मानदेय बढ़ने की उम्मीद बढ़ते ही नौकरी की ‘छिनैती’ शुरूः उत्तराखंड की भोजन माताओं में रोष

मानदेय बढ़ने की उम्मीद बढ़ते ही नौकरी की ‘छिनैती’ शुरूः उत्तराखंड की भोजन माताओं में रोष

By हलद्वानी संवाददाता

उत्तराखंड में हज़ारों की तादाद में स्कूलों में मिड डे मील बनाने के लिए रखी गईं भोजन माताओं के मानदेय वृद्धि का संकेत देने के साथ ही उन्हें निकालने का दौर भी शुरू हो गया है और इसके पीछे शासन की ओर से जारी एक आदेश है जिसमें कहा गया है कि बच्चे कम होने या स्कूलों के विलय किए जाने की स्थिति में भोजनमाताओं को विद्यालय से अलग किया जा सकता है।

हरिद्वार ज़िले में कई विद्यालयों से भोजन माताओं को निकालने का मुद्दा तूल पकड़ा तो उप शिक्षा अधिकारी ने झट सफ़ाई दे दी कि निकालने का ऐसा कोई आदेश जारी नहीं किया गया है।

उधर, कई जगहों से अपुष्ट ख़बरें आ रही हैं कि प्रधान, सरपंच और स्कूल प्रबंधन मानदेय बढ़ोत्तरी को देखते हुए मौजूदा भोजन माताओं को निकाल कर अपने परिचितों को भरने की कोशिशों में लग गए हैं।

उल्लेखनीय है कि अभी हाल ही में उत्तराखंड के शिक्षा विभाग ने भोजन माताओं के मानदेय को 2000 रुपये से 5000 रुपये किए जाने का प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा है।

सरकारी विद्यालयों में भोजनमाताएं 18-19 वर्षों से खाना बनाने का काम बड़ी मेहनत व साफ-सफाई के साथ करती हैं। स्कूलों के सभी छोटे बड़े काम में सहयोग करती हैं। शुरुआती समय में इनको 250 रुपये का मानदेय दिया जाता था।

भोजन माताओं के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले संगठनों का कहना है कि अब इतने बरसों बाद भी इनका मानदेय मात्र 2000 रुपये प्रतिमाह हुआ है। वह भी 11 महीने का मानदेय ही दिया जाता है। भोजनमाताएं बहुत गरीब परिवारों से आती है। इनमे कई भोजनमाताऐ विधवा, परित्यक्ता है।

अधिकतर भोजन माताओं पर अपने पूरे परिवार की जिम्मेदारी है। इस महंगाई के दौर में भोजनमाताओं का जीवन संकट में है। सरकार द्वारा उज्जवला गैस योजना का हल्ला मचाया जाता है कि हर घर में गैस है लेकिन सरकार के सरकारी स्कूलों में अभी तक लकड़ी के चूल्हे में ही खाना बनाया जाता है।

लकड़ी का इंतजाम भी भोजनमाताओं से करवाया जाता है। जिसका उनको न के बराबर पैसा मिलता है। लकड़ी से खाना बनाने पर जो धुआं निकलता है उससे भोजनमाताओं के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है।

प्रगतिशील भोजनमाता संगठन की यूनियन की अध्यक्ष हंसी ने बताया कि कोविड-19 महामारी के दौरान भोजनमाताओं की कोविड-19 में ड्यूटी लगाई गई। अपनी जान की परवाह किए बिना कोरोना पीड़ितों की देखभाल की। सरकार ने भोजनमाताओं को न तो कोई सुरक्षा उपकरण दिए और न ही कोई प्रोत्साहन राशि दी।

लॉकडाउन के समय एक शासनादेश निकाला गया जिसमें कहा गया कि भोजनमाताओं से एक डेढ़ घंटा किचन गार्डन का काम लिया जाए ताकि उनको मानदेय दिए जाने का औचित्य सिद्ध हो सके। इस शासनादेश के नाम पर भोजनमाताओं से कई स्कूलों में एक-एक बीघा खेत में खेती करवाई गई।

जबकि भोजनमाताओं ने लॉकडाउन में कोरोना पीड़ितों की सेवा करने के अलावा पूरे स्कूल की साफ सफाई भी करवाई गई लेकिन आज तक सरकार द्वारा भोजनमाताओं को कोई प्रोत्साहन नहीं दिया गया।

यूनियन के महामंत्री रजनी जोशी कहती हैं कि सरकार भोजनमाताओं को प्रतिदिन का लगभग 66 रुपये देती है। इतने कम मानदेय में एक व्यक्ति का भी जीवन यापन नहीं हो सकता जबकि भोजनमाताओं पर उनके पूरे परिवार की जिमेदारी है। भोजनमाताओं को उतराखंड में दिए जाने वाले मानदेय में 1000 केंद्र सरकार व 1000 राज्य सरकार कुल मिलाकर 2000 रुपये मानदेय दिया जाता है।

जबकि केरल, पांडिचेरी व अन्य कई राज्यों में भोजनमाताओं को इससे कई गुना वेतन मिलता है। भोजनमाताएं विद्यालय में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से ज्यादा काम करती हैं लेकिन आज तक उन को न्यूनतम वेतन तक नहीं दिया जाता है। अभी हाल ही में शिक्षा सचिव अरविंद पांडे ने एक प्रस्ताव सरकार को भेजा है जिसमें भोजन माताओं का मानदेय 5000 रुपये प्रतिमाह करने की बात कही गई है।

जबकि भोजनमाताएं लंबे समय से 15000 रुपये न्यूनतम वेतन की मांग के लिए संघर्ष कर रही हैं। इतने संघर्षों के बाद 5000 रुपये की मात्र घोषणा की गई है वह भी कब तक लागू हो इसका कोई भरोसा नहीं है।

यूनियन की कोषाध्यक्ष नीता ने कहा कि सरकार द्वारा जो भी शासनादेश आए उसमें भोजनमाताओं को विद्यालय से निकालने की बात होती है। बच्चे कम होने या स्कूलों के बिलयीकरण की स्थिति में भोजनमाताओं को विद्यालय से अलग करने की बात कही गयी है। भोजनमाताएं हमेशा इस भय में जीवन जी रही है कि इतने वर्ष में काम करने के बावजूद उन्हें कभी भी अपने काम से निकाला जा सकता है। भोजनमाताएं बहुत मानसिक पीड़ा से गुजर रही हैं।

अपनी इस समस्या को लेकर हरिद्वार में भोजनमाताओं ने हाल ही में उप शिक्षा अधिकारी को एक ज्ञापन दिया। उप शिक्षा अधिकारी ने यूनियन से वार्ता के दौरान कहा कि भोजनमाता को स्कूलों से निकालने का कोई शासनादेश अभी लागू नहीं हुआ है, यह महज प्रस्ताव है।

हरिद्वार में जिन भोजनमाताओं को निकाला गया था उप शिक्षा अधिकारी ने उनके अध्यापकों से फ़ोन पर बात कर उनको विद्यालय में रखने की बात कही और कहा कि भोजनमाताओं को न निकालने का आदेश वे लिखित तौर पर सभी स्कूलों में भेज देंगे।

प्रगतिशील भोजनमाता संगठन की यूनियन की संरक्षक शीला शर्मा ने कहा कि चाहे 5000 रुपये मानदेय की घोषणा हो या भोजनमाताओं को स्कूलों से न निकालने का आदेश हो यह यूनियन के संघर्षों के दम पर मिली आंशिक जीत है, आगे संघर्ष जारी है।

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Workers Unity Team

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