खेती में काम बढ़ने के साथ महिला मज़दूरों में कुपोषण क्यों बढ़ता है?

खेती में काम बढ़ने के साथ महिला मज़दूरों में कुपोषण क्यों बढ़ता है?

खेतिहर मज़दूरों की हालत देश में सबसे बुरी है लेकिन महिला खेतिहर मज़दूरों की हालत और बुरी है क्योंकि खेती के पीक सीज़न में उन्हें पोषणयुक्त खाना मिलना और कम हो जाता है।

ये बात एक रिसर्च में पाई गई है कि खेतों में महिलाएं, पुरुषों के बराबर ही काम करती हैं लेकिन पुरुष घर के काम नहीं करते। महिलाएं बुआई, पौधे लगाने और सिंचाई के समय खेतों में ज्यादा घंटे काम करती हैं।

इसका असर उनके घर में खाना बनाने के समय पर पड़ता है, जिससे उनके पोषण युक्त खुराक की मात्रा कम हो जाती है।

स्क्रॉल वेबसाइटपर छपी एक स्टोरी के मुताबिक, सर्वे ने इस ओर ध्यान दिलाया है कि खेतों में ज्यादा घंटे काम का महिलाओं के स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ता है क्योंकि उन्हें कम पोषणयुक्त खाना मिलता है।

खेतों में महिलाओं की मदद वाली तकनीक और माहौल से तथा घर के काम में सहयोग मिलने से उनका बोझ कम किया जा सकता है।

सर्वे के मुताबिक, एक तिहाई महिलाएं खेतों में काम करती हैं और ऐसे में भारत में ऐसी मजबूत नीतियों की जरूरत है, जो उनके अनुकूल हो।

महिलाएं खेतों में बुआई, सिंचाई, पौधे लगाने जैसे कामों में अपना 32 फीसद समय देती हैं यानी औसतन एक दिन में पांच घंटे उन्हें खेती से जुड़े कामों में देना पड़ता है। इसके साथ उन्हें घर में खाना बनाने के साथ ही बच्चों की देखभाल भी करनी पड़ती है।

जब खेती का पीक समय चल रहा होता है तो उन्हें वहां और ज्यादा यानी लगभग पुरुषों के बराबर ही समय देना पड़ता है।

स्टडी की सह-लेखिका विदया वेमीरेड्डी के मुताबिक, ‘खेती के पीक सीजन का समय दरअसल वह अवसर होता है, जब अगर महिलाएं खेतों में ज्यादा समय नहीं देंगी तो उनके परिवार को आर्थिक नुकसान होगा। इस दौरान समय को समायोजित करने के लिए उन्हें घर के काम के समय में कटौती करनी पड़ती है।’

इससे उन्हें कम पोषण वाला खाना मिलता है, जिससे उनके शरीर को कैलोरी, प्रोटीन, वसा, आयरन और जिंक कम मात्रा में मिलते है।

सर्वे में देखा गया कि महिलाओं के खेतों में बढ़ने वाले हर दस मिनट से किचन में देने वाले चार मिनट कम हो जाते हैं।

सर्वे के परिणाम में पाया गया कि अगर महिला मज़दूरों की प्रति दिन 100 रुपये की प्रतिदिन बढ़े तो उसके बदले उनके पोषण में 112.3 कैलोरी, 0.7 मिग्रा आयरन, 0.4 मिग्रा जिंक और 1.5 ग्राम प्रोटीन कम हो जाता है।

वेमीरेडडी के मुताबिक, ‘अगर खेती के पीक सीजन में काम बढ़ता है तो इस दौरान महिलाओं को घर के काम खासकर शाम का खाना बनाने के लिए कम समय मिलेगा और वो आसान भोजन बनाना पसंद करेंगी जिसमें पोषण कम होता है। और इसका असर उनकी सेहत पड़ता है।’ यह सर्वे महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में 960 महिलाओं पर किया गया है।

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Workers Unity Team

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