By नित्यानंद गायेन
महिला मज़दूरों के साथ अकल्पनीय अत्याचार की ख़बरें तो आती रहती हैं। लेकिन महाराष्ट्र के बीड ज़िले से एक ऐसी ख़बर है, जो खेतिहर महिला मज़दूरों के बंधुआ और गुलामी से भी बदतर हालात को बयां करती है।
ख़बरों के अनुसार, मराठवाड़ा के बीड ज़िले में ठेकेदार, पैसे बचाने और छुट्टी न देने के लिए खेतिहर महिला मज़दूरों के गर्भाशय निकलवा देते हैं।
माहवारी और गर्भधारण के कारण महिलाओं को छुट्टी देनी पड़ती है, जोकि मालिकों को गंवारा नहीं है।
इन महिला मजदूरों को ठेकेदारों के अधीन काम करना होता है। एक तय समय में निर्धारित काम खत्म करना होता है।
ऐसे में ठेकेदार नहीं चाहते हैं कि गन्ना काटने के दौरान किसी महिला को छुट्टी देनी पड़े।
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सर्जरी का खर्च मज़दूरी से काटा जाता है
कई ठेकेदार महिलाओं को गर्भाशय हटाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं और उसकी सर्जरी का खर्च उनकी मज़दूरी से काट लेते हैं। इसके लिए कई पुरुष मजदूर खुद ही अपनी पत्नी का गर्भाशय निकलवा देते हैं।
यदि किसी महिला को पीरियड आता है और यदि इस कारण उसने एक दिन भी की छुट्टी ली, तो उस पर करीब 500 रूपए का ज़ुर्माना लगा दिया जाता है।
इस घटना पर राष्ट्रीय महिला आयोग ने महाराष्ट्र सरकार को नोटिस भी दिया था किन्तु उसका भी कोई असर नहीं पड़ा।
खुद को नंबर वन मज़दूर कहने वाले प्रधानमंत्री के पांच साल के शासन में भारत ने पूंजीवादी शोषण की इंतहा को छू लिया है।
हालांकि ये हालात कांग्रेस और भाजपा दोनों के शासन की नज़ीर हैं, लेकिन महाराष्ट्र भाजपा शासित प्रदेश है और प्रधानमंत्री वहां के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस की चुनावों में भूरि-भूरि प्रशंसा कर रहे हैं।
लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुंह से महिला मज़दूरों के लिए एक शब्द भी नहीं फूट रहे।
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मराठवाड़ा में इस साल 220 खुदकुशी
देखा जाए तो मज़दूरों को अमानवीय स्थिति में पहुंचाने में मोदी शासन ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है।
सुधार के नाम पर श्रम कानूनों को जिस तरह मालिकों के हक में तोड़ा मरोड़ा गया है उससे ये साफ़ नज़र आ रहा है कि खुद को चौकीदार कहने वाले प्रधानमंत्री किसकी चौकीदारी कर रहे हैं।
खेती किसानी में लगातार घाटे और संकट के चलते हज़ारों किसानों की आत्महत्याओं को सिलसिला थमा नहीं रहा।
मोदीराज के केवल पहले 3 साल में 38 हज़ार किसानों ने आत्महत्या की। मतलब 35 किसान हर दिन मरे हैं। यानी किसान आत्महत्या 45 फ़ीसदी बढ़ा।
महाराष्ट्र में बीते 30 दिनों में 174 किसानों ने जान दी। अकेले मराठवाड़ा में महीने भर में 91 किसानों ने जान दी है।
सूखे की मार झेल रहे मराठवाड़ा में एक जनवरी से 14 अप्रैल के बीच 220 किसानों ने खुदकुशी की है।
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ज़मीन का बंटवारा है विकल्प
मौजूदा राजनीतिक पार्टियों के पास खेती किसानी की समस्या का हल कर्ज माफ़ी से आगे नहीं जा रहा है।
जबकि ज़मीन बंटवारे की समस्या पर कोई बात नहीं करना चाहता, जिसके चलते देश में बंधुआ मज़दूरी एक आम बात हो चुकी है।
एक बड़ी आबादी के भूमिहीन किसान होने का दोहरा अभिषाप महिलाएं झेल रही हैं।
बीड की घटना इसकी बानगी भर है, जहां भूमिहीन मज़दूर महिलाओं के मानवीय सम्मान का ख्याल भी यह नग्न पूंजीवाद नहीं रख पा रहा।
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