श्रम क़ानून को ‘स्लेव क़ानून’ बनाने पर हंगरी में जनविद्रोह, मज़दूर-नौजवान सड़कों पर

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श्रम क़ानून में बदलाव कर ओवरटाइम की सालाना सीमा 400 घंटे किए जाने पर हंगरी के मज़दूर वर्ग ने विद्रोह कर दिया है।

द इंडिपेंडेंट के अनुसार, दक्षिणपंथी प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान ने हाल ही में श्रम क़ानूनों में बदलाव किया है।

विपक्षी वामपंथी पार्टियों और जनता राजधानी वुडापेस्ट में सड़कों पर उतर आई है।

छात्र, नौजवान, मज़दूर और नागरिक संस्थाएं इसे ‘स्लेव क़ानून’ करार दे रही हैं।

हर दक्षिणपंथी शासन की तरह ही ओरबान ने कोर्ट और मीडिया को अपने कब्ज़े में ले लिया है।

सरकारी संस्थाओं के शीर्ष पदों पर दक्षिणपंथियों को चुन चुन कर मुखिया बनाया है।

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हंगरी के दक्षिणपंथी प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान के ख़िलाफ़ एक दशक में सबसे विशाल प्रदर्शन। (फ़ोटोः @ianbremmer)
प्रदर्शनकारियों की मांगें

2010 में सभी विपक्षी पार्टियों को एक साथ लाकर ओरबान प्रधानमंत्री बने थे।

अभी बीते अप्रैल में वो दोबारा चुनकर प्रधानमंत्री बने हैं।

लेकिन लेबर लॉ में बदलाव ओरबान के लिए भारी पड़ता दिख रहा है।

साउथ चाइना मार्निंग पोस्ट के मुताबिक, बीते रविवार को बुडापेस्ट में हुए शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे।

इसके बाद यहां हालात बिगड़ गए। प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच टकराव की नौबत आ गई।

वामपंथी विपक्षी पार्टियों ने फ्रांस के येलो वेस्ट प्रदर्शनों को हंगरी में दुहराने की बात कही है।

प्रदर्शनकारियों ने स्वतंत्र मीडिया, ओवरटाइम बढ़ाने के फैसले को वापस लेने और स्वतंत्र न्यायपालिका बहाल करने की मांग की है।

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रविवार को शून्य से भी नीचे चले गए पारे के बावजूद हिरोज़ स्क्वायर में क़रीब 10,000 लोग इकट्ठा हुए। (फ़ोटोः @attack_mike)
श्रम क़ानूनों को कार्पेरेट जगत के हवाले करने के ख़िलाफ़ विद्रोह

पिछला सप्ताह एक दशक का सबसे हिंसक रहा है। प्रदर्शनों में 14 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं।

प्रदर्शनकारी सरकारी टीवी चैनल के दफ्तर को कब्ज़ा करने की जुगत में हैं।

रविवार की देर रात विपक्षी सांसद सरकारी टीवी के दफ्तर में घुसने में सफल रहे।

वो अपनी मांगों को प्रसारित करना चाह रहे थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें रोक दिया।

दुनिया भर में श्रम क़ानूनों को 18वीं शताब्दी जैसा बनाने की पूरी दुनिया में कोशिश हो रही है।

और इसके ख़िलाफ़ पहला विद्रोह फ्रांस में शुरू हो चुका है, जो धीरे धीरे यूरोप के बाकी देशों को अपने आगोश में ले रहा है।

मौजूदा दौर में आसन्न आर्थिक मंदी से उबरने के लिए कार्पोरेट परस्त सरकारें श्रम क़ानूनों को बेमानी बनाने पर तुली हुई हैं।

जैसा कि हर मंदी में होता है, मज़दूर वर्ग के शोषण को बढ़ाकर कार्पोरेट जगत का घाटा पूरा किया जाता है।

लेकिन इस बार दुनिया का मेहनतकश वर्ग प्रतिरोध कर रहा है।

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