखी। रास्ते में कुछ लोगों ने बताा ग़ाज़ियाबाद में नए बस अड्डे से आठ किमी दूर मेरठ रोड पर राधास्वामी सत्संग ब्यास का आश्रम है, जहां से बसें उत्तर प्रदेश के अन्य ज़िलों में जा रही हैं।

लेकिन वहां पता चला कि सारी बसें जा चुकी हैं इसलिए उन्हें थोड़ी दूर पर ही एक अन्य ट्रांज़िट कैंप अप्सरा बैंक्वेट हॉल में उन्हें ठहरा दिया गया।

चांदनी और सत्यम की तरह सैकड़ों मज़दूर इस जानलेवा धूप की परवाह किए बिना अपने घरों की ओर जा रहे हैं।

ग़ाज़ियाबाद प्रशासन ने मेरठ रोड पर दो किमी की दूरी पर मज़दूरों के लिए दो ट्रांज़िट कैंप बनाए हैं, एक मोरटा के पास राधा स्वामी सत्संग ब्यास और दूसरा उससे दो किलोमीटर पहले एसके वर्ल्ड बारात घर।

बारात घर में उन मज़दूरों के ठहरने की व्यवस्था की गई है जिनके लिए बसें दूसरे दिन जानी हैं। हालांकि व्यवस्था के नाम पर नगरनिगम ने एक पीने के पानी का टैंकर लगा दिया है और नगर निगम से खाने का पैकेट आ जाते हैं।

बाकी न तो साफ़ सुथरा बाथरूम है, न साफ पीने का पानी। भयंकर लू के समय में भी खुले मैदान में लोगों को छोड़ दिया जाता है। मच्छर और गर्मी से परेशान ये मज़दूर दूसरे दिन बस मिलने की आस में पूरी रात आंखों में काट देते हैं।

ghaziabad water

स्थिति ये है कि वर्कर्स यूनिटी हेल्पलाइन की टीम ने साफ़ पानी की बोतलें मज़दूरों को पहुंचाईं।

इस ट्रांज़िट कैंप की ज़िम्मेदारी संभालने वाले एसके गौतम ने बताया कि यहां प्रशासन की व्यवस्था चुस्त दुरुस्त है और खाने पीने की समस्या नहीं है।

हालांकि हेल्पलाइन की टीम के एक सदस्य ने पानी के टैंकर से पीना चाहा तो उन्होंने मना कर दिया और कहा कि आपके पीने के लायक ये पानी नहीं है।

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Workers Unity Team