‘लॉकडाउन में कंपनी ने निकाला, अब काम के बहाने यौन शोषण करना चाहते हैं ठेकेदार’

‘लॉकडाउन में कंपनी ने निकाला, अब काम के बहाने यौन शोषण करना चाहते हैं ठेकेदार’

By खुशबू सिंह

“काम के लिए मैंने कई कंपनियों और ठेकेदारों से संपर्क किया लेकिन किसी ने काम तो नहीं दिया। पर आधी रात को फ़ोन कर के परेशान ज़रूर करते हैं।”

राजस्थान के नीमराना जापानी औद्योगिक क्षेत्र में पिछले ढाई सालों से काम करने वाली एक महिला वर्कर ने जब ये कहा था तो उनकी आंखों में ग़ुस्सा नहीं एक गहरी उदासी झांक रही थी।

वर्कर्स यूनिटी के रिपोटर्स ऑन व्हील्स तीसरे पड़ाव में जब हम इस औद्योगिक क्षेत्र में पहुंचे तो वहां हमारी मुलाकात गरिमा पटर्वधन (बदला हुआ नाम) से हुई।

गरिमा एयर कंडीशन बनाने वाली डाइकिन कंपनी में बतौर ऑपरेटर कार्यरत थीं लेकिन मार्च में कंपनी ने निकला दिया। काम की तलाश और फिर लॉकडाउन के चलते वो घर नहीं गईं।

वो बताती हैं, “पापा की तबियत खऱाब होने के कारण मुझे घर तत्काल जाना था, पर कंपनी से छुट्टी नहीं मिल रही थी। तो मैंने बिना बाताए ही छुट्टी ले ली और घर चली गई। जब मैं कंपनी गई तो मुझे काम पर वापस नहीं लिया।”

मार्च से वो घर नहीं गईं और लॉकडाउन के मुश्किल भरे दिन भी उन्होंने यहीं गुजारे, बिना किसी सपोर्ट, नौकरी या सरकारी मदद के।

Daikin Neemrana

पूरे परिवार का भार

वो आगे कहती हैं, “कई बार तो ठेकेदार उन्हें फ़ोन कर के काम के लिए शारिरिक शोषण के लिए समझौता भी करने को कहते हैं।”

उनका का कहना है, “मार्च से मेरे पास काम नहीं है। रिश्तेदारों, दोस्तों से उधार लेकर काम चला रही हूं। काम नहीं है ये सोचकर घर वापस नहीं जा सकती हूं क्योंकि पापा शादी कराने वाले हैं उसके लिए भी पैसा इकट्ठा करना है।”

उन्होंने बताया कि गांव में फरचून की छोटी सी दुकान है। घर में चार छोटे भाई बहन हैं उनके पढ़ाई का खर्च भी है। इतना पैसा नहीं है कि उनके पिता शादी का खर्च उठा सकें।

गरिमा मध्यप्रदेश के मुरैना की रहने वाली हैं। अपने पिता के बाद वो घर में कमाने वाली दूसरी सदस्य हैं।

गरिमा ग्रेजुएट हैं और पिछले ढाई साल से राजस्थान में रह रही हैं। इनका सेलेक्शन दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना के तहत जापानी कंपनी निडेक में हुआ था। वहां पर 8 घंटे काम करती थीं और कुल 8,200 रुपए प्रति माह मिलते थे।

‘सारे सपने ख़त्म हो गए’

निडेक में 6 महीना काम करने के बाद इन्होंने डाइकिन में काम काम करना शुरू किया। यहां पर 8 घंटे के काम के एवज में इनको 10,000 रुपए मिलते थे। पर गरिमा अब बेरोज़गार हैं।

वो कहती हैं, “सपने बहुत बड़े थे। सोचा काम कर के कुछ पैसा जमा कर लूंगी तो आगे और पढ़ाई करुंगी पर लॉकडाउन के कारण पापा की दुकान बंद थी घर में पैसों की कमी के कारण जो कुछ भी जमा कर के रखा था उसे घर भेजना पड़ा और अब काम भी नहीं है मेरे पास।”

निराश गरिमा का कहना है कि, “पापा इस उम्मीद में मेरी शादी करा रहे हैं कि अगर लड़का अच्छा मिल गया तो मुझे पढ़ा देगा जिससे मैं अपना सपना पूरा कर लूंगी। लेकिन शादी के बाद किसका सपना पूरा होता है। मेरे सारे सपने खत्म हो गए हैं।”

लॉकडाउन में महिला वर्करों के साथ दोहरी मुश्किल आई। लाखों महिला कामगारों की नौकरियां चली गईं। एक अनुमान के मुताबिक लॉकडाउऩ के दौरान क़रीब 12 करोड़ लोग बेरोज़गार हो गए।

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)

Workers Unity Team