मुंडका अग्निकांड: पूजा मजदूरी कर अपनी दो बहनों को पढ़ा रही थी, हादसे के बाद से नहीं है कोई खबर
By प्रतीक तालुकदार
पूजा कुमारी को तीन महीने हुए थे कंप्युटर ऑपरेटर का काम करते हुए जब मुंडका फैक्ट्री में 13 मई को भीषण आग लगी थी।
पूजा की उम्र 21 साल थी और उसके ऊपर अपनी माँ और दो छोटी बहनों की जिम्मेदारी थी। भयंकर टीबी से ग्रसित, उनके पिताजी का 2012 में देहांत हो गया था।
दुर्घटना होने के समय से लेकर आज तक, पूजा के परिवार को इस बात की स्पष्ट जानकारी नहीं मिली है कि पूजा का क्या हुआ। या अगर उसकी मौत हो गई है तो शव कहाँ है?
मुंडका अग्निकांड में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मरने वाले 27 लोगों में से छह की शिनाख्त अभी भी बाकी है और 29 लापता हैं।
मजदूर यूनियनों का कहना है कि लापता लोगों की संख्या जितनी बताई जा रही है, उससे कहीं ज्यादा होने की संभावना है।
मंगोलपुरी के संजय गांधी अस्पताल, जहां मृतकों के शव और घायलों को दुर्घटना के बाद ले जाया गया, वहाँ बर्न वार्ड नहीं है।
अभी तक नहीं मिली डीएनए सैम्पल की रिपोर्ट
शव की शिनाख्त करने के लिए कई परिवारों की तरह पूजा के परिवार से भी 14 मई को डीएनए सैम्पल लिए गए थे। वे दस दिन बाद भी टेस्ट की रिपोर्ट का इंतज़ार कर रहे हैं। पुलिस का कहना है कि रिपोर्ट 27 मई को आएगी।
जिन्हें हल्की चोट आयी थी, उनकी मरहम पट्टी वहीं कर दी गई। लेकिन साधारण रूप से चोटिल और मरने वालों के अलावा जिन्हें गंभीर चोटें आयीं, उनका कोई ब्यौरा नहीं दिया गया।
मजदूर यूनियनों का कहना है कि पुलिस सच्चाई छुपाने की कोशिश कर रही है।
पूजा की छोटी बहन, मोनी ने बताया कि उसे शुरुआती दो महीनों तक 7500 रूपये मिलते थे। तीसरे महीने यानि अप्रैल में उसकी तनख्वाह बढ़ा कर 8000 रूपये की गई थी, जिसकी पेमेंट 13 मई को होने वाली थी — ठीक उसी दिन जिस दिन आग लगी।
गौरतलब है कि पूजा की तरह, फैक्ट्री के सारे मजदूरों का वेतन दिल्ली सरकार के श्रम विभाग द्वारा ते किए गए न्यूनतम वेतन के आधे से भी ज्यादा कम था।
Naseem Ansari whose wife Asiya is missing since last night in #MundkaFire explains packaging loading scanning work for CCTV, wifi equipment was done by majority of women workers paid Rs 6000/month(less than 1/2 Delhi minimum wage) in 9hrshifts. Workers were not allowed mobiles pic.twitter.com/DGWsx1dH71
— Anumeha (@anumayhem) May 14, 2022
मजदूरों को अप्रैल महीने की तनख्वाह अभी तक मिलना बाकी है, जिसके लिए श्रम मंत्री को दिए गए ज्ञापन में ये मांग रखी है कि कंपनी का एक अस्थायी ऑफिस बना कर मजदूरों का बकाया हिसाब चुकता किया जाए।
पूजा घर में कमाने वाली अकेली थी। पूजा की छोटी बहन मोनी दिल्ली विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग से पोलिटिकल साइंस की पढ़ाई कर रही हैं और फिलहाल फर्स्ट ईयर में हैं। उनकी सबसे छोटी बहन तन्नू अभी 10वीं कक्षा में पढ़ती है।
मोनी कहती हैं कि उनका लक्ष्य CLAT परीक्षा है और वह वकील बनना चाहती हैं।
पूजा ने खुद भी स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग के बीए प्रोग्राम में दाखिला ले रखा था और हर रविवार को पढ़ने जाया करती थी।
पूजा की माँ, गायत्री देवी कहती हैं, “वो हम में से किसी को काम नहीं करने देना चाहती थी। अपनी बहनों को बोलती थी तुम लोग सिर्फ पढ़ो। मुझे भी काम करने से मना कर दिया था, कहती थी कि ‘तू बस मुझे अच्छा-अच्छा चीजें बना कर खिलाना’।”
असल में बिहार के भागलपुर जिले के रहने वाला यह अपना गाँव छोड़ कर सन् 2000 के कुछ समय पहले दिल्ली आए। वे बताते हैं कि वहाँ अब उनका ना कोई रिश्तेदार है और ना ही कोई संपत्ति।
खरीदा हुआ घर कब्जा कर लिया गया
साल 2000 में उन्होंने 40,000 रूपये में मुबारकपुर डबास के पास प्रवेश नगर में 30 गज का एक घर खरीदा था। उस समय वहाँ ज्यादातर मैदानी इलाका था और बिजली भी नहीं आती थी।
मोनी बताती हैं कि उस वक्त एक अफवाह उड़ी थी की वहाँ मेट्रो की लाइन बनने वाली है, जिसके लिए वहाँ के कई घर तोड़े जाएंगे।
इन सब कारणों से वह शाहदरा में किराये पर रहते थे और अपने घर एक परिचित रिक्शा वाले को रहने और रखवाली करने के लिए दिया हुआ था।
जब उनके पिताजी की तबीयत बिगड़ गई, तो वह इलाज में व्यस्त रहने लगे और घर की देख रेख नहीं कर पाए।
कुछ समय बाद उन्हें पता चला कि उस रिक्शा वाले को किसी प्रकरण में तिहाड़ जेल में बंद कर दिया गया है। उन्होंने जा कर देखा कि उनका घर किसी ने कब्जा कर लिया है और दो मंजिल खड़ी कर ली है। वहाँ रहने वालों ने कहा कि उन्हें किसी ने वह प्रॉपर्टी बेची थी।
घर वापस पाने के लिए उन्होंने जनकपुरी कोर्ट में केस किया लेकिन प्राइवेट वकील बहुत ज्यादा पैसे मांग रहे थे और सरकारी वकील ने केस में कोई रुचि नहीं दिखाई।
वे बताते हैं कि तब से वह प्लॉट कई बार बिक चुका है।
अपने पति की मौत के बाद से वे बच्चों के साथ प्रवेश नगर में एक किराये के कमरे में रहती हैं।
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घर चलाने के लिए गायत्री देवी 2012 में प्रवेश नगर में ही एक लेस, इलास्टिक, इत्यादि बनाने वाली फैक्ट्री में काम करती थीं जहां उनसे ₹3000 के एवज में सुबह 9 बजे से लेकर रात के 9 बजे तक काम लिया जाता था।
चौथी-पाँचवी कक्षा में काम करने को मजबूर
उस दौरान पाँचवी कक्षा में पढ़ रही पूजा और चौथी कक्षा में पढ़ रही मोनी आस पास के घरों में काम करती थीं।
वे बताती हैं कि कई कई महीनों तक तनख्वाह नहीं मिलने के कारण अक्सर मजदूरों की मैनेजमेंट से झड़प होती थी। एक मुश्त चार महीनों तक पैसा ना मिलने के कारण उन्होंने पाँच से छह साल बाद काम छोड़ दिया। उस वक्त उन्हें ₹5500 मिलते थे।
उसके बाद एक लोहा कटिंग और वेल्डिंग फैक्ट्री में उन्होंने काम शुरू किया, लेकिन एक दुर्घटना में उन्हें सर पर चोट आई, जिसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा।
पूजा 12वीं की परीक्षा पास करने के बाद कॉल सेंटर में नौकरी पर लग गई। उसने करमपुरा, पीरागढ़ी, नागलोई, इत्यादि जगह काम किया।
आँसू रोकने की कोशिश करते हुए गायत्री कहती हैं, “पूजा सबसे होशियार थी। छह महीने में वह कंप्युटर सीख के काम पर भी लग गई। छोटों से, बड़ों से, किससे किस तरह बात करना है, वह सब समझती थी। अब आगे क्या होगा, नहीं पता।”
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